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Wednesday, August 14, 2019

पंच महापुरुष : पंच महापुरुष योग :यह 5 योग

पंच महापुरुष : आश्चर्यजनक रूप से प्रगति देते हैं यह 5 योग | पंच महापुरुष योग – कुंडली में कैसे बनते हैं पंच महापुरुष योग? 




कब बेअसर होते हैं पंच महापुरुष योग

यदि आपकी कुंडली में उपरोक्त योग बन रहे हैं और इनका कोई सकारात्मक परिवर्तन या प्रभाव आप अपने जीवन में नहीं देख रहे हैं तो उसके भी कारण हैं। इस अवस्था में यह संभव है कि इन योगों पर पाप ग्रहों की कुदृष्टि पड़ रही हो। यदि इन अवस्थाओं में राहू केतु जैसे ग्रहों की युति हो या सपष्ट तौर पर इन्हें देख रहे हों तो यह योग निष्प्रभावी रहने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं।


क्या हैं पंच महापुरुष योग

मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि पंच महापुरुष योग बनाते हैं जो कि जातक के लिये बहुत ही शुभ माने जाते हैं इनमें मंगल रूचक योग बनाते हैं तो बुध भद्र नामक योग का निर्माण करते हैं वहीं बृहस्पति से हंस योग बनता है तो शुक्र से मालव्य एवं शनि शश योग का निर्माण करते हैं। इन पांचों योगों को ही पंच महापुरुष योग कहा जाता है।





पँच महापुरुष योग में – रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश योग आते हैं मंगल (Mars) से “रूचक” योग बनता है, बुध (Mercury) से “भद्र” , बृहस्पति (jupiter) से “हंस “,  शुक्र (venus) से “मालव्य ” और शनि (saturn) से “शश” योग बनता है इन पांच योगो का किसी कुंडली में एक साथ बनना तो दुर्लभ है परन्तु यदि पँच महापुरुष योग में से कोई एक या एक से अधिक भी  कुंडली में बने तो एक खूबसूरत ऊर्जावान व्यक्तित्व का निर्माण करता है , हलाकि पौराणिक ज्योतिषीय ग्रंथो में इन्हे महापुरुष योग कहा गया है परन्तु अगर ये किसी स्त्री जातक की कुंडली में भी है तो उन्हें भी इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है और वे अपनी ऊर्जा और प्रतिभा से समाज के उत्थान के लिए कोई विशेष कार्य करती है।



कुंडली में कैसे बनते हैं पंच महापुरुष योग

रुचक योग – पंच महापुरुष योगों में मंगल की स्थिति से जो योग बनता है वह रूचक योग कहलाता है। जब जातक की कुंडली में मंगल स्वराशि यानि मेष या वृश्चिक या फिर उच्च का जो कि मकर में होता है होकर जातक की कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में बैठा हो तो रूचक महापुरुष योग का निर्माण होता है। यह योग जातक को निर्भिक, बलशाली, ऊर्जावान एवं पराक्रमी बनाता है। ऐसे जातक अपने बल, बुद्धि और ऊर्जा का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में करते हैं। इन्हें शत्रुओं का कोई भय नहीं होता एवं एक बार जिस काम को यह जातक ठान लेते हैं फिर उसे परिणति तक लेकर ही जाते हैं। ये जातक अधेड़ उम्र में भी तरूण समान प्रतीत होते हैं।

भद्र योग – बुद्धि के कारक बुध इस योग का निर्माण उस समय करते हैं जब वे स्वराशि जो कि मिथुन एवं कन्या हैं के होकर केंद्र भाव यानि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम स्थान में बैठे हों तो भद्र महापुरुष योग का निर्माण करते हैं। यह योग जातक को बुद्धिमान तो बनाता ही साथ ही इनकी संप्रेषण कला भी कमाल की होती है। रचनात्मक कार्यों में इनकी रूचि अधिक होते हैं ये अच्छे वक्ता, लेखक आदि हो सकते हैं। इनके व्यवहार में ही भद्रता झलकती है जिससे सबको अपना मुरीद बनाने का मादा रखते हैं।


हंस योग – इस योग की श्रृष्टि देवगुरु ग्रह बृहस्पति करते हैं। जब गुरु स्वराशि धनु या मीन या फिर अपनी उच्च राशि कर्क में होकर पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव में बैठे हों तो इसे हंस महापुरुष योग कह सकते हैं। हंस योग जिनकी कुंडली में होते वे बहुत ही ज्ञानी और ईश्वर की विशेष कृपा पाने वाले जातक होते हैं। इनकी समाज में काफी प्रतिष्ठा होती है। इनके स्वभाव में संयम और परिक्वता झलकती है। समस्याओं का समाधान ढूंढने में इन्हें महारत हासिल होती है। ये बहुत अच्छे शिक्षक और प्रबंधक की भूमिका निभा सकते हैं। 


मालव्य योग – मालव्य योग का निर्माण शुक्र करते हैं जब शुक्र वृषभ और तुला जो कि स्वराशि हैं या फिर मीन जो कि इनकी उच्च राशि है में होकर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या फिर दसवें भाव में विराजमान हों तो यह योग मालव्य महापुरुष योग कहलाता है। ऐसे जातक सुख-समृद्धि से संपन्न होते हैं। इनका रूझान कलात्मक और रचनात्मक कार्यों के प्रति अधिक होता है। माता लक्ष्मी की इन पर विशेष अनुकम्पा होती है। तमाम भौतिक सुखों का आनंद लेते हैं। दांपत्य जीवन का सुख भी इन्हें खूब मिलता है।



शश योग – मकर और कुंभ शनि की राशियां हैं तुला में शनि उच्च के होते हैं यदि इन राशियों में होकर शनि केंद्र से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है। जिन जातकों की कुंडलिका में शश योग बनता है वे उच्च पदों पर आसीन होते हैं। इनकी समझ काफी गहरी होती है। आम जन के बीच भी इन्हें काफी प्रसिद्धि मिलती है। ये अपने कर्तव्यनिष्ठ और कर्मठ व्यक्तित्व के धनी होते हैं। शनि की कृपा से इन्हें दु:ख, तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ता। 




CONCLUSION:

1.रूचक-
यदि मंगल अपनी स्वराशि मेष या वृश्चिक अथवा उच्च राशि मकर में स्थित होकर जन्मपत्रिका के केन्द्र स्थान में हो तो 'रूचक' नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति साहसी होता है। वह अपने गुणों के कारण धन, पद व प्रतिष्ठा प्राप्त करता है एवं जग प्रसिद्ध होता है।

2.भद्र-
यदि बुध अपनी स्वराशि मिथुन या कन्या अथवा उच्च राशि कन्या में स्थित होकर जन्मपत्रिका के केन्द्र स्थान में हो तो 'भद्र' नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कुशाग्र बुद्धि वाला होता है। वह श्रेष्ठ वक्ता, वैभवशाली व उच्चपदाधिकारी होता है।
3. हंस-
यदि गुरु अपनी स्वराशि मीन या धनु अथवा उच्च राशि कर्क में स्थित होकर जन्मपत्रिका के केन्द्र स्थान में हो तो 'हंस' नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान व आध्यात्मिक होता है एवं विद्वानों द्वारा प्रशंसनीय होता है।

4.मालव्य-
यदि शुक्र अपनी स्वराशि वृषभ या तुला अथवा उच्च राशि मीन में स्थित होकर जन्मपत्रिका के केन्द्र स्थान में हो तो 'मालव्य' नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्वान, स्त्री सुख से युक्त,यशस्वी,शान्त चित्त,वैभवशाली,वाहन व सन्तान सुख से युक्त होता है।
5.शश-
यदि शनि अपनी स्वराशि मकर या कुंभ अथवा उच्च राशि तुला में स्थित होकर जन्मपत्रिका के केन्द्र स्थान में हो तो 'शश' नामक योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति उच्चपदाधिकारी, राजनेता, न्यायाधिपति होता है। वह बलवान होता है। वह धनी,सुखी व दीर्घायु होता है।