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Tuesday, April 30, 2024

Santan Gopal Mantra: A Powerful Mantra for Seeking Children

 

Santan Gopal Mantra | संतान गोपाल मन्त्र – पुत्र प्रदायक है




Santan Gopal Mantra: A Powerful Mantra for Seeking Children

The Santan Gopal Mantra, also known as the "Govind Gopal Mantra," is a sacred Hindu chant dedicated to Lord Krishna in his child form, Bal Gopal. It is believed to be a powerful mantra for couples seeking children, especially those facing difficulties in conceiving.

Meaning of the Mantra:

The mantra is in Sanskrit and can be translated as:

"O Devaki's son, Govinda, Vasudeva, Lord of the universe, give me a son, O Krishna, I take refuge in you."

Significance of the Mantra:

  • Lord Krishna as Gopal: Lord Krishna is often worshipped in his child form, Gopal, as he represents innocence, purity, and divine love.
  • Deity of Progeny: Lord Krishna is also associated with the blessing of progeny. He is believed to remove obstacles and bestow the gift of parenthood.
  • Supplication for a Child: The mantra is a direct plea to Lord Krishna, seeking his blessings for a child. It expresses the deep desire and devotion of couples yearning for parenthood.
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Benefits of Chanting the Mantra:

  • Increased Fertility: Believed to enhance fertility and improve chances of conception.
  • Healthy Pregnancy: Associated with a healthy and uneventful pregnancy.
  • Auspicious Birth: Said to promote the birth of a healthy and virtuous child.
  • Overall Well-being: Believed to bring overall well-being to the family, including mental, emotional, and spiritual harmony.

Chanting the Mantra:

  • Timing: The mantra can be chanted at any time, but it is considered particularly auspicious to chant it during sunrise or sunset.
  • Place: Choose a clean and quiet place for chanting.
  • Preparation: Take a bath and wear clean clothes. Sit in a comfortable position and light a ghee lamp or incense.
  • Chanting: Chant the mantra with devotion and focus. You can use a mala (prayer beads) to keep count of your repetitions.
  • Repetition: The ideal number of repetitions is 108, but you can chant as many times as you feel comfortable.
  • Faith: Have faith in the power of the mantra and approach it with a sincere heart.

Additional Tips:

  • Combine with Meditation: Incorporate meditation into your chanting practice to enhance its effectiveness.
  • Seek Guidance: Consider seeking guidance from a spiritual teacher or guru for personalized advice on chanting and meditation techniques.
  • Maintain a Healthy Lifestyle: Alongside chanting, adopt a healthy lifestyle with a balanced diet, regular exercise, and adequate sleep to support your fertility goals.

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 संतान गोपाल मन्त्र – पुत्र प्रदायक है

Santan Gopal Mantra / संतान गोपाल मन्त्र- पुत्र प्रदायक है इसका जप श्री कृष्णजी के बालरूप चित्र के समक्ष यदि पति-पत्नी दोनों संकल्पपूर्वक, प्रतिदिन, नियमित तथा विधिवत रूप से, धुप-दीप-नैवैद्य के साथ करते है तो जातक को अवश्य ही मनोवांछित पुत्र संतान की प्राप्ति होगी ऐसा शास्त्रीय वचन है। वस्तुतः शास्त्रों में संतान इच्छा पूर्ति के लिए ऐसे ही अनेक उपाय बताए गए हैं, जिनसे बिना किसी परेशानी या आर्थिक बोझ के इच्छा की पूर्ति हो सकती है, उनमे संतान गोपाल मन्त्र भी है।

Santan Gopal Mantra | संतान गोपाल मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

संतान गोपाल मन्त्र का जप कैसे करें

संतान गोपाल मन्त्र का जप श्री कृष्ण जन्माष्टमी अथवा किसी शुभ मुहूर्त में ही प्रारम्भ करना चाहिए। पाठ का प्रारम्भ किसी सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा श्रद्धापूर्वक करवाना चाहिए यदि ऐसा संभव नही हो तो जातक स्वयं प्रारम्भ करना चाहिए। स्वयं पाठ करना अति श्रेष्ठकर माना जाता है। मन्त्र जप से पहले विनियोग, अंगन्यास तथा ध्यान करना चाहिए तदुपरांत बीज मंत्र का जप करना चाहिए।

विनियोग :- श्री सन्तानगोपालमंत्रस्य श्री नारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः श्री कृष्णो देवता गलौं बीजं नमः शक्ति पुत्रार्थे जपे विनियोगः।

अंगन्यास :- देवकीसुत गोविन्द हृदयाय नमः, वासुदेव जगतपते, शिरसे स्वाहा, देहि में तनयं, कृष्ण शिखायै वषट, त्वामहं शरणम् गतः कवचाय हुम्, ॐ नमः अस्त्राय फट।।

ध्यान :- निम्न मंत्रो का ध्यान जप के साथ करना चाहिए।

वैकुण्ठादागतं कृष्णं रथस्य करुणानिधिम्। किरीटसारथिम् पुत्रमानयन्तं परात्परम्।

आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाय च। अपर्यन्तम् महाभागं ध्यायेत् पुत्रार्थमच्युतम्।।

बीज मन्त्र :-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

ऊपर बताये गए विधियों के अनुसार सन्तान गोपाल मन्त्र का जप तब तक करनी चाहिए जब तक आपकी मनोकामना की पूर्ति न हो जाए। मन्त्र जप के लिए तुलसी के माला का ही प्रयोग करना चाहिए। प्रतिदिन एक या दो माला का जप अवश्य करनी चाहिए। कुल सवा लाख मन्त्र जप करने का विधान है। मन्त्र जप पूरा होने पर कुल मन्त्र के जप का दशांश हवन, तर्पण तथा मार्जन अवश्य ही करना चाहिए। इसके बाद कम से कम पांच ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।

Santan Yoga | जाने आपकी कुंडली में संतान सुख है या नहीं

  1. क्या मेरे कुंडली में संतान योग है ?
  2. यदि संतान योग है तो पुत्र है या पुत्री या दोनों ?
  3. क्या मेरे बच्चे मेरा ख्याल रखेंगे ?
  4. क्या मेरे बच्चे मुझसे प्रेम करते है ?
  5. क्या मेरे बच्चे की शिक्षा अच्छी होगी ?

पंचम भाव संतान भाव है यही वह स्थान है जहा से हम गर्भ से सम्बंधित विचार करते है इसी कारण इस भाव का बहुत ही महत्त्व है। इस भाव का कारक ग्रह गुरु है तथा संतान का कारक भी गुरु ग्रह है। अतः यदि पंचम भाव तथा उस भाव का स्वामी तथा इस भाव एवं संतान का कारक ग्रह गुरु शुभ स्थिति में है तो अवश्य ही संतान सुख मिलता है।

कैसे करे ? संतान सुख का निर्धारण

1. किसी भी जन्मकुण्डली में यदि पंचमेश बली उच्च या मित्र राशि होकर लग्न, पंचम, सप्तम अथवा नवम भाव में स्थित हो तथा कोई भी पापी वा अशुभ ग्रह की न ही दृष्टि हो और न ही साथ हो तो वैसे जातक को संतान सुख प्राप्त होता है।

लग्नातपुत्रकलत्रभे शुभ पति प्राप्तेsथवाsलोकिते

चन्द्रात वा यदि सम्पदस्ति हि तयोर्ज्ञेयोsन्यथाsसम्भवः।

2. अर्थात यदि लग्न से पंचम भाव में शुभ ग्रह का योग या पंचमेश पंचम में ही हो तथा पंचम भाव को उसका स्वामी देखता हो या शुभ ग्रह देखता हो तो पुत्र सुख की प्राप्ति होती है।जन्म कुंडली में लग्न तथा चन्द्र राशि से पंचम भाव के स्वामी और बृहस्पति/ गुरु अगर शुभ स्थान वा केंद्र या त्रिकोण में स्थित तथा किसी अशुभ ग्रह से दृष्ट नहीं हैं तो आपको निश्चित ही संतान सुख हैं।

3. यदि कुण्डली में पंचम भाव का स्वामी तथा गुरू बली अवस्था में हो और लग्नेश की दृष्टि गुरू पर हो तो जन्म लेने वाला संतान आज्ञाकारी होता है।

4. पंचम भाव में अगर वृष, सिंह, कन्या अथवा वृश्चिक राशि सूर्य के साथ हों एवं अष्टम भाव में शनि और लग्न स्थान पर मंगल विराजमान हों तो संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है.

5. संतान कारक ग्रह बृहस्पति (Jupiter) अगर बली हो साथ ही लग्न स्वामी तथा पंचम भाव के स्वामी के साथ दृष्टि या युति सम्बन्ध हो तो निश्चित ही संतान सुख होता है।

6. लग्नेश व नवमेश यदि जन्मकुंडली( Horoscope) में सप्तम भाव में स्थित हैं तो संतान सुख प्राप्त मिलता है।

7. एकादश भाव में शुभ ग्रह बुध, शुक्र, अथवा चंद्र में से एक भी ग्रह हो तो संतान का सुख मिलता है इसका मुख्य कारण है की इस स्थान से ग्रह पुत्र /संतान भाव को देखता है।

8. पंचम भाव में यदि राहु या केतु हो तो संतान योग वा संतान सुख मिलता है।

9. नवम भाव में गुरू, शुक्र एवं पंचमेश हो तो उत्तम संतान का योग बनता है

10. कुण्डली में लग्न से पंचम भाव शुक्र अथवा चन्द्रमा के वर्ग में हों तथा शुक्र और चन्द्रमा से युक्त हों उसके कई संतानें होती हैं।

पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र देता है

पुत्रदा एकादशी व्रत, पुत्रदा एकादशी व्रत वर्ष में दो बार आती है। एक पौष माह में तथा दूसरा श्रवण मास में। पौष /श्रावण / सावन मास में शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को मनाया जाता है । यह व्रत हमें पुत्र लाभ दिलाता है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस व्रत को करता है वह संतान सुख प्राप्त करता है। इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी चिंता और समस्या शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।

पुत्रदा एकादशी व्रत विधि | Method of Putrada Ekadashi Vrat

जो जातक पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। उस दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए। यदि आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना श्रेष्ठ माना गया है। स्नान करने के बाद शुद्ध वा साफ कपड़ा पहनकर विधिवत भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

भगवान् विष्णु देव की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं तथा पुनः व्रत का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करना चाहिए। कलश को लाल वस्त्र से बांध कर उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखें, प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहना देना चाहिए। उसके बाद पुनः धूप, दीप से आरती करनी चाहिए और नैवेध तथा फलों का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद प्रसाद का वितरण करे तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। रात में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान के बाद ही खाना खाना चाहिए।

एकादशी का व्रत बिलकुल ही पवित्र मन से करना चाहिए। अपने मन में किसी प्रकार का व्रत के प्रति ऐसी वैसी शंका नहीं या पाप विचार नहीं लाना चाहिए। इस दिन झूठ नहीं बोले तो अच्छा होगा । व्रती को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा शाम में पूजा के बाद फलाहार करना चाहिए।

भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। संतान की ईच्छा रखने वाले निःसंतान व्यक्ति को इस व्रत को करने से शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अतः संतान प्राप्ति की ईच्छा रखने वालों को इस व्रत को श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Story of Putrada Ekadashi Vrat

पुत्रदा एकादशी कथा के सम्बन्ध में कहा गया है कि प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में ‘महीजित’ नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था। वह बहुत ही शांतिप्रिय, ज्ञानी और दानी था। सभी प्रकार का सुख-वैभव से सम्पन्न था परन्तु राजा संतान कोई भी संतान नहीं था इस कारण वह राजा बहुत ही दुखी रहता था।

एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। उन ऋषियों में दिव्यज्ञानी लोमेश ऋषि ने कहा- ‘राजन ! आपने पूर्व जन्म में सावन / श्रावण मास की एकादशी के दिन आपके तालाब एक गाय जल पी रही थी आपने अपने तालाब से जल पीती हुई गाय को हटा दिया था। उस प्यासी गाय के शाप देने के कारण तुम संतान सुख से वंचित हो। यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करो तो तुम्हारा शाप दूर हो जाएगा। शाप मुक्ति के बाद अवश्य ही पुत्र रत्न प्राप्त होगा।’

लोमेश ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया। उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से रानी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। पुत्र लाभ से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और पुनः वह हमेशा ही इस व्रत को करने लगा। उसी समय से यह व्रत लोक में प्रचलित हो गया। अतः जो भी व्यक्ति निःसन्तान है और संतान की इच्छा रखता हो वह व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से करता है तो अवश्य ही उसकी इच्छा की पूर्ति है कहा जाता है की भगवान् के घर में देर है पर अंधेर नहीं।

एकादशी व्रत मे क्या नहीं करना चाहिए | What should not do in Ekadashi Vrat

‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत जो भी करता है उसे एकादशी पूर्व अर्थात दशमी तिथि को तथा एकादशी के दिन निम्लिखित बातों का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए।

  1. दशमी तथा एकादशी तिथि के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए
  2. दशमी तिथि की रात्रि में शहद, शाक, चना तथा मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए
  3. व्रत पूर्व दशमी तिथि के दिन व्यक्ति को मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. व्रत के दिन और व्रत से एक दिन पूर्व रात्रि में कभी भी मांग कर खाना नहीं कहना चाहिए।
  5. व्रत की अवधि मे व्यक्ति को जुआ नहीं खेलना चाहिए।
  6. एकादशी व्रत हो या अन्य कोई व्रत, व्यक्ति को दिन में नहीं सोना चाहिए।
  7. दशमी तिथि को पान नहीं खाना चाहिए।
  8. व्रत के दिन दातुन से मुह नहीं धोना चाहिए।
  9. झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  10. व्रत के दिन दुसरो की निन्दा नहीं करनी चाहिए।