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Friday, September 3, 2021

कुंडली मिलान में नाड़ी-दोष

 

कुंडली मिलान में नाड़ी-दोष:


  • आदि नाड़ी- अश्विनी, आर्द्रा पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी,हस्ता, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पुर्वाभाद्रपद,
  • मध्य नाड़ी- भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पुर्वाफाल्गुनी,चित्रा, अनुराधा, पुर्वाषाढा, धनिष्ठा, उत्तरासभाद्रपद,
  • अन्त्य नाड़ी- कृतिका, रोहिणी, अश्लेशा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा, श्रवण, रेवती, आदि नाड़ी ,मध्य नाड़ी व अन्त्य नाड़ी का यह विचार सर्वत्र प्रचलित है,

नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है 
तथा 
वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है,

जब भी हम किसी वरकन्या के कुंडली मिलान के लिए जाते हैं तो नाड़ी शब्द के बारे में जिक्र अवश्य आता है या बहुत बार बताया जाता है के “नाड़ी दोष” होने से कुंडली मिलान ठीक नहीं हो रहा है तो आइये जानते हैं के नाड़ी दोष क्या होता है और कुंडली मिलान में इसका क्या महत्व है –

कुंडली मिलान के अंतर्गत किये जाने वाले “अष्टकूट” मिलान में वर्णवश्यतारायोनिग्रह मैत्रीगणभृकुट और नाड़ी इन आठ घटकों को मिलाया जाता है जिनमे से प्रत्येक का अपना अलग महत्व है और इन्ही आठ कूटों से मिलकर ३६ गुण बनते हैं जिससे हम सब अवगत हैं परन्तु इन आठ कूटों में भी नाड़ी को बहुत विशेष महत्व दिया गया है इसी लिए 36 में से सर्वाधिक 8 नंबर नाड़ी को दिए गये हैं।

जन्म होने पर जातक की जन्मकुंडली निर्माण में जिस प्रकार उसका जन्म नक्षत्रराशिलग्न आदि निशित किये जाते हैं उसी प्रकार जन्मकालीन नक्षत्र स्थिति के अनुसार व्यक्ति की नाड़ी निश्चित होती है जिससे हमारे जीवन के कुछ विशेष घटकों का आंकलन किया जाता है। नाड़ी तीन होती हैं – “आद्या” “मध्या” “अंत्या” प्रत्येक नाड़ी हमारे स्वस्थ्य के विषय में कुछ विशेष जानकारी देती है।  किस व्यक्ति की कौनसी नाड़ी होगी यह उसके जन्म नक्षत्र से निश्चित किया जाता है। अब विशेष बात यहां कुंडली मिलान में नाड़ी दोष को लेकर है नाड़ी दोष के बारे में यह बड़ी रोचक बात है के कुंडली मिलाते समय वर कन्या की  बाकि सभी चीजों ( वर्णवश्य तारगण आदिका समान होना बहुत शुभ माना गया है परन्तु यदि वर और कन्या की नाड़ी सामान हो अर्थात दोनों की एक ही नाड़ी हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता और इसे ही नाड़ीदोष  कहते हैं। कुंडली मिलान में वर और कन्या की नाड़ियां अलग अलग होनी चाहिये। सामान नाड़ी होने पर 36 गुणों में नाड़ी के लिए निश्चित 8 अंक में से शून्य अंक मिलते हैं और वर कन्या की नाड़ी अलग होने पर पूरे 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं जो विवाह और विवाहोपरांत अपनी विशेष भूमिका निभाते हैं।



Doshas Cancellation Naadi:

This guna carries 8 points.If this guna is not matching then it is considered as a Mahadosha (Major defect)and thedoshacaused due to its mismatch is considered cancelled if one or more of the following conditions are satisfied.

(1) Both have same Rashi but different constellations.

(2) Both have same constellation but different Rashi.

(3) Both have same birth constellation but different Charans (parts).

समान नाड़ी में दोष क्यों –

नाड़ी का सम्बन्ध हमारे स्वास्थसंतान पक्ष और मनोदशा से है परन्तु इनमे भी “स्वास्थ पक्ष” को नाड़ी विशेष प्रभावित करती है। मानव शरीर में “वात” “पित्त” और “कफ” प्रकृतियों का एक निशित मात्रा में संतुलन रहता है जिसका प्रतिनिधित्व यही तीन नाड़ियां करती हैं इसके लिए यह श्लोक भी प्रसिद्ध है –

“आदौ वातौ  वहती।मध्ये पित्ते तथैव च।

अंतये  वहती श्लेष्मा।नाडिका त्रय लक्षणम्”।। (आयुर्वेद)

आद्या नाड़ी वात प्रधान मध्या नाड़ी पित्त प्रधान और अन्त्या नाड़ी कफ प्रधान होती है जिस व्यक्ति की जो नाड़ी होती है उस नाड़ी की प्रकृति के अनुसार  ही उस  व्यक्ति में वातपित्त या कफ की अधिकता प्राकर्तिक रूप से ही होती है जैसे आद्या नाड़ी वाले व्यक्ति के शरीर में वात की अधिकता होती है मध्या नाड़ी वाले व्यक्ति में पित्त की अधिकता होती है और अन्त्य नाड़ी कफ की अधिकता देती है अब किसी व्यक्ति में जिस तत्व की अधिकता पहले से ही है यदि वह उस तत्व की प्रधानता वाली वस्तुओं का सेवन करे या ऐसी वास्तु या व्यक्तियों के अधिक संसर्ग में रहे तो व्यक्ति में अपनी प्रकृति के अनुसार वातपित्त या कफ की अधिकता बहुत बढ़ जाएगी और आयुर्वेद के अनुसार वातपित्त या कफ का संतुलन बिगड़ना ही रोगों की उत्पत्ति का कारण माना गया है अतः जब वर और कन्या की नाड़ी समान होगी तो दोनों में एक ही तत्व (वातपित्त,कफकी अधिकता होगी जिससे विवाहोपरांत दोनों के स्वास्थ में उतार चढाव और रोगोत्पत्ति की अधिक सम्भावनाएं होंगी इसी लिए कुंडली मिलान में समान नाड़ी को दोष माना गया है  इसके आलावा वर कन्या की नाड़ी समान होने पर उनमे विकर्षण की उत्पत्ति होती है ( जिस प्रकार चुम्बक के समान ध्रुवों में विकर्षण होता हैजो की वैवाहिक सम्बन्धोंसन्तानोत्पत्ति आदि के लिए अच्छा नहीं है यह भी समान नाड़ी में दोष का एक कारण है। इसके अतिरिक्त नाड़ी को मनोदशा का सूचक भी माना गया है ज्योतिष में वर्णित ये तीन नाड़ियां हमारे मन की तीन अलग अलग अवस्थाओं को निर्धारित करती है आद्या नाड़ी “आवेग” (जल्दबाजी में रहना) मध्या नाड़ी “उद्वेग” (अवसाद में रहना) और अन्तया नाड़ी “संवेग” (असमंजस की स्थिति में रहना) की सूचक है अब यदि वर वधु दोनों की मानसिक एक जैसी होना भी अच्छा नहीं है क्योंकि दोनों ही व्यक्ति (पति-पत्नि) यदि जल्दबाजी या हड़बड़ाहट में रहने वाले हो, अवसाद में रहने वाले हों या असमंजस में रहने वाले होंगे तो एक दूसरे को किस प्रकार सहायता कर पाएंगे इस दृष्टिकोण से भी कुंडली मिलान में समान नाड़ी वर्जित मानी गयी है अतः कुंडली मिलान और इसमें भी नाड़ी दोष पूर्णतः गहन अध्य्यन और वैज्ञानिक शैली पर ही आधारित है।

नाड़ी दोष का परिहार –

कुंडली मिलान के अंतर्गत कुछ विशेष स्थितियों में नाड़ी दोष का परिहार या काट हो जाती है और नाड़ी दोष उपस्थित होने पर भी नगण्य हो जाता है –

१. यदि वर और कन्या के जन्म नक्षत्र तो समान हों परन्तु राशि अलग अलग हों तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।

२. यदि वर और कन्या की राशि समान हों परन्तु नज्म नक्षत्र अलग अलग हों तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।

३. यदि वर और कन्या की राशि और नक्षत्र दोनों ही समान हों परन्तु नक्षत्र के चरण अलग अलग हों तो भी नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।

नोट – यदि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष हो और ऐसे में वर और कन्या की राशि, नक्षत्र और नक्षत्र का चरण भी समान हो तो नाड़ी दोष परिहार नहीं होता परिहार के लिए राशि और नक्षत्र में से एक की समानता और एक की भिन्नता होनी चाहिए और यदि राशि व नक्षत्र दोनों समान हों तो नक्षत्र के चरण  अवश्य अलग अलग होने चाहिए तभी परिहार माना जाता है तीनो चीज सामान होने पर परिहार नहीं होता। नाड़ी दोष होने पर इसके परिहार की सम्भावना तभी होती है जब वर कन्या की राशि या नक्षत्र निकटतम हों अर्थात आस पास के हों।

विशेष – यदि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष हो और उसका परिहार भी ना हो रहा हो तो ऐसे में विवाह ना करने का ही परामर्श दिया जाता है परन्तु किसी विशेष परिस्थिति में यदि नाड़ी दोष होने पर भी विवाह करना ही हो तो इसकी दोष शांति उपाय के लिए वर-वधु द्वारा संकल्प कराकर “महामृत्युंजय” मंत्र के सवालाख मंत्रों का अनुष्ठान योग्य ब्राह्मण से कराकर सामर्थ्यानुसार सप्तधान्य आदि दान करने के बाद विवाह करना चाहिए।



नाड़ी दोष उपाय-

  • वर एवं कन्या की मध्य नाड़ी हो तो पुरुष को प्राण भय रहता है, ऐसी स्थिति मे पुरुष को महामृत्यंजय जाप करना या करवाना अतिआवश्यक है, यदि वर एवं कन्या दोनो की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री को प्राणभय की सम्भावना रहती है, इसलिए इस स्थिति मे कन्या महामृत्युजय का पाठ अवश्य करवाए|
  • नाड़ी दोष होने पर संकल्प लेकर किसी ब्राह्मण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिए|
  • अपनी सालगिराह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान करें, एवं साथ मे ब्राह्मण भोजन कराकर वस्त्र दान करें|
  • वर एवं कन्या मे से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिए|