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Thursday, July 30, 2020

PRIMARY EDUCATION YOGA IN KUNDLI

PRIMARY EDUCATION YOGA IN KUNDLI
इन्सान शिक्षा के बिना अधूरा होता है। शिक्षा व्यक्तित्व का विकास करती है और साथ-साथ आपके आत्म-विश्वास में वृद्धि भी करती है। शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्सान अपने करियर पर फोकस करता है जिससे वह एक बेहतरीन लाइफ जी सके। अगर आपको पहले से पता चल जाये कि आपकी शिक्षा आपको किस क्षेत्र में ले जायेगी तो कितना अच्छा रहेगा। आईये आपको बताते है कि कुण्डली के अनुसार आपकी शिक्षा क्या कहती है।

कुण्‍डली में पांचवे भाव से आरंभिक शिक्षा (elementry to greduate level education) और नौंवे भाव से उच्‍च शिक्षा (higher than graduation) देखी जाती है। जिस वातावरण में विद्यार्थी पढ़ता है वह वातावरण चौथे भाव से देखा जाता है।

चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। अगर मानसिकता मजबूत हो तो जातक हर तरह के बेहतर परिणाम दे सकता है। पढ़ाई में भी यही बात लागू होती है। चौथा, पांचवां और नौंवा भाव बेहतर होने के बावजूद चंद्रमा खराब होने पर विद्यार्थी को एकाग्रता में कमी और चि‍ड़चिड़ेपन की समस्‍या हो सकती है।


1 सर्वप्रथम जातक के बचपन से ही उसकी कुण्डली विषय की पढाई व केरियर चयन में सहायक होती हैं ।

2 जातक की कुण्डली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय ।

3 जातक की 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच की ग्रह दशा का सुक्ष्म अध्ययन कर यह देखना चाहिए की दशा किस प्रकार के कार्यक्षेत्र का संकेत दे रही हैं ।

4 आगामी गोचर या दशा कार्यक्षेत्र में तरक्की का संकेत दे रहा हैं या नहीं ? इसका भी परिक्षण कर लेना चाहिए ।



शिक्षा में महत्वाकांक्षा –

जन्म कुण्डली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान हैं जिसके स्वामी देव गुरू बृहस्पति हैं यह भाव शिक्षा मंि महत्वाकांक्षा व उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्तर की होगी को दर्शाते हैं यदि इसका सम्बन्ध पंचम भाव से हो जाए तो अच्छी शिक्षा तय करते हैं ।

 

शिक्षा का स्तर –

जन्म कुण्डली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतिन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, याददाश्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता हैं । यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता हैं।

 

शिक्षा किस प्रकार होगी –

जन्म कुण्डली का चतुर्थ भाव मन का भाव हैं । यह इस बात का निर्धारण करता हैं कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी । जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि, अस्त राशि, शत्रुराशि में बैठा हो व कारक ग्रह (चन्द्रमा) पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता हैं ।

शिक्षा का उपयोग –

जनम कुण्डली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता हैं तथा यह दर्शाता हैं कि शिक्षा आपने ग्रहण की हैं वह आपके लिए उपयोगी हैं या नहीं हैं। यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं करता हैं ।

 

जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए इस हेतु हम मुलतः निम्न चार पाठ्यक्रम (विषय) ले सकते हैं – गणित , जीव विज्ञान, कला और वाणिज्य –

 

गणित –

गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता हैं तो वह गणित में सफल होता हैं । यदि लग्न, लग्नेश या बुध बली एवं शुभ दृष्ट हो, तो उसके गणित में पारंगत होने की संभावना बढ़ जाती हैं । शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से संबंध बनाएं तो जातक मशीनरी कार्य में दक्ष होता हैं । इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति, दशमस्थ बुध एवं सूर्य पर बली मंगली की दृष्टि, बली शनि एवं राहु का संबन्ध, चन्द्र व बुध का संबंध, दशमस्थ राहु एवं षष्ठस्थ यूरेनस आदि योग तकनीकी शिक्षा के कारक होते हैं ।

जीवविज्ञान –

सूर्य का जल राशिस्थ होना, छठे एवं दशम भाव/भावेश के बीच संबंध, सूर्य एवं मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं । लग्न/लग्नेश एवं दशम/दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती हैं।

कला –

पंचम/पंचमेश एवं कारक गुरू का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का कारक होता हैं। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढाई पूरी करवाने में सक्षम होती हें । पापी ग्रहों की दृष्टि-युति संबंध कला के क्षेत्र में पढाई में अवरोध उत्पन्न करता हैं । लग्न व दशम का शनि व राहु से संबंध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता दिवलाता हें। 10 वें भाव का संबंध सूर्य, मंगल, गुरू या शुक्र से हो तो जातक जज बनता हैं ।

वाणिज्य –

लग्न/लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरू से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलतापूर्वक करता हैं ।



अच्छी शैक्षणिक योग्यता के महत्वपूर्ण योग:-

1. द्वितीयेश या बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो।

2. पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो।

3. पंचमेश की पंचम भाव में बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो।

4. बृहस्पति , शुक्र और बुध में से कोई केन्द्र या त्रिकोण में हो।

शैक्षणिक योग्यता का अभाव या न्यूनता: –

1. पंचम भाव में शनि की स्थिति और उसकी लग्नेश पर दृष्टि हो।

2. पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या अशुभ ग्रहों की स्थिति हो।

3. पंचमेश नीच राशि में हो और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो।

विभिन्न ग्रहों के शिक्षा सम्बन्धी प्रतिनिधित्व का विवरण अंकित किया जा रहा हैं जिसके आधार पर ग्रहों की उपरोक्त भावों में स्थिति को देखकर जातक के लिए उपयुक्त विषय का चयन किया जा सकता हैं।

सूर्य: – चिकित्सा, शरीर विज्ञान, प्राणीशास्त्र, नेत्र-चिकित्सा, राजभाषा, प्रशासन, राजनीति, जीव विज्ञान।

चन्द्र: – नर्सिंग, नाविक शिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान (जूलोजी), होटल प्रबन्धन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान, जलदाय

मंगल: – भूमिति, फौजदारी, कानून, इतिहासस, पुलिस सम्बन्धी प्रशिक्षण, ओवर-सियर प्रशिक्षण, सर्वे अभियांत्रिकी, वायुयान शिक्षा, शल्य चिकित्सा, विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग या अन्य तकनीकी शिक्षा, खेल कूद सम्बन्धी प्रशिक्षण , सैनिक शिक्षा, दंत चिकित्सा

गुरू: – बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्यशास्त्र, विविध, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा।

बुध: – गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पर्दाथ विज्ञान, मानसशास्त्र, हस्तरेखा ज्ञान, शब्दशास्त्र (भाषा विज्ञान), टाइपिंग, तत्व ज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, शिक्षक प्रशिक्षण।

शुक्र: – ललितकला (संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि), फिल्म, टी0वी0, वेशभूषा, फैशन डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं अन्य विविध कलाएं।

शनि: – भूगर्भशास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी, यांत्रिकी, भवन निर्माण, मुद्रण कला (प्रिन्टिंग)।

राहु: – तर्कशास्त्र, हिप्नोटिजम, मेस्मेरिजम, करतब के खेल (जादू, सर्कस आदि), भूत-प्रेत सम्बन्धी ज्ञान, विष चिकित्सा, एन्टी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स।

केतु: – गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र सम्बन्धी ज्ञान।

वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों एवं शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही हैं। अतः ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता हैं।


पढ़ाई में लगे विद्यार्थियों को सरस्‍वती मंत्र का जाप करने से पढ़ी सामग्री को तेजी से याद करने और उसे बेहतरीन तरीके से प्रस्‍तुत करने में सहायता मिल सकती है। तंत्र में बीजमंत्र से युक्‍त सरस्‍वती मंत्र को महामंत्र तक कहा गया है।

‘’ऐं वद् वद् वाग्‍वादिनी स्‍वाहा’’

हालांकि तंत्र में इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए बड़ी संख्‍या में जाप करने के लिए कहा जाता है, लेकिन विद्यार्थी रोजाना सुबह नहा धोकर, साफ सुथरे आसन पर बैठकर एक माला का जाप नियमित रूप से करे तो कुछ ही महीनों में इसका शानदार परिणाम दिखाई देने लगता है।

अगर जाप करने से पूर्व ग्‍यारह बार अनुलोम विलोम प्राणायाम किया जाए तो विद्यार्थी की इडा और पिंगला दोनों नाडि़यां चलने लगती है और मंत्र अधिक तेजी से सिद्ध होता है। किसी भी विद्यार्थी के लिए सुबह पंद्रह मिनट की यह प्रक्रिया अपनाना मुश्किल नहीं है। इससे शिक्षा संबंधी शानदार परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।



राशियों के अनुसार आराध्य देव

मेष (aries) राशि के विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए सूर्य सहायक है। ऐसे जातकों को रोजाना सुबह सूर्य नमस्‍कार करना चाहिए और सूर्य भगवान को अर्ध्‍य देना चाहिए। इन छात्रों का रूटीन जितना नि‍यमित होगा, पढ़ाई में उतने ही अच्‍छे परिणाम हासिल कर पाएंगे।

वृष (turus) राशि के जातकों को के लिए पढ़ाई का कारक ग्रह बुध है। इन जातकों को नियमित रूप से गणेशजी की आराधना करनी चाहिए। इन जातकों को बार-बार रिवीजन करते रहने की जरूरत है।

मिथुन (gemini) राशि के जातकों के लिए शुक्र पढ़ाई का कारक है। ऐसे जातकों को देवी आराधना करना लाभदायी है। पढ़ते समय कमरे का वातावरण अगर खुश्‍बूदार होगा तो ये बेहतर एकाग्र हो पाएंगे।

कर्क (cancer) राशि के जातकों की पढ़ाई के लिए मंगल कारक ग्रह है। नियमित अध्‍ययन के साथ रोजाना हनुमान मंदिर जाने से परीक्षाओं में अंकों का प्रतिशत तेजी से बढ़ सकता है।

सिंह (Leo) राशि के जातकों के लिए गुरु पढ़ाई का कारक है। नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जाप करना और विष्‍णु मंदिर जाने से छात्रों को विद्याध्‍ययन में लाभ होगा।

कन्‍या (virgo) एवं तुला राशि के छात्रों के लिए शनि की आराधना लाभदायक रहती है। रोजाना शनि मंदिर जाना और प्रत्‍येक शनिवार तेल एवं तिल की वस्‍तुएं चढ़ाने से शनिदेव प्रसन्‍न होते हैं।

वृश्चिक राशि के छात्रों के लिए गुरु शिक्षा दिलाने वाला है। सरस्‍वती मंत्र का जाप करने और सरस्‍वती के मंदिर जाना लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

धनु राशि के लिए मंगल कारक है। इन छात्रों को नियमित रूप से हनुमान मंदिर जाना चाहिए।

मकर राशि के छात्र देवी आराधना कर शिक्षा में बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हैं।

कुंभ राशि के जातकों को गणपति की आराधना करने से अध्‍ययन क्षेत्र में सफलता मिलेगी

मीन राशि के छात्रों के लिए चंद्रमा शिक्षा का कारक है। ये छात्र शिव आराधना कर अच्‍छे परिणाम हासिल कर सकते हैं।