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Monday, August 26, 2019

उपपद लग्न और अरुद्ध लग्न क्या ? :हर्षि जैमिनी

उपपद लग्न और अरुद्ध लग्न क्या



आरूढ़ लग्न
बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि आरूढ़ लग्न जैमिनी ज्योतिष विधि है जबकिं महर्षि पाराशर ने आरूढ़ लग्न की व्याख्या की है । आरूढ़ को महर्षि जैमिनी ने विस्तृत व्याख्या की और इसे एक स्वतन्त्र ज्योतिष की शाखा में परिवर्तित किया जो अत्यंत प्रभावशाली विधि मानी जाती है ।


तो सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आरूढ़ है क्या इसका सिद्धान्त क्या है ?

इसका सिद्धान्त समझने के लिए मैं आपको दर्पण द्वारा आपकी इमेज बनाने के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता हूँ।
विज्ञानं के सभी विद्यार्थी इसे जानते होंगे ।
दर्पण में जो प्रतिबिम्ब बनता है उसमें वस्तु दर्पण से जितनी दुरी पर होगी प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनेगा (समतल दर्पण ) ।
ठीक यही सिद्धान्त आरूढ़ का है।


किसी भाव का स्वामी उस भाव से जितनी दूर स्थित होगा तो भाव स्वामी जहाँ है वहां से उतने ही भाव आगे गिनने पर आरूढ़ मिलेगा ।


अब अगर किसी भाव का lord चार या दस स्थान आगे है तो वो ही स्थान उस भाव का अरुधा होगा और भाव स्वामी उसी भाव में या सप्तम भाव में उपस्थित है तो वंहा से दशम स्थान उस भाव का अरुधा होगा। 


आरूढ़ सभी भावों का होता है ।
अब लग्न के आरूढ़ को आरूढ़ लग्न कहते हैं जबकि अन्य सभी भावों के आरूढ़ आरूढ़ पद कहलायेंगे ।
12 वें भाव के आरूढ़ को भी अलग नाम UL कहा जायेगा ऐसा नियम है ।
अब समझें मान लीजिए कर्क लग्न की कुंडली है और चंद्र 6वें भाव में स्थित है तो भाव (1 ) के स्वामी की भाव से दूरी हुई 6 (लग्नेश 6 भाव में है) ।
अब भाव स्वामी जहाँ स्थित है (चंद्र) वहां से उतने ही(6) भाव गिनने पर भाव मिला 11 तो इस कुंडली का आरूढ़ लग्न 11 वें भाव में होगा ।
इसी प्रकार सभी भावों के आरूढ़ पद प्राप्त करते हैं ।


आरूढ़ की आवश्यकता क्या है ?
आइये समझते हैं..
यह संसार द्विगुण के सिद्धांत पर निर्मित है । इसे यूँ समझें कि एक तो आप स्वयं हैं (trueself) जिसे कोई पूरा नहीं जानता यहाँ तक कि आप स्वयं भी नहीं और दूसरा आपकी इमेज अर्थात एक आप हैं जो छुपे हुए है और एक आपका प्रतिबिम्ब जो आपके आस पास का समाज आपमें देखता है ।
इसे थोड़ा और विस्तार से समझते हैं मान लीजिए आपकी कॉलोनी में एक बिलकुल नए व्यक्ति रहने आते हैं ।
अब उस व्यक्ति के बारे में अधिक कोई कॉलोनी वासी नहीं जानता है किंतु मनुष्य स्वभाव जिज्ञासु है वह जल्द से जल्द उसके बारे में जानना चाहता है ।
तो कुछ दिन में उसकी एक इमेज बन जायेगी कॉलोनी में ।
यह आवश्यक नहीं कि जो इमेज बनी है उस व्यक्ति की वह वही हो जो वह व्यक्ति वास्तव में है । हो सकता है वह एक सख्त ,मूडी व्यक्ति के रूप में जाना जाये जबकिं वह व्यक्ति शर्मीला या संकोची हो ।
तो लग्न हुआ वह व्यक्ति वास्तविक रूप में
और आरूढ़ हुआ उसकी इमेज ।
अब इसे और विस्तार देते हैं ।
इस इमेज का ज्योतिष में क्या कार्य?
आइये देखें
आरूढ़ इमेज है यानि भौतिक जगत से सम्बन्ध इसका आपके वास्तविक स्वयं से कोई लेना देना नहीं है ।
तो देखें 4 भाव से वहां देखते हैं
अब वाहन और वाहन सुख दो अलग चीजें हैं
कोई व्यक्ति किसी छोटे वाहन (साइकिल या स्कूटर) के साथ भी प्रसन्न हो सकता है और एक अन्य व्यक्ति किसी लग्जरी वाहन के साथ भी दुखी हो सकता है ।
अब सवाल है इसका आरूढ़ से कोई सम्बन्ध है क्या ?
देखिये पाराशर ने फलादेश के सिद्धांत निश्चित किये हुए हैं ।
लग्न चक्र के साथ जो घटना देखनी है उसका विशिष्ट वर्ग चक्र, आरूढ़ इत्यादि का क्रम बद्ध अध्ययन सूक्ष्म फलादेश तक लेजायेगा और सही दशा का चुनाव(पाराशर ने भिन्न भिन्न गतनाओं हेतु भिन्न भिन्न दशाओं के प्रयोग की सलाह दी है ) सही समय प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाता है ।
वाहन के लिए D 16 वर्ग चक्र देखा जाना चाहिये।
तो 4 भाव वाहन का इसका आरूढ़ भौतिक रूप से वाहन के सुख और वाहन के प्रकार को प्रदर्शित करेगा । उदहारण के लिए 4 भाव पर गुरु शुक्र का प्रभाव बड़े वाहन को सूचित करेगा किन्तु यदि A4(चतुर्थ भाव का आरूढ़ पद) शनि (यदि कुंडली का अच्छा ग्रहः नहीं हो) या ऐसे किसी भी ग्रहः के प्रभाव में है तो व्यक्ति वाहन सुख प्राप्त नहीं करेगा ।
इसे एक और स्थिति से समझें
3 भाव साहस /इनिशिएटिव/ड्राइव का है।
6 भाव शत्रु ,विवाद इत्यादि का
अब एक स्थिति पर विचार कीजिये ।
मान लीजिए तीन व्यक्ति है A, B, C हैं और इन तीनों का एक व्यक्ति D से विवाद हुआ ।
अब ये तीन व्यक्ति तीन भिन्न भिन्न रस्ते अपना सकते हैं ।
पहला यह कि व्यक्ति सोचे कि चलो जाने दो उस व्यक्ति के जैसे कर्म होंगे वैसा वह स्वयं फल प्राप्त कर लेगा ।
दूसरे व्यक्ति का निर्णय यह हो सकता है कि पहले वह निर्णय करे कि बदला अवश्य लेगा किन्तु बाद में ऐसा कुछ भी नहीं करे ।
तीसरा व्यक्ति बदला लेने की सोचे भी और उस पर अमल भी करे ।
अब ये प्रभाव किसी भी व्यक्ति के कुंडली के 3(ड्राइव ) और 6 (शत्रुता और शत्रु) पर ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर है ।
जहाँ गुरु सहित सौम्य ग्रह व्यक्ति को क्षमावान बनाते हैं वहीँ क्रूर ग्रह की इन भावों पर प्रभावशीलता क्षमा के गुण से दूर करती है ।
इसी कारण से परंपरागत ज्योतिष सिद्धांतों में एक प्रमुख सिद्धान्त यह भी है कि क्रूर ग्रह (सूर्य,मंगल, शनि,राहु इत्यादि और कुंडली में स्वामित्व के हिसाब से 8,12 के स्वामी ) यदि 6 भाव में स्थित हों तो यह अच्छा फल देगा ।
ऐसा क्यों?
ऐसा कहने का कारण यह है कि यदि व्यक्ति के 6 भाव में क्रूर ग्रह हों तो ऐसा व्यक्ति शत्रु पर विजय प्राप्त करेगा जो स्वयं की दृष्टि से अच्छा ही है ।
तो 6 में शुभ ग्रह हो तो व्यक्ति युद्ध में पराजित होगा?( यहाँ युद्ध का तात्पर्य प्रतियोगिता,दुश्मनी इत्यादि से है)
इसे ऐसे समझें यदि 6 में सौम्य ग्रह हुए तो व्यक्ति शत्रु विहीन होगा अर्थात उसके शत्रु ही नहीं होंगे जबकिं 6 में क्रूर ग्रहों वाला व्यक्ति को न सिर्फ शत्रु मिलेंगे बल्कि वह उन पर बिजय भी प्राप्त करेगा ।
तो अब जिन तीन लोगों का विवाद हुआ है वे अपने अपने 3,6 और उनके ऊपर ग्रहों के प्रभाव से निर्णय लेंगे ।
अब आरूढ़ का क्या रोल होगा ।
आरूढ़ का रोल यह है कि जो व्यक्ति D है वह जिस व्यक्ति का आरूढ़ से प्रतिबिम्ब ऐसे व्यक्ति का होगा जो साहसी है और पलट कर वार करेगा उससे विवाद से बचेगा भले ही वह व्यक्ति वास्तव में साहसी न हो और पलटवार भी नहीं करे ।
तो कुल मिलाकर आरूढ़ पद जिस भाव और जिस चक्र में देखे जा रहे हैं उससे संबंधित भौतिक जीवन में होने वाले इवेंट्स को अधिक सटीक रूप में फलादेश में सहायता कर सकते हैं ।
जैसे कोई व्यक्ति यदि समाज में बुद्धिमान के रूप में जाना जाता है तो इसका आधार क्या होगा ?
जाहिर है उसके परीक्षा में प्राप्त अंक या रैंक उसके द्वारा प्राप्त स्कॉलरशिप /मेरिट सर्टिफिकेट इत्यादि
जबकिं एक दूसरा व्यक्ति अधिक बुद्धिमान होते हुए भी यदि अच्छे अंक न प्राप्त करे तो उसकी इमेज बुद्धिमान की नहीं होगी ।
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमे मानवता के महान आविष्कारक समाज में उनके अविष्कार के पूर्व किस नज़र से देखे गए ।
तो भौतिक जीवन में प्राप्त होने वाली चीजें फलादेश में आरूढ़ को शामिल करने से और सटीक हो सकती हैं जैसे प्रमोशन कब होगा ,रैंक कैसी आयेगी इत्यादि।
किसी भी विधि के प्रयोग में जब तक उसमे बताये गए सिद्धांतों का स्ट्रिक्ट पालन नहीं हो हम उससे सही फलादेश की उम्मीद नहीं कर सकते हैं चाहे वो वैदिक ज्योतिष हो या के पी या अन्य कोई पद्धति ।
लग्न चक्र ,वर्ग चक्र,आरूढ़ पद,अर्गला,दशा चुनाव,अष्टकवर्ग इत्यादि वैदिक ज्योतिष के स्तंभों में से कुछ हैं ।


उप पद लग्न (UL) में बैठे और उस पर दृष्टि दे रहे ग्रह वैवाहिक जीवन और जीवन साथी  की परिस्थिति निर्धारित करते है ,

 वंहा बुध (mercury) का होना जीवन साथी को आकर्षक (attractive) , लगभग समान आयु का (same age),  वाक पटु (talkative) और बुद्दिमान (intelligent) होना दर्शाता है, वंही चंद्र का होना उम्र से छोटा और राहु का होना अन्य जाती से होना दर्शाता है। वँहा शनि की उपस्थिति से अंदाज लगाया जा सकता है की जीवन साथी सामान्य से अधिक आयु का होगा ।


सप्तम भाव के आरूढ लग्न जिसे A7 कहते है वो किस प्रकार के व्यक्ति की तरफ आकर्षण है उस बारे में बताता है और अगर UL और A7  एक ही भाव में या दोनों के  lords एक साथ हो तो ये मन पसंद के व्यक्ति से विवाह का योग बनाता है । जिसे love marriage की परिभाषा दी जा सकती है।

UL में किसी ग्रह का उच्च की राशि में बैठना जीवन साथी का सफल और प्रसिद्ध होना समझा जा सकता है, ठीक वैसे ही वँहा नीच का ग्रह वैवाहिक जीवन को दूषित होने का इशारा करता है।
UL पर गुरु की उपस्थिति समृद्ध परिवार में अच्छा शिक्षित जीवनसाथी के प्राप्ति का इशारा करती है और गुरु की दृष्टि सुखी और सुमधुर वैवाहिक जीवन प्रदान करती है जबकि शनि और राहु की एकसाथ दृष्टि जीवन साथी पर किसी परेशानी से वैवाहिक जीवन में बाधा का योग बनाती है।
केतु को एकाकी ग्रह (separative planet)  कहा गया है और इसका UL में होना विवाह में देरी या कई बार अविवाहित तक होने का इशारा करता है अगर शुक्र और गुरु भी बहुत कमजोर हो तो।

UL से दूसरा भाव विवाह की आयु निर्धारित करता है और वँहा पर शनि-राहु का साथ होना या उस भाव के स्वामी का शनि राहु से दृष्ट होना या नीच में होना या नवमांश में नीच में होना विवाह की आयु (length of marriageको कम करता है।

ठीक ऐसे ही UL का lord कैसे है और किन ग्रहों से सम्बन्ध बना रहा है ये भी बहुत महत्वपूर्ण है जैसे UL के lord का 12th या 9th lord से कैसा भी सम्बन्ध  विवाह के बाद या जीवन साथी  का विदेश से कोई सम्बन्ध बताता है, जैसा A7  और UL lords का साथ में दशम भाव होना होना का profession की  वजह से संपर्क में आना और फिर विवाह होना मना जायेगा।