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Saturday, August 24, 2019

अष्टकवर्ग के द्वारा जन्म कुण्डली का निरीक्षण | Inspection of Birth Chart Through Ashtakavarga

अष्टकवर्ग के द्वारा जन्म कुण्डली का निरीक्षण | Birth Chart Through Ashtakavarga





अष्टकवर्ग के सिद्धांतो का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद ही कुण्डली की विवेचना करनी चाहिए. सबसे पहले यह देखा जाना चहिए कि किस ग्रह ने कितने बिन्दु किस भाव में दिए हैं और ग्रह स्वयं जिस राशि में स्थित है वहाँ कितने बिन्दु हैं. जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपने भिन्नाष्टक में 5 या अधिक बिन्दुओ के साथ होता है और सर्वाष्टक में 28 या अधिक बिन्दुओ के साथ होता है तब वह ग्रह बहुत ही श्रेष्ठ व उत्तम परिणाम देता है.
लेकिन आपको कुण्डली का अध्ययन करने के लिए अष्टकवर्ग के नियमों के साथ अन्य पराशरी नियम भी लगाने चाहिए कि ग्रह कब शुभ तो किन परिस्थितियो में अशुभ फल प्रदान करेगा. यदि ग्रह शुभ होकर नीच या अस्त है तब वह शुभ फल प्रदान नहीं करेगा.
कई बार कोई ग्रह किसी भाव में 4 या इससे भी कम अंक प्राप्त करता है और उसी भाव में अपनी उच्च में स्थित होता है तब भी ज्यादा शुभ परिणाम ग्रह से नहीं मिलते हैं. कई बार ग्रह अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में 4 या इससे से भी कम बिन्दुओ के साथ होता है तब भी जातक को अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं. इसका क्या कारण हो सकता है आइए जाने. इसके लिए दशा/अन्तर्दशा  और व्यक्ति की कुण्डली में उस समय में चलने वाला गोचर देखा जाना चाहिए कि क्या है.
अष्टकवर्ग में ग्रहों का गोचर मुख्य भूमिका निभाता है. विशेषतौर पर शनि का गोचर. माना शनि गोचर में ऎसी राशि से गुजर रहा है जिसमें सूर्यादि ग्रह अपने भिन्नाष्टक वर्ग में कोई बिन्दु नहीं दे रहे हैं तब शनि का यह गोचर बिन्दु ना देने वाले ग्रहों के कारकत्व के अनुसार बीमारी, मृत्युतुल्य कष्ट या कोई अन्य बुरी घटना आदि देने का कारण बन सकते हैं.
उदाहरण के लिए सूर्य शारीरिक स्वास्थ्य की ओर इशारा करता है तब ऎसी राशि में शनि का गोचर, जहाँ सूर्य ने 0 बिन्दु दिए हैं, में शारीरिक समस्याओं को जन्म देगा. उदाहरण के लिए यदि जन्म कुण्डली में सूर्य द्वारा गृहीत राशि में और उससे नवम राशि में भी 0 बिन्दु है तब जिस समय शनि इस नवम भाव में गोचर करेगा उस समय व्यक्ति के पिता की चिन्ताएँ बढ़ सकती है, स्वास्थ्य हानि हो सकती हैं और यदि उस समय जातक की दशा भी प्रतिकूल चल रही हो तब मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट भी सहना पड़ सकता है.
शनि के गोचर का अष्टकवर्ग में जो उदाहरण सूर्य के लिए दिया गया है ठीक उसी प्रकार अन्य ग्रहों को भी इसी तरह से देखा जा सकता है. जैसे चंद्रमा माता का कारक होता है और बुध को चाचा-चाची या सगे संबंधियों के लिए देखा जाता है. मंगल को छोटे बहन-भाईयो के लिए लिया जाता है. इन सभी का अध्ययन भी सूर्य की भांति ही करेगें जिसका हमने ऊपर उदाहरण लिया है. ऎसा नहीं है कि अष्टकवर्ग से केवल अशुभ फल ही देखे जाते हैं. अष्टकवर्ग से हम जीवन के किसी भी क्षेत्र के फलों का अध्ययन कर सकते हैं. बृहस्पति के गोचर से शुभ फलों को जाना जा सकता है. नौकरी कब लगेगी, विवाह कब होगा आदि बहुत से प्रश्नो का उत्तर अष्टकवर्ग के द्वारा जाना जा सकता है.
अष्टकवर्ग में जिस ग्रह के पास जितने अधिक बिन्दु होते हैं वह उतने ही शुभ फल प्रदान करता है और परिणम उतना ही श्रेष्ठ भी होता है. माना किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में द्वितीयेश के पास 5 से अधिक बिन्दु है और द्वितीयेश जिस राशि में स्थित है और द्वितीय भाव में 28 से अधिक बिन्दु है तब ऎसा व्यक्ति अवश्य ही अपने जीवन में धनवान बनता है.
अन्त में हम कहना चाहेगें कि आप सभी को अष्टकवर्ग का एक नियम सदा ध्यान में रखना चाहिए कि कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि में अथवा स्वराशि में होने पर भी तब तक शुभ फल नही देता है जब तक कि उसके भिन्नाष्टक में पर्याप्त बिन्दु उसे मिल नहीं मिल जाते हैं.
  • सभी ग्रह 0 से 3 बिन्दुओ के साथ स्थित होने पर निर्बल माने जाते हैं.
  • 4 बिन्दुओ के साथ स्थित ग्रह को सामान्य माना जाता है. ना शु भ और ना ही अशुभ.
  • 5 से अधिक बिन्दुओ के साथ स्थित होने पर ग्रह को बली माना जाता है.

जन्म कुण्डली में अष्टकवर्ग बहुत महत्व रखता है. इसमें दिए बिन्दुओं द्वारा बहुत सी बातों का विश्लेषण किया जा सकता है कि जीवन का कौन सा भाग शुभ फल देने वाला होगा और कौन सा भाग अशुभ फल देने वाला होगा. इसके अतिरिक्त अष्टकवर्ग द्वारा व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में राजयोग भी देखे जा सकते है और वह सभी राजयोग निम्नलिखित हैं :-  

  • जन्म कुण्डली में मंगल और शुक्र उच्च राशि में हो, शनि व बृहस्पति त्रिकोण भाव में हो और लग्न में 40 से अधिक बिन्दु स्थित हो तब इसे राजयोग माना जाता है.
  • यदि लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न तीनो में ही 30 बिन्दु स्थित है तब व्यक्ति अपने प्रयासों से जीवन में उन्नति करता है और आगे बढ़ता है.
  • यदि सूर्य और बृहस्पति अपनी-अपनी उच्च राशियों में 30 बिन्दुओ के साथ स्थित है और लग्न के बिन्दुओ की संख्या, अन्य भावों के बिन्दुओ से अधिक है व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है.
  • जन्म कुण्डली के चतुर्थ और एकादश दोनो भावों में प्रत्येक में 30-30 बिन्दु हो तब व्यक्ति 40 वर्ष की उम्र में समृद्ध होता है.
  • जन्म कुण्डली के लग्न, चन्द्र राशि, दशम और एकादश भाव में प्रत्येक में 30-30 बिन्दु हो और लग्न अथवा चंद्रमा, बृहस्पति से दृष्ट हो तब ऎसा व्यक्ति राजा के समान माना गया है.
  • जन्म कुण्डली में मंगल तथा शुक्र अपनी-अपनी उच्च राशियों में हों, शनि कुंभ्ह में हो और बृहस्पति धनु राशि में 40 बिन्दुओ के साथ लग्न में हो तब इसे राजयोगकारी माना गया है.
  • जन्म कुण्डली में उच्च का सूर्य लग्न में और चतुर्थ भाव में बृहस्पति 40 बिन्दुओ के साथ हो तब यह स्थिति भी राजयोगकारी मानी गई है.
  • जन्म कुण्डली में शुभ ग्रह केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हों और उनसे संबंधित सर्वाष्टकवर्ग के भावों में प्राप्त बिन्दुओ की संख्या द्वारा इंगित आयु का समय जातक के लिए अच्छा माना गया है.
  • पति-पत्नी की जन्म कुण्डलियों में एक-दूसरे की चंद्र राशि में 28 बिन्दु से अधिक होने पर वैवाहिक जीवन अच्छा होता है.

उपरोक्त राजयोगों के अलावा हम अपने पाठकगणों को सर्वाष्टकवर्ग में दिए गए कुल बिन्दुओ के फल के बारे में भी बताने का प्रयास कर रहे हैं जो निम्नलिखित हैं :-

बिन्दु परिणाम – Results From Bindu(Point) in Astrology
14 बिन्दु  – कष्टकारी और मृत्युभय देने वाले
15 बिन्दु – सरकार से भय रहने की संभावना बनती है
16 बिन्दु – दुर्भाग्य
17 बिन्दु – बीमारी अथवा स्थान की हानि
18 बिन्दु – धन हानि
19 बिन्दु – सगे संबंधियों से लड़ाई-झगडे की संभावना
20 बिन्दु – व्यय अधिक होगा और जातक कुकर्मो में लिप्त रहेगा
21 बिन्दु – बीमारी अथवा धन की हानि
22 बिन्दु – स्मरण व विवेक शक्ति की हानि, कमजोरी व सगे संबंधियो से परेशानी
23 बिन्दु – मानसिक चिन्ताएँ, कष्ट और हानि
24 बिन्दु – अचानक हानि अथवा अतिव्ययता से धनहानि
25 बिन्दु – दुर्भाग्य
26 बिन्दु – परेशानियाँ, शिथिलता, स्वभाव में अस्थिरता
27 बिन्दु – व्यय अधिक, व्याकुलता, अस्पष्ट विचार और दुविधाजनक मस्तिष्क
28 बिन्दु – धन लाभ लेकिन संतोषजनक नही
29 बिन्दु – व्यक्ति सम्मान पाता है.
30 बिन्दु – यश, कीर्ति व सम्मान मिले
31 से 33 बिन्दु – प्रयास अच्छे व मान-सम्मान की प्राप्ति
34 से 40 बिन्दु – व्यक्ति सभी प्रकार की भौतिक सुख-समृद्धि पाता है
41 बिन्दु – उत्तम धन संपत्ति और अन्य कई स्तोत्रो से आय
42 बिन्दु – भौतिक सुख, धार्मिक, धनवान, प्रेम व सम्मान की जातक को प्राप्ति हो
43 बिन्दु – धन संपत्ति और खुशी मिलें
44 – 45 बिन्दु – एक से अधिक स्तोत्रो से धनलाभ, मान – सम्मान
46 – 47 बिन्दु –  व्यक्ति सभी गुणो तथा सुखो से युक्त, पवित्र व श्रेष्ठ कार्य करे