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Wednesday, August 17, 2022

Krishna Janmashtami Puja Vidhi and Mantra : जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि मंत्र सहित विस्तार से, ऐसे करें कान्हा की पूजा

 

Krishna Janmashtami Puja Vidhi and Mantra : जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि मंत्र सहित विस्तार से, ऐसे करें कान्हा की पूजा


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि मंत्र जानिए विस्तार से ताकि जन्माष्टमी की पूजा में आपसे किसी प्रकार की चूक न हो। कहते हैं जो श्रद्धालु भक्त जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की विधि पूर्वक पूजा करते हैं वह पाप मुक्त होकर उत्तम गति और सुख पाते हैं।

पूजन सामग्री: लड्डू गोपाल की मूर्ति, एक सिंहासन, पीले वस्त्र, मोरमुकुट, बांसुरी, छोटी गाय की मूर्ति, पीला चंदन, अक्षत, गंगाजल, पंचामृत, गाय का दूध, दही, शहद, एक खीरा, गाय का घी, दीपक, बाती, धूपबत्ती, तुलसी दल, माखन, मिश्री तथा अन्य भोग सामग्री।


जन्माष्टमी पूजा विधि
रात्रि 12 बजे शुभ मुहूर्त में लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान करवाकर उन्हें नए पीले रंग के नए वस्त्र पहनाएं और उनका कुंडल, मुकुट, वैजयंती माला आदि से शृंगार करें। इसके बाद कान्हा जी को सिंहासन पर बिठाकर चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। इसके पश्चात कृष्ण भगवान की धूप, दीप से आरती करें। फिर माखन, मिश्री, तुलसी दल समेत सभी भोग सामग्री चढ़ाएं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन कान्हा जी को झूला झुलाने से वे प्रसन्न होते हैं। तत्पश्चात कान्हा जी के समक्ष हाथ जोड़कर मन में प्रार्थना करें। इसके बाद भोग बांटकर और स्वयं ग्रहण करके व्रत का पारण करें।


 जन्माष्टमी का त्योहार हर साल भाद्र मास की कृष्णजन्माष्टमी और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर साल की तरह इस साल भी भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाएगी। पुराणों के अनुसार इसी तिथि में श्रीकृष्ण ने कंस के कारागार में जन्म लिया था और वासुदेवजी ने कान्हा को रातोंरात नंदगांव पहुंचा दिया था। अगले दिन नंदगांव में कन्हा का जन्मोत्सव मनाया गया था। इसी परंपरा के अनुसार भाद्र मास में कृष्ण पक्ष में जिस रात मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि होती है उस रात को जन्माष्टमी और अगले दिन जन्मोत्सव मनाते हैं। दोनों दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। श्रीकृष्ण पूजा मंत्र विधि सहित आप भी जानिए और इस जन्माष्टमी आप भी विधि विधान सहित श्रीकृष्ण की पूजा करके अपने जीवन को सफल और सुखी बनाएं।श्रीकृष्ण की पूजा करते समय सबसे पहले इनकी प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष हाथ में जल लेकर बोलें-


ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा। 
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। 
जल को स्वयं पर और पूजन सामग्री पर छींटे लगाकर पवित्र करें।


हाथ में फूल लेकर श्रीकृष्ण का ध्यान करें :
वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्। 
देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।। 
हे वसुदेव के पुत्र कंस और चाणूर का अंत करने वाले, देवकी को आनंदित करने वाले और जगत में पूजनीय आपको नमस्कार है।


जन्माष्टमी पूजन संकल्प मंत्र :
‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये।
हाथ में जल, अक्षत, फूल या केवल जल लेकर भी यह संकल्प मंत्र बोलें, क्योंकि बिना संकल्प किए पूजन का फल नहीं मिलता है।

भगवान श्रीकृष्ण आवाहन मंत्रः
जिन्होंने भगवान की मूर्ति बैठायी है उन्हें सबसे पहले हाथ में तिल जौ लेकर मूर्ति में भगवान का आवाहन करना चाहिए, आवाहन मंत्र- 
अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्। 
स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।। 
तिल जौ को भगवान की प्रतिमा पर छोड़ें।

आसन मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। 
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।। 
जल छोड़ें।

भगवान को अर्घ्य दें :
अर्घा में जल लेकर बोलें- अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। 
करुणां करु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।। 
जल छोड़ें।



आचमन मंत्र :
अर्घा में जल और गंध मिलाकर बोलें- सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धं निर्मलं जलम्। 
आचम्यतां मया दत्तं गृहत्वा परमेश्वर।। 
जल छोड़ें।

स्नान मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें- गंगा, सरस्वती, रेवा, पयोष्णी, नर्मदाजलैः। 
स्नापितोअसि मया देव तथा शांति कुरुष्व मे।।
 जल छोड़ें।


पंचामृत स्नान :
अर्घा में गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद मिलाकर भगवान श्रीकृष्ण को यह मंत्र बोलते हुए पंचामृत स्नान कराएं- 
पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु। 
शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।। 
भगवान को स्नान कराएं।

अर्घा में जल लेकर भगवान को फिर से एक बार शुद्धि स्नान कराएं।

भगवान श्रीकृष्ण को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र :
हाथ में पीले वस्त्र लेकर यह मंत्र बोलें- 

शीतवातोष्णसन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। 
देहालअंगकरणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।

 भगवान को वस्त्र अर्पित करें।

यज्ञोपवीत अर्पित करने का मंत्र:
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। 
आयुष्मयग्यं प्रतिमुन्ज शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

 इस मंत्र को बोलकर भगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें।

चंदन लगाने का मंत्र:
फूल में चंदन लगार मंत्र बोलें- 

श्रीखंड चंदनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। 
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्।। 

भगवान श्रीकृष्ण को चंदन लगाएं।

भगवान को फूल चढाएंः
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। 
मयाआहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।। 
भगवान को फूल अर्पित करने के बाद माला पहनाएं।

भगवान को दूर्वा चढाएंः
हाथ में दूर्वा लेकर मंत्र बोलें – दूर्वांकुरान् सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्। आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर।।

भगवान को नैवेद्य भेंट करेंः
इदं नाना विधि नैवेद्यानि ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि।

भगवान को आचमन कराएंः
इदं आचमनम् ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि।

इसके बाद भगवान को पान सुपारी अर्पित करके प्रदक्षिणा करें और यह मंत्र बोलें- 
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। 
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।

Aarti krishna Bhajan Aarti Kunj Bihari Ki : आरती कुंजबिहारी की कुंजबिहारी की, गिरिधर कृष्णमुरारी की


आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।


आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;

अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;

चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।

टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥