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Tuesday, November 29, 2022

आखिर क्या है साधना का राज ?-What Is Spiritual Awakening

 

आखिर क्या है साधना का राज ?-What Is Spiritual Awakening



मनुष्य इस ब्रह्मांड का एक ऐसा लोता प्राणी है जिनके पास बुध्धि है. वह अपनी बुध्धि का इस्तमाल करके अपनी स्थिति के बारेमे सोच शकता है. उन्हें सुधार शकता है. उनका जो आजका जीवन है.. क्या उनसे उपर की कोई स्थिति है !! यह सोच शकता है.

कौनसी बात करे तो जीवन बहेतर बन पाए ये कर शकता है. अगर वह करना चाहे तो !! जो problems उनके सामने आते है उनको किस तरह से सुलझाये और क्या करे की फिर से ये न आये !! अपने वर्तमान जीवन से उपर कोई स्थिति पाई जा शकती है ये भी सोच शकता है. अपनी मर्यादाओ को पहचान कर वह उसे एक opportunity में बदल शकता है.



What is spiritual awakening :

spiritual awakening का सही मायने में एक मतलब मेरी नजर में जो है वो है

“अपने ईगो को छोड़ कर सहज भाव से रहना। यही नहीं जब आप में में का भाव और मेरी बेइज्जती होने का भाव ख़त्म हो जाता है तब आप समझ जाए की आपकी स्पिरिचुअल अवेकनिंग की यात्रा प्रारम्भ हो चुकी है।”

अक्सर देखने में आता है की जब ऐसा होता है तब हम खुद को बीमार सा महसूस करने लगते है ऐसा इसलिये होता है क्यों की हमारा body इस change के लिए खुद को ready करने लगता है।

यही वजह है की हम कुछ समय के लिए खुद को एकदम weak feel करते है लेकिन कुछ टाइम बाद एक नई energy से खुद को प्रचुर होते हुए महसूस कर सकते है। चलिए बात करते है top 10 spiritual awakening sign यानि aadhyatmik jagran ke mukhy laakshn kya kya hai


#1 बदलाव के अनुसार खुद को शो करना :

हम जैसे है वैसे ही खुद को शो करने लगते है तो जाहिर सी बात है की अपने अंदर आए इन बदलाव को दुसरो के सामने रखते है। हम दोस्तों के साथ अपने बदलाव को एक बड़े व्यक्ति की तरह पेश करते है या फिर हमारा social media account स्पिरिचुअल चीजों से भरने लगता है।



#2 spiritual awakening – हर किसी से प्यार का भाव रखना :

हम अपने आस पास की हर वस्तु को love करने लगते है फिर चाहे वो जानवर हो या पेड़-पौधे। हमें nature की बनाई हर चीज अच्छी लगने लगती है फिर चाहे वो कोई भी हो। ये ऐसा बदलाव है जिसमे हमारे अंदर का ईगो और घृणा का भाव ख़त्म हो जाता है। अगर इस दौरान हम खुद को स्थिर बना सकते है तो हम प्रकृति के change को भी समझ सकते है।

#3 दुनिया की बजाय खुद को बदलने पर ध्यान देना :

हम उन लोगो की परवाह नहीं करते है जिनका हमें पता होता है की वो झूठा दिखावा कर रहे है। जैसे की नेता या अभिनेता या फिर समाज का कोई और व्यक्ति और हम उन्हें दोष देने की बजाय खुद में बदलाव लाने के बारे में सोचते है और एक्शन लेना शुरू करते है।


#4 spiritual awakening – खुद की प्रॉब्लम को हील करना :

हम लोगो के सहारे रहने की बजाय खुद की problem का solution खुद करने के बारे में aware होने लगते है। हमें पता होता है की खुद की समस्या का कैसे हल करना है और कैसे उससे उबरना है। दुसरो के अंदर की कमियों को देखने की बजाय हम खुद को better बनाने पर ध्यान देने लगते है। जिससे हमारा physical, mental  और spiritual level पर development होता है। इससे हमें सबसे बड़ा benefit ये होता है की हम किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते है न ही बेवजह परेशान होते है।

#5 प्रकृति को जानकर उसके नियम को मानना :

हम जान जाते है की प्रकृति और उसके नियम हमारे भले के लिए है और जो होता है प्रकृति की मर्जी से होता है और हम उसमे कोई interfare नहीं करते है। ज्यादातर लोग जो power पाने के बाद में ये कर दूंगा वो कर दूंगा इसी realization से गुजर कर relax हो जाते है क्यों की तब वो nature के rule को सही तरह से समझ पाते है। हम जो भी कार्य करते है या फिर कुछ भी खाते है उसका हम पर क्या असर होगा से पूरी तरह जागरूक होते है।

life का real meaning क्या है हमें समझ आ जाता है। खुद को relax करने की process और meditation दोनों से हम अपने soul के पास और पास आने लगते है।


#6 यूनिवर्सल वाइब्रेशन को महसूस करना :

हम नई नई चीजों को बेहतर तरीके से सीखने लगते है। साथ ही हमारी बॉडी यूनिवर्सल वाइब्रेशन को बेहतर तरीके से एक्सेप्ट करने लगती है। universal frequency हमसे connect होने लगती है जिससे हम खुद की बीमारियों पर काबू पाने लगते है हमारा शरीर पहले से ज्यादा बेहतर बनने लगता है।

#7 subconscious mind का active रहना :

हमारा subconscious mind हमें समय time पर सही समय के बारे में inform करवाने लगता है। जैसे की कोई भी कार्य जिस वक़्त पर होना चाहिए हमें subconscious mind पहले ही अवगत करवाने लग जायेगा की अब right time आ गया है।

#8 spiritual awakening – खास समय पर खास स्थिति :

पुरे दिन भर में एक खास समय हम स्पेशल वाइब्रेशन महसूस करने लगते है जो हमें सब कामो से भुला कर उस अवस्था में ले जाता है जो बहुत गहरी और दुर्लभ है जैसे की एक खास समय पर आपका शरीर खुद-ब-खुद शांत हो जाना जो पहले आपके meditation का time था।

#9 टाइम का सही तरीके से सदुपयोग :

समय की गति को सही तरीके से समझने लगना। हमे पता चलने लगता है की किस समय किस काम का होना बेहद जरुरी है।

#10 ईमानदारी और सच्चाई की राह पर चलना :

हम सच्चाई की राह पर चलने लगते है क्यों की तब हमें पता चलने लगता है की सच अगर थोड़े टाइम के लिए दबा भी दिया जाए तो भी सच ही रहता है। अंदर से जो भाव बनते है वो सच की राह से जुड़े होते है।

दोस्तों ये थे spiritual awakening के कुछ ऐसे sign जो हमें ये समझने में मदद करते है की जो बदलाव से हम गुजर रहे है वो किस वजह से है। आज की पोस्ट पर कमेंट कर हमें बताए की आपको ये पोस्ट कैसी लगी।


अध्यात्म का वर्तमान उपोयोग ?- what is spiritual intelligence

आज modern spirituality का समय आ गया है. उनके बारेमे काफी सारे philosopher आगे आये है. वह अपनी ज्ञान की गठरी खोल रहे है लेकिन उनको एक सैध्धान्तिक तरीके से नही दर्शाया है. इस ब्लॉग और हमारी चेनल के माध्यम से हम ये करने की कोशिस करते रहते है.




सामान्य रूप से लोगो को मानना है की spirituality का use निवृति ज्ञान के लिए होता है. लेकिन प्राचीन वैदिक समय में राजाओं महाराजाओं अपने राज्य को बहेतर तरीके से चलाने के लिए और अपने जीवन में उच्च मूल्यों को स्थापित करने के लिए उनका उपयोग करते थे. क्योकि ये ज्ञान हमे उपर उठाता है ताकि हम दिव्य बन शके

राजा जनक, दशरथ, भरत, भगवान राम, श्री कृष्ण, और काफी सारे महाराजे उनका उपयोग करते थे !! ये शिखाने के लिए आश्रम थे. वहा राजकुमार अपने जीवन के शुरुआती दौर में रहते थे. गुरु की सेवा करते थे और ये विद्या शिखते थे.

इस ज्ञान का उदबोधन भगवान ने गीता में भी किया है. परमात्मा ने कर्म को इस तरह से करने को कहा की कर्म के साथ साथ उपर भी उठा जाये.

इसी लिए भगवान कहते भी है की योग: कर्मसु कौशलम् मतलब की कार्य को कुशलता से करना योग है. आज हम कुछ मुद्दे पर बात करेगे जो जीवन को उपर उठाये. उनके साथ साथ हम यह भी सोचेगे की हमे क्या चाहिए ? और क्या करना है ?

ऐसा ख्याल क्यों आया ?- What is positive spirituality?

जीवनमें बहुत सारी बाते ऐसी होती है की हमे मालूम ही नही होती की यह क्या है ? और समय बीत जाता है !! जो आफते, मुश्किले, विपरीत समय जीवन में आते है, उनके आधार पर बहुत सारे बर्षो के बाद ये कुछ नियमावली बनाई दी गई है. ये अनुभव का नतीजा है.

इसमें नई बात नही लेकिन एक व्यवहारिकता छिपी हुई है..आखिर क्या मानवीय जीवन और उनके अस्तित्व को उपर उठाया जा शकता है ? मतलब की क्या वर्तमान समय हमे आनद और प्रशन्नता का अहेसास हो शकता है.. जो बेड़िया हमें डाली गई है क्या ये दूर हो शकती है हालाकि हमे तो उनके बारेमे मालूम ही नही ?

उनका कोई उकेल है ? या इसी तरह से समय की मार को ही हम सुख और दुःख समजते रहे !! क्या इन सबसे उपर कोई अहेसास है ? शरीर और मन से उपर कोई सत्ता है जो हमे निरंतर आनद दे शके ? इन्ही प्रश्नों के आधार पर ये साधना और ब्रह्मचर्य का उद्भव हुवा है..

आपको क्या चाहिए ?- what is your needs and wants

अगर हम अपने आप से ही पूछे की हमे क्या चाहिए ? तो उनका उत्तर क्या होगा ? सामान्य सूत्र है रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की जरूरत है. इसमें सब कुछ आ जाता है. मतलब की हरेक व्यक्ति को जीवन जीने के लिए, अपने शरीर को टिकाने के लिए ये चाहिए ये शुरूआती जरूरत है.

उनसे आगे अपने जैसे दुसरे जिव उत्पन्न करने की चाह में सादी, sex की इच्छा, सजातीय विजातीय आकर्षण विगेरे आ जाता है. मोजशोख, ऐसो आराम, इन्द्रिय के विषयों को और ज्यादा उत्तेजित करे ऐसी भोग विलास की वस्तुऐ भी वह चाहता है. कितना भी दुखी हो फिर भी बार बार यही करने की उनकी इच्छा हो जाती है.

अगर कोई इनसे उपर उठे तब भी रूतबा status, सन्मान प्राप्त करना, कोई उनको ,मान दे, अपनी एक पहेचान हो, उनका order सब कोई फोलो करे. पैसा धन, बहुत सारी सम्पति प्राप्त करना, use हो या न हो फिर भी वह बहुत सारी सम्पति इकठ्ठी करता रहता है. हमारे ग्रंथो में उसे वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा कहा गया है.

ये सब जीवन की प्रारंभिक जरूरियात न होते हुवे भी धीरे धीरे एक के बाद एक प्रगट होती जाती है. ये एक झाल है उसे माया भी कहते है. उनके बारेमे जितना सोचो वह उतनी ही ज्यादा विकराल होती जाती है. इतना ही नही बुरे से बुरे कर्म भी कराती है.

जरूरियात के साथ हमे आनंद, प्रशन्नता भी मिले-how to feel happiness in life

लेकिन बात इतनी ही नही हमें ये सब क्यू चाहिए ? जीवन टिकाने के लिए जो है उनसे बहुत ज्यादा हम पाना चाहते है क्यों ? क्योकि हम प्रसन्न रहना चाहते. हमे ख़ुशी चहिये. हमे आनंद चाहिए. हम ऐसा चाहते है की हमारे जीवन में दुःख हो ही नही !!

लेकिन कब असंतोष, ट्रेश, चिंता, भय, उद्वेग, depression आ जाता है हमे मालूम ही नही रहता. मतलब की

हम सुखी, आनंदित और अपने आप को हर हमेंशा प्रशन्न रखना चाहते है. लेकिन धीरे धीरे इन सारी बातो में मन इतना उलझ जाता है की इन सभी विषयों की सुरक्षा और चिंता हम करने लगते है !! यहा तक की उस विषयों के बदले हम अपना सुख चैन भी दाव पर लगा देते है.

केवल तन और मन के आधार पर जिए तो क्या होगा ? Think beyond mind and body

शरीर और मन जो चाहता अगर वही हम करते रहे तो पशुत्व की और आगे बढने में हमे कोई नही रोक शकता ? आप कहेगे ऐसा क्यों होता है ऐसा इसलिए होता है की जो इन्द्रिय हमारी है उनका भोग करते रहना ऐसी ही इच्छा मन में बार बार प्रगट होती है..

इनका कोई माप नही रहता.. यह बात खान पान की हो, या सम्भोग की इच्छा हो, या सत्ता सम्पति और ऐश्चर्य की हो.. ओंर भी ज्यादा..ओर भी ज्यादा के सुर गुजते है और आदमी अतृप्त हो के नंगा नाच करने तक नही रुकता..

यही बात मुश्किलें खड़ी कर देती है क्योकि अगर विवेक नही तो इसमें अपने आप ब्रेक लगती ही नही.. ऐसा क्यों होता है ? बहुत ही आसन है पुनरावर्तित क्रिया करने का जो गुण है और विषयों के प्रति जो लगाव है वही हमे ये सब कराता है..

जो आज किया वह कल करने की इच्छा होने लगती है.. क्योकि आज जो किया है उनके संस्कार भीतर स्टोर है और वही संस्कार फिर से उठते है और कुछ करने के लिए प्रेरित करते है.. दूसरी बात है अधुरप.. यह बहुत ही गहन है..

अगर आप मुझसे लम्बे समय तक जुड़े रहेगे तो आपको धीरे धीरे ये बात समज में आने लगेगी..स्व के अनुभव के बिना जो केवल बाह्य तमाशा देखते रहता है उसे भटकाव आ जाता है.. ये अँधेरा ऐसा है जो सोने से खड़ा हो जाता है और जागने से खत्म हो जाता है..

इनका कोई वजूद नही फिर भी है और दीखता भी है .. उनको झेलना आसान नही.. उनका वेग बहुत ही दुःख दायक और भयावह है.. अगर व्यक्ति को समुचित तरीके से जीना हो, आनंद से जीना हो और उपर उठते हुवे जीना है तो तन और मन को कोई एक मार्ग पर चलाना होगा..

जहा पर ब्रेक भी हो एक्सेलेटर भी हो.. युवा है तो केवल विषय ही चाहिए ऐसी सोच धीरे धीरे युवा के यौवन्त्व को खा जाएगी.. क्योकि उनकी पूरी शकती विषयों की और चली जाएगी. जो इश्वर से शकती मिली है वह शुल्लक बातो में बीत जाएगी.

अगर कोई इनके पीछे सोचे तो कुछ नही है स्त्री के शरीर के बारेमे सोचने वाले उनके शरीर के पीछे देखे तो कुछ हाथ नही आता.. इस तरह से ये एक अज्ञान ही है.. कोई अगर लम्बे समय से विषयों का भोग कर रहा है तो उनके अस्तित्व में कोई सुधार नही आया.. वह तृप्त भी नही हुवा..

बल्कि उनकी सेहत और स्वभाव दोनों बिगड़ता जा रहा है तो ये केवल पागलपन ही तो हुवा न !! अगर उसमे कुछ होता हो तो केवल यही करने से पूर्ण तृप्ति क्यों नही मिलती ? यहा से ही साधना का जन्म होता है modern spirituality से देखे तो हमे रूटीन जीवन इस तरह से जीना है की हमारी यात्रा आनंद और प्रशन्नता से भरपूर हो. हमे प्रत्येक कदम कदम पर तृप्ति का अहेसास हो.

Saturday, November 26, 2022

DIVOCE OR BREAKUP Conditions l Disturbed 2nd-4th-7th-8th House 🏡 l No Body can save the Marriage

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एस्ट्रोलॉजी पर चर्चा | What is astrology

 

एस्ट्रोलॉजी पर चर्चा हिंदी में

परिचय

ज्योतिष हमारे जीवन पर खगोलीय पिंडों के प्रभाव का अध्ययन है। हमारा सौर मंडल सूर्य से बना है, जिसके चारों ओर शनि, बृहस्पति, मंगल, शुक्र और बुध ग्रह अण्डाकार कक्षाओं में घूमते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है और पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। चूंकि ज्योतिष में चंद्रमा का महत्वपूर्ण स्थान होता है, इसलिए इसे पूर्ण ग्रह भी माना जाता है। चंद्रमा की कक्षा ग्रहण के तल (सूर्य की स्पष्ट कक्षा) के संबंध में झुकी हुई है, जिससे कि अपनी क्रांति के दौरान यह दो विपरीत बिंदुओं में क्रांतिवृत्त को पार करता है। इन बिंदुओं को राहु और केतु कहा जाता है और हिंदू ज्योतिष में ग्रह भी माने जाते हैं। वे केवल प्रतिच्छेदन बिंदु हैं और उनका कोई द्रव्यमान नहीं है, इसलिए उन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। यह समझने के लिए कि ग्रह पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं, खगोल विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण मूलभूत पहलुओं का अध्ययन करना आवश्यक है।

बेसिक एस्ट्रोलॉजी

ध्रुव: पृथ्वी एक गोला है और यदि पृथ्वी के केंद्र के माध्यम से एक लंबवत खींचा जाए , तो यह पृथ्वी के गोले के दोनों सिरों पर मिल जाएगा। इन बिंदुओं को ध्रुव कहा जाता है। एक को उत्तर और दूसरे को दक्षिण कहा जाता है। उत्तर और दक्षिण ध्रुवों पर कोई पूर्व या पश्चिम दिशा नहीं होता  है।

पृथ्वी की धुरी: पृथ्वी के केंद्र से होकर उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को जोड़ने वाली रेखा पृथ्वी की धुरी कहलाती है।

पृथ्वी की भूमध्य रेखा: वह बड़ा वृत्त, जिसका तल पृथ्वी के केंद्र से होकर गुजरता है और पृथ्वी को दो गोलार्द्धों (उत्तर और दक्षिण) में विभाजित करता है, भूमध्य रेखा है। वास्तव में, वृत्त को पृथ्वी की सतह से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर खींचे गए लंबों द्वारा रेखांकित किया गया है। इसलिए भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर दो ध्रुवों के बीच एक काल्पनिक रेखा है, यानी यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों से समान दूरी पर है, यानी 90 डिग्री उत्तर या दक्षिण।

पृथ्वी का मेरिडियन: पृथ्वी के भूमध्य रेखा के समानांतर एक विमान, जो इसके लंबवत अक्ष पर केंद्रित होता है और इसे पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों से गुजरने वाले विमानों द्वारा काटा जा सकता है। इन लंबवत वृत्तों को मेरिडियन कहा जाता है। पृथ्वी पर किसी स्थान के निर्देशांक कैसे निर्धारित करें।मापने के लिए, हमें एक बेंचमार्क स्थापित करने की आवश्यकता है। प्राचीन भारत में उज्जैन निर्वासन का स्थान था। लेकिन अब ग्रीनविच पूरी दुनिया के लिए रेफरेंस प्वाइंट बन गया है। किसी स्थान की स्थिति ग्रीनविच के देशांतर और अक्षांश के संबंध में उस स्थान के देशांतर और अक्षांश से निर्धारित होती है, अर्थात संदर्भ मंडल भूमध्य रेखा और ग्रीनविच मेरिडियन हैं।

देशांतर: उस बिंदु से दूरी जहां एक बिंदु के माध्यम से खींची गई भूमध्य रेखा भूमध्य रेखा को पार करती है, उस बिंदु का देशांतर कहा जाता है जहां संदर्भ मेरिडियन भूमध्य रेखा को पार करता है। यह पूर्व या पश्चिम है, जिसका अर्थ है कि ओटो 180 डिग्री पूर्व या पश्चिम में है।

राशियां

राशि चक्र को 12 राशियों में 30 ° से विभाजित किया गया है। ये इस प्रकार हैं:

प्रत्येक डिग्री (अंश) को फिर से निम्नानुसार उप-विभाजित किया जाता है:

१ राशि = ३० ° (३० डिग्री) / पहली डिग्री (अंसा) = ६० (६० कला) / १ मिनट (काला) = ६० सेकंड (विकला)।

यानी 20 डिग्री (संख्या), 20 मिनट (काला) और 20 सेकंड (विकला) को 20 डिग्री, 20 ‘, 20’ के रूप में दर्शाया जा सकता है।

तिथियां

30 तिथियां हैं – 15 शुक्ल पक्ष से जुड़े हैं और 15 कृष्ण पक्ष से जुड़े हैं, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

प्रत्येक ग्रह किस घर में उच्च और किस घर में नीच हैं, निचे बताया गया है।

सभी ग्रहों के अलग-अलग नाम

ग्रहों की दिशा :- 

नक्षत्रें

27 नक्षत्र हैं। लेकिन सर्वतो भद्र चक्र में अभिजीत नक्षत्र का भी प्रयोग किया जाता है। SBC में 28 नक्षत्रों का प्रयोग होता है। उनके नाम और विशेषताएँ अगले अध्याय में दी गई हैं। अभिजीत नक्षत्र का प्रयोग निम्नलिखित मामलों में नहीं किया जाता है:

  • घटनाओं के वर्ष का रिकॉर्ड – जन्म नक्षत्र के आधार पर जातक के जीवन के पहले वर्ष के रूप में।
  • अनुकूल और प्रतिकूल नक्षत्रों को 9 समूहों में विभाजित करके निर्धारित करें: एक समूह में तीन नक्षत्र।

ध्यान दें:-https://www.jyotishgher.in/

अभिजीत नक्षत्र 9 R 6° 40′ 0″ से 9s 10° 53′ 20″ तक फैला हुआ है।

नया चांद

अमावस्या के नाम से जाने जाने वाले महीने के अंतिम दिन चांद अदृश्य होता है। अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आकाश में एक छोटा वक्र दिखाई देता है। चांद के इस उदय को नया चांद के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

संक्रांति

जब सूर्य एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति के रूप में जाना जाता है। अर्थात। जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तो इसे मेष संक्रांति के रूप में जाना जाता है।

 

ग्रह – अस्त और उदय

जब कोई ग्रह अपने पारगमन के दौरान सूर्य के पास आता है या सूर्य ग्रह के पास आता है, तो सूर्य के तेज प्रकाश के कारण ग्रह गायब हो जाता है। उस घटना को ग्रह के अस्त के रूप में जाना जाता है। जब ग्रह फिर से प्रकट होता है और दिखाई देता है, तो इसे ग्रह के उदय (उदय) के रूप में जाना जाता है। मंगल, शनि और बृहस्पति हमेशा पश्चिम दिशा में अस्त होते हैं और फिर से पूर्व में उदय होते हैं। पश्चिम और पूर्व में भी बुध और शुक्र का अस्त हो रहा है। वे दोनों दिशाओं में उठते हैं।

ग्रह प्रतिगामी और प्रत्यक्ष

जब कोई ग्रह सीधे पारगमन में चलता है, तो इसे सीधा या सीधा कहा जाता है, और जब कोई ग्रह सूर्य की गर्मी के कारण दिशा बदलता है, तो इसे प्रतिगामी कहा जाता है। एक सीधा ग्रह हमेशा चलता रहता है। जबकि वक्री ग्रह का देशांतर धीरे-धीरे कम होता जाता है। सूर्य और चंद्रमा हमेशा सरल होते हैं। जबकि राहु और केतु हमेशा वक्री होते हैं। अन्य ग्रह भी सीधे और वक्री होते हैं। ग्रह की इस स्थिति को पंचांग से सीखा जा सकता है।

कुंडली की महत्वपूर्ण विशेषताएं – चक्र

  • प्रत्येक कुंडली में 12 भाव/भाव होते हैं।
  • भाव नं। 1, 4, 7, 10 को केंद्र/केंद्र (कोण) के रूप में जाना जाता है।
  • भाव नं। 5 और 9 को त्रिकोण / त्रिक (त्रिकोण) के रूप में जाना जाता है।
  • भाव नं। २, ५, ८, ११ को पनाफरस/पनाफरस (कैडेंट) के रूप में जाना जाता है।
  • भाव नं। ३, ६, ९, १२ को अपोक्लिमास / अपोक्लेमा (अनुवर्ती) के रूप में जाना जाता है।
  • अशुभ ग्रह सूर्य, अधेड़ चंद्रमा, मंगल, शनि, राहु, केतु, बुध हैं – जब भी अशुभ ग्रह होते हैं।
  • लाभकारी ग्रह हैं गुरु, शुक्र, वैक्सिंग चंद्रमा, बुद्ध – अकेले होने पर।

कुंडली में 12 भाव और उसका महत्व

 
 

कुंडली के बारे में अलग-अलग बातें

  • ५वें या ९वें भाव/ घर में कोई भी ग्रह अनुकूल परिणाम देता है।
  • तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव के स्वामी सदैव पापी होते हैं और यदि स्वामी पापी हों तो वे अनुकूल परिणाम नहीं देते हैं।
  • चौथे, सातवें और दसवें भाव के अनुकूल स्वामी १००% पापी होते हैं, यहां तक कि गुरु और शुक्र भी, यदि वे स्वयं या उच्चतर की रासी पर कब्जा नहीं करते हैं।
  • ४, ७, १०वें भाव के प्रतिकूल स्वामी १००% पक्ष में हैं।
  • ५वें और ९वें भाव के स्वामी १००% पक्ष का दावा करते हैं।
  • दूसरे और बारहवें भाव के स्वामी निष्पक्ष होते हैं यदि उनके पास कोई अन्य घर नहीं है।
  • अष्टम भाव का स्वामी सबसे अधिक पापी होता है।
  • अष्टम भाव के स्वामी भी लग्न के स्वामी 50% अनुकूल फल देते हैं।
  • चौथे, सातवें और दसवें भाव (गुरु और शुक्र) के स्वामी, यदि वे दूसरे या सातवें भाव में हैं, तो 100% पापी होते हैं और मारक बन जाते हैं।
  • चौथे, सातवें और दसवें भाव के स्वामी, यदि बुध दूसरे या सातवें भाव में हो तो ५०% पापी और ५०% मारक होता है।
  • चौथे, सातवें और दसवें भाव के स्वामी, यदि चंद्र दूसरे या सातवें भाव में हो तो 25% पापी और 25% मारक होता है।
  • यदि अष्टम भाव का स्वामी सूर्य या चंद्र हो तो 25% पापी होते हैं।
  • चौथे, सातवें और दसवें भाव के पापी स्वामी, साथ ही तीसरे, छठे, आठवें, ग्यारहवें भाव के स्वामी भी ५०% पापी होते हैं।
  • राहु या केतु, यदि 1, 4 वें, 7 वें, 10 वें, 5 वें या 9वें भाव में हों तो अनुकूल परिणाम देते हैं, बशर्ते कि उनके मालिक स्वामित्व का लाभ उठाएं और जब वे अत्यधिक अनुकूल ग्रह के साथ हों।
  • बुध की तुलना में चंद्र कम हानिकारक है।
  • बुद्ध गुरु और शुक्र से कम हानिकारक हैं।
  • नौवां भाव पांचवे भाव से अधिक बलवान होता है।
  • दसवां भाव सातवें भाव से अधिक बलवान होता है।
  • सप्तम भाव चौथे भाव से अधिक बलवान होता है।
  • छठा भाव तीसरे भाव से अधिक बलवान होता है।
  • 11वां भाव छठे भाव से अधिक बलवान होता है।
  • वक्री होने पर अशुभ ग्रह दुगना प्रतिकूल हो जाता है।
  • शुभ ग्रह वक्री होने पर दुगुना हो जाता है।
  • यदि चतुर्थ, ७वें, १०वें, ५वें और ९वें भाव के स्वामी पापी स्वभाव के हों तो वे प्रतिकूल परिणाम देते हैं, भले ही वे योगी के ग्रह हों (ऐसा तब होता है जब चौथे, सातवें, दसवें भाव के स्वामी पक्ष में हों)।
  • ज्योतिष एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसका व्यापक रूप से दुनिया भर के सभी मामलों, लोगों, युद्ध और शांति, बाजार में उतार-चढ़ाव, मूल जीवन और मृत्यु, खुश और दुखद घटनाओं, जीत और हार की भविष्यवाणी करने के लिए इसका इस्तेमाल किया है।
  • छठे, आठवें और बारहवें भाव के पापी स्वामी चौथे, सातवें और दसवें भाव के शुभ स्वामी की तुलना में कम प्रतिकूल होते हैं।
  • लग्न का स्वामी १००% शुभ होता है।
  • चौथे, सातवें और दसवें घर के पापी स्वामी, यदि 5 वें या 9 वें घर के मालिक भी योगी के ग्रह हैं।

नक्षत्रों के बारे में बात

राशि चक्र को 12 राशियों और 27 नक्षत्रों में बांटा गया है। प्रत्येक राशि में 2¼ नक्षत्र होते हैं और प्रत्येक नक्षत्र 13°20′ के बराबर होता है। ज्योतिष में नक्षत्रों की अहम भूमिका होती है। जन्म नक्षत्र को खगोल विज्ञान और SBC में सबसे महत्वपूर्ण सितारों में से एक माना जाता है। जन्म के समय नक्षत्र बहुत संवेदनशील माना जाता है।

ध्यान दें:-

  • जन्म नक्षत्र के अनुसार 2, 4, 8, 9, 11, 13, 15, 17, 18, 20, 22, 24, 26, 27, 27 नक्षत्रों को पसंदीदा माना जाता है।
  • जन्म नक्षत्र के अनुसार 1, 3, 7, 10, 12, 14, 16, 19, 21, 21, 23, 23, 25 नक्षत्रों को अशुभ माना जाता है।

नक्षत्रों का विवरण

  • जब भी लाभकारी ग्रह ऊपर बताए अनुसार लाभकारी नक्षत्र में होता है या जब लाभकारी ग्रह का लाभकारी वेध होता है, तो सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की जाती है।
  • जब भी कोई प्रतिकूल ग्रह ऊपर बताए गए प्रतिकूल नक्षत्र में वेदों को क्रियान्वित करता है, तो निश्चित रूप से प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • जब जन्म नक्षत्र में दो प्रतिकूल ग्रह पाए जाते हैं या प्रतिकूल वेध होते हैं, तो जन्म लेने वाला बीमार हो सकता है.
  • इसी प्रकार जन्म नक्षत्र, 10 और 19 नक्षत्र की एक साथ हार मृत्यु का संकेत देती है।


नक्षत्रों की प्रवृत्ति

  • जन्म नक्षत्र : यह अपने स्वभाव के अनुसार फल देता है, लेकिन इसका फल चिरस्थायी होता है।
  • संपत नक्षत्र: इस नक्षत्र में रखा गया ग्रह सबसे अधिक लाभकारी परिणाम देता है, व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव डालता है. लाभकारी ग्रह अधिक लाभकारी परिणाम देते हैं।
  • विपथ नक्षत्र : यह अपने स्वभाव के अनुसार अधिकतम विघ्न और प्रतिकूल परिणाम देता है। लेकिन सकारात्मक परिणाम नगण्य हैं। दूसरे शब्दों में। इस नक्षत्र में बृहस्पति संतान और परिवार के लिए प्रतिकूल परिणाम देता है।
  • क्षेम नक्षत्र: यह अनुकूल परिणाम देता है, जिसका आनंद पूरे परिवार को मिलता है।
  • प्रतियक नक्षत्र : यह प्रत्यक्ष फल नहीं देता है। यह निराशा देता है। यह अन्य लोगों को प्रभावित करता है जो परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते हैं।
  • साधक नक्षत्र : इस नक्षत्र का स्वामी या स्वामी ग्रह शत-प्रतिशत अनुकूल परिणाम प्राप्त करता है, लेकिन एक प्रयास के बाद. कुछ लोग जल्दी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करते हैं, लेकिन वे पीछे रह जाते हैं।
  • वध नक्षत्र: इस नक्षत्र में स्थित ग्रह जातक के आशावादी स्वभाव का संकेत देते हैं, लेकिन ऐसा कम ही होता है।
  • मित्र नक्षत्र: इस नक्षत्र में ग्रह मित्रों के माध्यम से सभी प्रकार की उपलब्धियों का संकेत देते हैं. खासकर जब प्रसिद्ध या अज्ञात लोगों के साथ यात्रा कर रहे हों।
  • आदी-मित्र नक्षत्र: इस नक्षत्र में ग्रह यात्रा करते समय किसी भी व्यक्ति या संगठन के माध्यम से परिणाम देते हैं। यदि इस स्थान पर प्रतिकूल ग्रह हो तो व्यक्ति की उपलब्धियों का नाश होता है।

नक्षत्र – पद और व्यंजन

दशा क्या है?

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में दशा एक महत्वपूर्ण कारक है। नौ ग्रहों में से प्रत्येक की दशा (अवधि) का व्यक्ति के व्यक्तित्व और स्वभाव के साथ-साथ जीवन के सभी पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष में विश्वास रखने वाले लोग दशाओं से भयभीत हो सकते हैं, क्योंकि सभी ग्रह समय-समय पर हमें कुंडली में अपनी अच्छी या बुरी स्थिति के आधार पर, सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के दशा परिणाम देते हैं।

वैदिक ज्योतिष में दशा शब्द का प्रयोग ग्रहों के जीवन को संकेत करने के लिए किया जाता है। ग्रहों की अवधि संकेत करती है कि उनकी स्थिति, स्थिति (राशि राशि), घर (भाव), संयोजन (योग या राज योग) या पहलुओं (द्रष्टि या दृश्य) के आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव कब होते हैं।

दशा के प्रकार

वैदिक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति उसके जीवन की दिशा निर्धारित करती है। इससे हम दशा के महत्व को समझ सकते हैं, जिसका हम पर गहरा और गंभीर प्रभाव पड़ता है। हमारे ज्योतिष शास्त्र में महादशा या विंशोत्तरी महादशा और अंतर्दशा दशा तीन प्रकार की होती है। ये स्थितियां, समय के साथ, हमारे कार्यों के परिणाम को निर्धारित कर सकती हैं। इनके साथ-साथ ये हमारे व्यक्तित्व पर भी अपनी छाप छोड़ते हैं।

निर्देशित ज्योतिष की दशा प्रणाली हिंदुओं के लिए अद्वितीय है। यह और कहीं नहीं मिलता। दशा प्रणालियां कई प्रकार की होती हैं, ऋषि पाराशर ने बयालीस दशा का उल्लेख किया है, लेकिन उनमें से केवल दो ही सामान्य हैं, अर्थात् विंशोत्तरी और अष्टोत्तरी। दशा किसी व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है, जिसमें दिखाया गया है कि ग्रह अपने प्रभाव को कैसे बांटा करते हैं। प्रत्येक दशा नौ ग्रहों में से एक द्वारा शासित होती है, और प्रत्येक अवधि की गुणवत्ता और सापेक्ष सद्भावना उस ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति से निर्धारित होती है। नौ ग्रह या ग्रह हैं जो विभिन्न नौ दशाओं पर शासन करते हैं: सात शास्त्रीय ग्रह, साथ ही चंद्रमा का उत्तरी नोड, राहु और चंद्रमा का दक्षिणी नोड, केतु।

महादशा

महादशा एक ऐसी अवधि है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सभी नौ ग्रह (ग्रहों) का शासन होता है। महादशा एक ऐसी अवधि है जो हर व्यक्ति के जीवन के दरवाजे पर दस्तक देती है। महादशा 120 साल तक फैली हुई है जो सभी नौ ग्रह (ग्रहों) में वितरित की जाती है। अलग-अलग महादशा के कारण हर व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं। नौ अलग-अलग महादशा काल हैं जो नौ अलग-अलग अंतरदशा में विभाजित हैं। महादशा और अंतर्दशा दोनों के बारे में जानकर हर व्यक्ति या लोग अपने जीवन के बारे में जान सकते हैं।

महादशा में ग्रह अपनी निश्चित वर्षों की संख्या के साथ

अन्तर्दशा 

ग्रहों की महादशा के ऊपर दिए गए वर्षों में, अन्य सभी ग्रहों को यात्रा करने का समय दिया जाता है जिसे अंतर्दशा कहा जाता है। इन वर्षों में ग्रहों की महादशा के साथ ही अंतर्दशा के स्वामी का भी प्रभाव देखा जाता है। ग्रहों की महादशा में उसी ग्रह की अन्तर्दशा सबसे पहले आती है, उसके बाद शेष ग्रह ऊपर बताए गए क्रम में आते हैं।

उदाहरण के लिए, शुक्र की पहली अंतर्दशा शुक्र-शुक्र है, दूसरी अंतर्दशा शुक्र-सूर्य है, तीसरी अंतर्दशा शुक्र-चंद्रमा है, आगे की अंतर्दशा शुक्र-मंगल है, पांचवीं अंतर्दशा शुक्र-राहु है, छठी अंतर्दशा शुक्र है। – बृहस्पति, सातवीं अंतर्दशा शुक्र-शनि, आठवीं अंतर्दशा शुक्र-बुध है, नौवीं अंतर्दशा शुक्र-केतु है।

ग्रहों के इस उपखंड द्वारा, हम सभी ग्रहों की महादशा और अंतर्दशा के विभिन्न प्रभावों का अध्ययन कर सकते हैं जो हमें मार्गदर्शन कराते हैं कि पहले क्या हुआ है और भविष्य के जीवन चक्र में क्या होगा।

ध्यान दें:-

6,8,12 भाव में ग्रहण की दशा अच्छी नहीं है। इसलिए इन ग्रहों के स्वामी की दशा भी जीवन चक्र में परेशानी देती है। शुभ ग्रह में शुभ ग्रह की अंतर्दशा शुभ फल देती है। शुभ ग्रह में अशुभ ग्रह की अंतर्दशा अशुभ फल देती है।