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Thursday, October 28, 2021

तलाक सेमुक्ति पानेके लिए ये कर

 तलाक सेमुक्ति पानेके लिए ये कर | REMEDY OF DIVOCE


DO ANY ONE OF THE BELOW REMEDY


: हनुमान जी का वीर रुपक चित्र अपने घर की उत्तर दिशा में लगाएं।



: हनुमान मंदिर सेप्राप्त दक्षिणमुखी हनुमान का सिंदूर जीवनसाथी की फोटो पर लगाएं।

: तलाक का कारण रा हु होनेपर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर मेंलगातार सात शनिवार तक शाम के समय सात नारियल चढ़ाएं। 



: राहु के कारण तलाक की स्थिति का निर्माण होनेपर दक्षिण मुखी हनुमा जी की उल्टी सात परिक्रमा सात शनिवार तक शाम के समय लगाएं।

: शनि ग्रह तलाक की स्थिति का कारण बनेतो हनुमान जी के चित्र पर सात शनिवार गुड़गु का भोग लगाने के बाद उसेकाली गाय को खिला दें। 


रविवार तक 7 अनार चढ़ानेके बाद उसेकिसी नवदंपति को भेंट करें।



 : मंगल के कारण तलाक की स्थिति मेंसात मंगलवार तांबेके लोटे मेंगेहूं भरकर उस पर लाल चंदन लगाकर लोटे समेत हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।

विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए।

 विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए।



1- विवाह संस्कार इस माह मेंनिषेध: ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, जिस माह मेंजातक के माता-पिता का विवाह हुआ हो या जिस माह मेंस्वयं उस जातक का जन्म हुआ हो उस माह मेंविवाह संस्कार नहीं करना चाहिए। 


2- यह नक्षत्र नहीं हैशुभ: पुष्य और पूर्वाफाल्गुनी गु नक्षत्रों मेंविवाह संस्कार करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस दौरान विवाह संस्कार वर्जित है। 


3- कब हो प्रथम संतान का विवाह: ज्योतिषशास्त्र के जानकारों के अनुसार किसी व्यक्ति को अपनी प्रथम यानि ज्येष्ठ संतान का विवाह कभी भी ज्येष्ठ माह मेंनहीं करना चाहिए। इसका कारण यह हैकि ज्येष्ठ माह भी होता हैऔर संतान भी ज्येष्ठ जो कि शुभ संयोग नहीं होता है। इसलिए अपनी पहली संतान का ज्येष्ठ माह मेंविवाह करना अशुभ माना गया है। 


4- ग्रहण मेंन करेंवि वाह: सूर्यअथवा चंद्र ग्रहण के तीन दिन पूर्वऔर ग्रहण के तीन दिन बाद तक विवाह कार्य करना वर्जित माना जाता है। 


5- इस योग मेंन करेंविवह: जिस समय गुरुगु, शुक्र गोचर मेंहों और तारा अस्त हो तो इस योग मेंभी विवाह कार्य नही करना चाहिए। चतुर्मास मेंजब भगवान विष्णुशयन करतेहैंउस समय सेलेकर देवउठनी एकादशी के दौरान भी विवाह संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। 

Tuesday, October 26, 2021

लक्ष्मी-नारायण योग

 

लक्ष्मी-नारायण योग



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी नारायण योग जन्म-कुंडली में स्थित शुभ बुध और शुक्र ग्रह की युति से बनने वाला योग है। जिसका फल राजयोग कारक होता है। बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास का कारक है। लक्ष्मी योग में बुध को विष्णु शुक्र को लक्ष्मी की श्रेणी दी गई है। इन दोनों ग्रहो का आपसी संबंध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है। यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है, एक बहुत शुभ योग है। 


Lakshmi Nrayana Yoga: हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी के पूजन को समर्पित होता है। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न होती है और भक्तों को सुख, संपत्ति का वर देती हैं। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार इस शुक्रवार को लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण हो रहा है। जो कि माता लक्ष्मी के पूजन के लिए अत्यंत शुभ योग है। इस योग में मां लक्ष्मी का पूजन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है तथा जीवन में कभी अन्न और धन की कोई कमी नहीं होती है।



यह योग सुख सौभाग्य को बढ़ाने वाला योग है। लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है। 



  • लग्न, पांचवें, नौवें भाव में शुक्र बुध से बनने वाले लक्ष्मी नारायण योग के प्रभाव से जातक किसी न किसी कला में विशेष दक्ष होता है। 
  • पांचवें भाव में बनने से बली लक्ष्मी नारायण के प्रभाव से जातक विद्वान् भी होता है। 
  • शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युति इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है। धन-धान्य योगों में से यह योग एक योग है। 

किन किन राशि में देता है लक्ष्मी-नारायण योग पूर्ण-फल  

जन्मकुंडली के अनुसार यह लक्ष्मी-नारायण योग मेष, धनु, मीन लग्न में ज्यादा अच्छा प्रभाव नही दिखाता। बल्कि यह योग वृष, मिथुन, कन्या, तुला राशि में बहुत बली होता है।  इसी तरह बारहवें भाव का शुक्र कन्या राशि के आलावा किसी भी राशि में हो तब एक तरह से “भोग योग” बनाता है। यह योग शुक्र से सम्बंधित शुभ फलो में वृद्धि करके जातक को ज्यादा से ज्यादा शुक्र संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

शुक्र की स्थिति से कई राजयोग भी बनते है जिसमे शुक्र वर्गोत्तम या अन्य तरह से बलशाली होने पर अकेला राजयोगकारक होता है। यह योग कुछ ही लग्नो में कारगर होते है जैसे कि, कन्या लग्न में शुक्र भाग्येश धनेश होकर योगकारक है। इसी तरह मकर, कुम्भ लग्न की कुंडलियो में यह विशेष राजयोग कारक होता है। इन दोनों मकर, कुम्भ लग्न में किसी भी तरह से यह अकेला भी बलशाली और पाप ग्रहों के प्रभाव से रहित होता है तो राजयोग बनाता है जिसके फल शुभ फल कारक होते है।



लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण तब होता है 

जब जन्म कुंडली में बुध ग्रह और शुक्र ग्रह की युति बनती है. यानि ये दोनों ग्रह जब साथ आते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बुध को बुद्धि, वाणिज्य और शुक्र को लग्जरी लाइफ आदि का कारक माना गया है. जब ये योग बनता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि और प्रतिभा से जीवन में हर प्रकार के सुखों को प्राप्त करता है. ऐसे जातक के जीवन में धन की भी कोई कमी नहीं रहती है. इस योग के कारण व्यक्ति के आय के स्त्रोत एक से अधिक होते हैं, यानि वो कई कार्यों से धन की प्राप्ति करता है.


बुध और शुक्र से बनने वाले इस योग के कारण व्यक्ति जीवन का भी भरपूर आनंद लेता है. ऐसे व्यक्ति कला प्रेमी होते हैं. कला का सरंक्षण भी करते हैं. वहीं जब बुध और शुक्र पर देव गुरु बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है तो लक्ष्मी नारायण योग की में चार चांद लग जाते हैं. गुरू का साथ मिलने से ऐसा जातक अपने ज्ञान का भी लाभ प्राप्त करता है. ऐसे लोग ज्ञान और शिक्षा के मामले में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं.


लक्ष्मी नारायण योग व्यक्ति प्रतिभावान होते हैं. ऐसे लोग अपनी प्रतिभा से देश और दुनिया में भी सफलता और सराहना प्राप्त करते हैं. जब ये योग जन्म कुंडली के पंचम भाव में बनता है तो विशेष फल प्राप्त होते हैं. शिक्षा और ज्ञान के मामले में यह योग विशेष सफलता प्रदान करता है. 

कलानिधि योग का निर्माण | Formation of Kalanidhi Yoga

 

कलानिधि योग का निर्माण | Formation of Kalanidhi Yoga


“कलानिधि योग” -HIGHER EDUCATION YOGA

शुक्र के सहयोग से बनने वाला शुभ “कलानिधि योग” योग जातक को किसी न किसी कला में माहिर बनाकर राजयोग तक देता है। इस योग में तीन ग्रहों का सहयोग रहता है।  जब दूसरे और पांचवें भाव में बृहस्पति की दृष्टि सम्बन्ध शुक्र बुध की युति से होता है, विशेष रूप से युति सम्बन्ध हो तब कलानिधि योग बनता है। दूसरा और पाचवां भाव कला से सम्बंधित है। इस कारण दूसरे, पांचवे भाव से ही कलानिधि योग बृहस्पति शुक्र बुध के सहयोग से बनता है। इस तरह अन्य कई शुभ योग शुक्र से बनते है जो विशेष तरह के लाभकारी योग होते हैं। योग कोई भी हो योग की शुद्धता होना जरूरी है तभी वह अच्छे से फलित होता है। जैसे योग बनाने वाले ग्रह और योग बनाने वाले ग्रहो के साथ जो भी ग्रह है वह भी अस्त या अशुभ न हो, अंशो में ग्रह बहुत प्रारंभिक या आखरी अंशो पर न हो, पीड़ित न हो, योग बनाने वाले ग्रह नवमांश कुंडली में नीच या बहुत ज्यादा पाप ग्रहो से पीड़ित न हो आदि। जातक पर महादशा-अन्तर्दशा अनुकूल और शुभ हो तब योग अच्छे से फलित होकर अपना पूरा प्रभाव दिखाते है। शुभ योग बनाने वाले ग्रहों के कमजोर होने पर उन्हें उपाय से बली करके शुभ योग के शुभ फलो को बढ़ाया जा सकता है।




चर लग्न में नवमेश बृहस्पति से युक्त होने पर तथा पंचमेश के पंचमस्थ होने पर और प्रबल दशमेश के लाभ भाव में स्थित होने पर कलानिधि योग का निर्माण होता है.

यदि कुण्डली में गुरु दूसरे या पंचम भाव में स्थित हो और शुक्र या बुध उसे देख रहा हो तब कलानिधि योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुंडली में यदि गुरू, बुध या शुक्र की राशि में स्थित है तब भी कलानिधि योग बनता है.

लग्न में यदि चर नवांश हो और नवमेश बृहस्पति के साथ लग्न में स्थित हो तथा पंचमेश पंचम में ही स्थित हो तथा दशमेश बली होकर लाभ स्थान में स्थित हों तो कलानिधि योग का फल प्राप्त होता है. इस योग में कहा जाता है कि आयु के 23वें वर्ष में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.

कलानिधि के बारे में एक अन्य तथ्य यह है कि नवांश से संबंधित ग्रहों का उल्लेख नहीं होता क्योंकि नवांश संबंधित ग्रह योग काफी किलष्ट होते हैं. दूसरे भाव में गुरू को बुध और शुक्र से अवश्य संयुक्त होना चाहिए. अथवा पंचम भाव में शुक्र और बुध गुरू की राशि धनु या मीन में स्थित हों तो कलानिधि योग की सरंचना होती है.


कला निधि योग- 

यह योग गुरु,शुक्र व बुध के संयुक्त प्रभाव से बनता है। गुरु यदि दूसरे या पांचवें स्थान पर शुक्र-बुध के साथ स्थित हो या इनके दृष्टी प्रभाव में हो तो कलानिधि योग बनता हैं। इसके अतिरिक्त यह योग तब भी फल देता हैं जब गुरु,शुक्र व बुध एक साथ लग्न, नवम या सप्तम स्थान पर स्थित हो।


कलानिधि योग का प्रभाव व फल- 

इस योग को सरस्वती योग के नाम से भी जाना जाता हैं। कला निधि योग इंसान को सच्ची सफलता प्रदान करता हैं। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अनेक क्षमताओं से युक्त होता है। विभिन्न प्रकार का ज्ञान उसकी बुद्धि क्षमता को प्रदर्शित करता है। ऐसे जातक ज्ञानी, दानी, राजाओं द्वारा सम्मानित, विभिन्न प्रकार के सुखों को भोगने वाला तथा कलाओं की खान होता हैं।

कला निधि योग में जन्में जातक भले ही किसी भी पृष्ठभूमि से हो लेकिन असीमीत सफलता प्राप्त करते हैं। इन्हे किसी की दया या पैतृक सम्पदा प्राप्त नही होती अपितु सारा कुछ इनकी मेहनत  के बल पर प्राप्त होता हैं।

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री



बुधवार व्रत उद्यापन विधि (Budhwar Vrat Udyapan Vidhi) -


बुधवार का दिन बुध भगवान और भगवान श्री गणेश को समर्पित होता है। जब आप व्रत शुरू करते हैं तो आप संकल्प लेते हैं कि कितने व्रत कितने समय तक जारी रहेगा। तो जब वो निश्चित समय पूर्ण ही जाए तो आपको विधि अनुसार उस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

इसके लिए आपको कुछ समाग्री की ज़रूरत पड़ेगी। सर्वप्रथम तो बुद्ध भगवान या गणेश भगवान की एक मूर्ति ले लें। इसके अलावा 1 कांस्य का पात्र, चावल, अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, गुड़, लाल चंदन, पुष्प, रोली, यज्ञोपवीत, हरा वस्त्र, कपूर, ऋतुफल, इलायची, सुपारी, लौंग, पान, पंचामृत, गुलाल, मूंग दाल से बनी हुई नैवेद्य, जल पात्र, आरती के लिए पात्र और हवन की बाकी समाग्री एकत्रित कर लें।


आज हम जानेगें कैसे करे बुधवार व्रत का उद्यापन और उसकी सामग्री विधि -




अगर आपको मंत्रों का अच्छा ज्ञान है तो आप ये स्वयं ही कर सकते हैं पर अगर ऐसा नहीं है तो किसी ब्राह्मण को बुला लें। किसी कारणवश अगर आप किसी ब्राह्मण को नहीं बुला सकते या फिर किसी सामग्री का इंतज़ाम नहीं कर सकते तो घबराने की बात नहीं है।

आप सामान्य रूप से पूजा करके जो भी समाग्री आपके पास उपलब्ध हो वो चढ़ा सकते हैं और बाकी सामान को मन में याद करके ऐसी कल्पना करें कि आप वो सच में ईश्वर को चढ़ा रहे हों। इससे भी आपकी पूजा सफल मानी जाएगी। ध्यान रहे ये तभी काम करता है जब आपके मन का भाव बिल्कुल सच्चा हो और आपका मन साफ हो। ईश्वर के लिए आपकी आस्था सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आपकी आस्था सच्ची है तो को आपकी काल्पनिक समाग्री को भी हर्ष के साथ स्वीकार करेंगे। आप मानसिक रूप से उनकी पूजा करें वो ज़्यादा आवश्यक है।

व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले तो सुबह-सुबह उठकर स्नान कर लें और हरे रंग का वस्त्र पहनें। इसके पश्चात पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई कर लें। पुज की सारी समाग्री पूजा स्थल पर एक जगह रख लें जिससे कि आपको बीच में उठना ना पड़े। एक लकड़ी की चौकी लें, हरा कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर कांस्य का पात्र रखें। इसके बाद पात्र के ऊपर बुध भगवान और गणेश जी की मूर्ति को स्थापित कर दें। अब सामने में आसान बिछाकर बैठ जाएं और पूजा प्रारंभ करें।

बुधवार व्रत उद्यापन के लिये पूजा सामग्री:-


सबसे पहले तो हाथ में जल लेकर खुद पर, पूजा समाग्री पर और आसन पर छिड़ककर सबको शुद्ध कर लें। जल छिड़कते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें-

बुधवार व्रत मंत्र खुद के शुद्धि के लिए:


ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

समाग्री और आसन की शुद्धि के लिए:


पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

इसके बाद फूल की मदद से एक एक बूंद जल अपने मुंह में डालकर “ॐ केश्वाय नमः”, “ॐ नारायणाय नमः” और “ॐ वासुदेवाय नमः” बोलें। इसके बाद “ॐ हृषिकेशाय नमः” बोलकर हाथों को खोलकर अंगूठे के मूल से अपने होंठ पोंछे। इसके बाद अपने हाथ धोकर साफ कर लें।

इसके बाद गणेश जी की पूजा करनी होती है तो पंचोपचार विधि से उनकी पूजा कर लें। उनकी पूजा के बाद हाथों में पान का पत्ता, सुपारी, जल, अक्षत और कुछ सिक्के ले लें। उसके बाद निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण कर उद्यापन करें:

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे (जिस माह में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकपक्षे (जिस पक्ष में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकतिथौ (जिस तिथि में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामबुधवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे (उद्यापन के दिन, जिस नक्षत्र में सुर्य हो उसका नामअमुकराशिस्थिते सूर्ये (उद्यापन के दिन, जिस राशिमें सुर्य हो उसका नामअमुकामुकराशिस्थितेषु (उद्यापन के दिन, जिस –जिस राशि में चंद्र, मंगल,बुध, गुरु शुक, शनि हो उसका नामचन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः (अपने गोत्र का नामअमुक नाम (अपना नाम) अहं बुधवार व्रत उद्यापन करिष्ये ।


इसके पश्चात हाथ जोड़कर बुध देव का ध्यान करें और ये मंत्र पढ़ें:


बुधं त्वं बोधजनो बोधव: सर्वदानृणाम्।
तत्त्वावबोधंकुरु ते सोम पुत्र नमो नम:


हाथों में अक्षत और पुष्प लें और इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बुध देव का आवाहन करें:

ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।


मंत्र का उच्चारण करते हुए अन्य सभी वस्तुओं के साथ उन्हें आसन अर्पित करें।
इसके पश्चात पाद्य धोएं। इसके लिए फूल की मदद से बुध देव को जल चढ़ाएं और साथ में इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: पाद्यो पाद्यम समर्पयामि

अब अर्घ्य देने के लिए जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:

ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: अर्घ्यम समर्पयामि


फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब जल अर्पित करें तो इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

फूल से जल अर्पण करते हुए बुध देव को स्नान कराएं और साथ ही इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: स्नानम् जलम् समर्पयामि।

इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराते वक़्त ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: पंचामृत स्नानम् समर्पयामि।

पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें गंगाजल से उन्हें पुनः स्नान कराएं और जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: शुद्धोदक स्नानम् समर्पयामि।

इसके बाद निम्न मंत्र का प्रयोग करते हुए बुध भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि

बुध देव को वस्त्र चढ़ाते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: वस्त्रम् समर्पयामि

इसेक बाद बुध देव को अक्षत अर्पित करते हुए इस मंत्र को पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: गंधम् समर्पयामि।

फिर फूल अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: अक्षतम् समर्पयामि।

इसके पश्चात फूल की माला चढ़ाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ बुधाय नम: पुष्पमाला समर्पयामि।

इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें धूप अर्पित करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: धूपम् समर्पयामि

दीप दिखाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: दीपम् दर्शयामि

फिर बुध देव को नैवेद्य अर्पित करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: नैवेद्यम् समर्पयामि

फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब बुध भगवान को जल अर्पित करें तब इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

इसके पश्चात चंदन चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: करोद्धर्तन समर्पयामि।

इसके बाद पान के पत्ते लें और उसे पलटने के बाद उसपे लौंग, सुपारी, कोई मिठाई, और इलायची रखें और दी तांबूल बनाएं। तांबूल अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: ताम्बूलम् समर्पयामि।

इन सब के बाद बुध देव को दक्षिणा देते समय उस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: दक्षिणा समर्पयामि |

इसके बाद हवन कुंड को तैयार करें और पवित्र अग्नि में 108 बार आहुति दें और साथ साथ इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।स्वाहा॥

अब आरती की थाल लेकर उसमें दीप और कपूर जलाएं और गणेश जी और बुध जी की आरती करें।
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: प्रदक्षिणा समर्पयामि

आरती संपन्न होने के बाद अपने स्थान पर ही खड़े होकर बाएं से दाएं की ओर चक्कर लगाएं और इस मंत्र का उच्चारण करें:

प्रियंग कालिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्य सौम्य गुणापेतं तं बुधप्रणमाम्यहम्॥


इसके बाद बुध भगवान से प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर: 
फिर क्षमा याचना करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥


अब विसर्जन के लिए अक्षत और फूल अपने हाथों में लें और निम्लिखित मंत्र का उच्चारण करें:
अंततः 21 ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा प्रदान करें।

Somvar Vrat Udyapan – सोमवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Somvar Vrat Udyapan – सोमवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री


सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं ∣ उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार  के व्रत का उद्यापन कर दे∣  यदि सावन माह के पहले या तीसरे सोमवार को सोमवार के व्रत का उद्यापन किया जाए तो ये बहुत शुभ माना जाता है ∣ साथ ही सोमवार के उद्यापन के लिये सावन, कार्तिक, वैशाख, ज्येष्ठ या मार्गशीर्ष मास के सभी सोमवार श्रेष्ठ माने गये हैं। व्रत के उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है।




 उद्यापन की सामग्री और उसकी विधि -

सोमवार व्रत उद्यापन विधि (Somvar Vrat Udyapan Vidhi) -


1. सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर लें।

2. यदि सम्भव हो तो इस दिन सफेद वस्त्र धारण करें।

3. पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध कर लें। 

4. और फिर पूजा स्थल पर केले के चार खम्बे के द्वारा चौकोर मण्डप बनायें।

5 . चारों ओर से फूल और बंदनवार (आम के पत्तों का) से सजायें।

6. पूजा स्थल पर सभी सामग्री के साथ पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें।

7. चौकी या लकड़ी के पटरे को मण्डप के बीच में रखें। चौकी पर सफेद वस्त्र बिछायें। 

8. उस पर शिव-पार्वती के विग्रह को स्थापित करें। 

9. उसे चौकी पर किसी पात्र में रखकर चंद्रमा को भी स्थापित करें।

10. सबसे पहले अपने आप को शुद्ध करने के लिये पवित्रीकरण करें।

 

पवित्रीकरण कैसे करें? 


हाथ में जल लेकर मंत्र –उच्चारण के साथ अपने ऊपर जल छिड़कें:-

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥


इसके पश्चात् पूजा कि सामग्री और आसन को भी जल मंत्र उच्चारण के साथ जल छिड़क कर मंत्र शुद्ध कर लें:-

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


सोमवार व्रत उद्यापन के लिये पूजा सामग्री:-


*शिव एवं पार्वती जी की मूर्ति,

∗ चंद्रदेव की मूर्ति या चित्र,

∗ चौकी या लकड़ी का पटरा,

∗ अक्षत – 250 ग्राम, 

∗ पान (डंडी सहित)- 5,

∗ सुपारी- 5,

∗ ऋतुफल,

∗ यज्ञोपवीत -1जोड़ा(हल्दी से रंगा हुआ),

∗ रोली- 1 पैकेट,

∗ मौली- 1

∗ धूप- 1पैकेट,

∗ कपूर-1 पैकेट,

∗ रूई- बत्ती के लिये,

∗ पंचामृत (गाय का कच्चा दूध, दही,घी,शहद एवं शर्करा मिला हुआ)-  50 ग्राम,

∗ छोटी इलायची- 5 ग्राम,

∗ लौंग- 5 ग्राम,

∗ पुष्पमाला-3 (2 सफेद एवं १लाल),

∗ चंदन- 1० ग्राम (सफेद एवं लाल),

∗ कुंकुम,

∗ गंगाजल,

∗ कटोरी,

∗ आचमनी,

∗ वस्त्र – 1.25    मीटर का चार (एक लाल एवं तीन सफेद) ,

∗ पंचपात्र,

∗ पुष्प,

∗ लोटा,

∗ नैवेद्य,

∗ आरती के लिये थाली,

∗ मिट्टी का दीपक- 5

∗ कुशासन- 1,

∗ खुल्ले रुपये,

∗ चौकी या लकड़ी का पटरा,

∗ केले के खम्बे (केले का तना सहित पत्ता/ केले का पत्ता) – 4,

∗ आम का पत्ता,

सोमवार व्रत उद्यापन हवन सामग्री :-


∗ हवन सामग्री- 1 पैकेट ,

∗ आम की समिधा- 1.25 किलो,

∗ घी- 1.25किलो,

∗ जौ- 250 ग्राम,

∗ काला तिल- 250 ग्राम ,

∗ अक्षत- 250 ग्राम