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Tuesday, March 3, 2020

नीलम रत्न ,नीलम रत्न का चमत्कार रंक को बनाए राजा


नीलम रत्न के प्रभाव तथा धारण विधि।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार नीलम रत्न धारण करने के क्या प्रभाव जातक पर पड़ते है तथा नीलम रत्न को धारण करने की विधि क्या है ?

इन बातों का रखें खयाल
-मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक लग्न वालों को नीलम धारन करना फायदेमंद है, यह भाग्योदय करता है।
-यदि जन्मकुंडली में शनि चौथे, पांचवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में हो, तो नीलम अवश्य धारण करना चाहिए।
-अगर शनि षष्ठेश या अष्टमेश के साथ बैठा हो तो नीलम धारण करना श्रेष्ठत्तम होता है।
-यदि शनि अपने भाव से छठे या आठवें स्थान पर स्थित हो तो नीलम अवश्य पहनें।
-शनि मकर तथा कुंभ राशि का स्वामी है। यदि एक राशि श्रेष्ठ भाव में और दूसरी अशुभ भाव में हो तो नीलम न पहनें। इसके इतर अगर शनि की दोनों राशियां श्रेष्ठ भावों का प्रितिनिधत्व करती हों, तो नीलम धारण करना श्रेष्ठ होता है।
-अगर किसी भी ग्रह की महादशा में शनि की अंतर्दशा चल रही हो तो नीलम अवश्य ही पहनना चाहिए।
-यदि शनि सूर्य के साथ हो , सूर्य की राशि में हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी नीलम पहनना लाभदायक है।
-यदि जन्मकुंडली में शनि वक्री,अस्तगत या दुर्बल हो और शुभ भावों का प्रतिनिधित्व कर रहा हो तो नीलम धारण करना श्रेष्ठकर माना गया है।
-जो शनि ग्रह प्रधान व्यक्ति हैं, उन्हें अवश्य ही नीलम पहनना चाहिए।
-क्रूर कर्म करने वालों के लिए नीलम हर समय उपयोगी माना जाता है।
नीलम के उपरत्न
नीलम के दो उपरत्न पाए जाते हैं, जो लोग नीलम नहीं खरीद सकते, वे इन उपरत्नों को भी धारण कर सकते हैं। इनमें हें लीलिया और जमुनिया।
लीलिया: यह नीले रंग का हल्की रक्तिम ललाई वाला होता है, इसमें चमक भी होती है। लीलिया गंगा-यमुना के तट पर मिलता है।
जमुनिया : इसका रंग पके जामुन सा होता है। इसके अलावा यह हल्के गुलाबी और सफेद रंग में भी पाया जाता है। यह चिकना, साफ एवं पारदर्शी होता है। जमुनिया भारत के हिमालय क्षेत्र में अक्सर मिलता है।
नीलम रत्न शनि गृह का प्रतिनिधि रत्न है, यह एक अत्तयंत प्रभावशाली रत्न होता है ! कहते है की यदि नीलम किसी भी व्यक्ति को रास आ जाए तो वारे न्यारे कर देता है , लेकिन आखिर इस तथ्य की पीछे क्या सिद्धांत है ? क्या वाक्य में नीलम धारण करने से वारे न्यारे हो सकते है और यदि हाँ तो कैसे ? दरअसल नीलम शनि गृह का रत्न है इसलिए शनि गृह सम्बंधित सभी विशेषताए इसमें विद्यमान होती है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का सम्बन्ध श्रम और मेहनत से होता है, ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा की शनि किसी जातक को बैठे बिठाए शोहरत दे देता है बल्कि जो जातक आलसी होता है उसे शनि का रत्न नीलम कभी भी रास नहीं आता यह रत्न तो मेहनती जातको के लिए है जो अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी हासिल करते है!

यदि आप आलसी है तो आपका नीलम धारण करना व्यर्थ होगा क्योकि शनि के द्वारा कामयाबी तभी मिलती है जब जातक अत्यंत मेहनती होता है! यदि आप मेहनत करने से नहीं कतराते तो आप नीलम धारण कर सकते है और शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है! लेकिन नीलम धारण करने से पहले कुंडली का निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है क्योकि मेरे अनुभव से केवल 5 से 10 प्रतिशत जातको को ही नीलम रत्न रास आता है! मेरे अनुभव से यह कहना भी ठीक नहीं होगा की नीलम धारण करने के कुछ क्षणों में शुभ या अशुभ प्रभाव दे देता है क्योकि शनि एक अत्यंत धीमा गृह है यह लगभग 2.5 वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता है और 12 राशियों का चक्कर पूरा करने में इसे लगभग 30 वर्ष लगते है और किसी जातक के पूर्ण जीवन में अत्यधिक केवल 3 बार सभी राशियों का भ्रमण करता है जो की सभी ग्रहों की अपेक्षा सबसे कम है,
अब आप स्वयं ही बताये की इतनी धीमी गति से चलने वाला गृह , कुछ क्षणों में कैसे प्रभाव दे सकता है! बेहतरीन नीलम जम्मू और कश्मीर की खानों में पाया जाता है जो आज के दौर में लगभग मिलना नामुमकिन है और यदि मिल भी जाये तो उसकी कीमत अदा करना हर किसी के बस की बात नहीं है! श्री लंका का नीलम भी बेहतरीन होता है और यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है लेकिन यह भी एक महंगा रत्न होता है! इसकी कीमत 1000 रु कैरेट से लेकर 100000 रु कैरेट तक हो सकती है! अच्छे प्रभाव के लिए कम से कम 3000 रु कैरेट तक का नीलम धारण करना चाहिए !

नीलम धारण करने की विधि

यदि आप नीलम धारण करना चाहते है तो 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पाच धातु की अंगूठी में लगवाये! और किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनि वार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी की प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए अंगूठी को सबसे पहले गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में 15 से 20 मिनट तक दाल के रखे, फिर नहाने के पश्चात किसी भी मंदिर में शनि देव के नाम 5 अगरबत्ती जलाये, अब अंगूठी को घोल से निलाल कर गंगा जल से धो ले, अंगूठी को धोने के पश्चात उसे 11 बारी ॐ शं शानिश्चार्ये नम: का जाप करते हुए अगरबत्ती के उपर से घुमाये, तत्पश्चात अंगूठी को शिव के चरणों में रख दे और प्रार्थना करे हे शनि देव में आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ किरपा करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे! फिर अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श करे और मध्यमा ऊँगली में धारण करे!
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
विधि - संध्याकाल में मंत्र को 108 बार जपें।
खूनी नीलम' क्या है ? इसे कौन धारण कर सकता है ?
 खूनी नीलम एक प्रकार के नीलम को कहते हैं, जो कि होता तो नीलम ही है मगर बहुत rare होता है | कम मात्रा में उपलब्ध होने के कारन इसकी कीमत भी लाखों में होती है | किसी-किसी नीलम में नीले रंग के साथ-साथ कुछ अंशात्मक लाल रंग के धब्बे होते हैं | ये धब्बे 'Chromium' के होते हैं | इस प्रकार के नीलम में मंगल और शनि का संयुक्त प्रभाव होता है, इसे उस व्यक्ति  को धारण करना चाहिए जिसकी कुण्डली में मंगल और शनि संयुक्त और शनि कि दोनों राशियाँ शुभ भाव में हों | इसके साथ ही एक और तथ्य अनिवार्य होता है कि ऐसा जातक ‘क्षत्रिय’ वर्ण का ही हो, अन्य किसी वर्ण की कुण्डली में इसके प्रभाव को झेलने की क्षमता नहीं होती.

पीताम्बरी नीलम : इसी तरह पीलापन लिए हुए पीताम्बरी नीलम होता है, जिसे मन जाता है कि गुरु और शनि, दोनों का प्रभाव देता है. पर, हम किसी को भो खुनी, या पीताम्बरी नीलम पहनने की सलाह नहीं देते. नीलम धारण करने की विधि यह सदा ही दाहिने हाथ क़ी मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए. यदि आप नीलम धारण करना चाहते है तो 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पंच धातु की अंगूठी में जड़वाऐं , और किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनि वार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी की प्राण प्रतिष्ठा करे!
इसके लिए अंगूठी को सबसे पहले शुक्रवार की शाम को शुद्ध गाय के दूध में केशर डालकर रात्रि भर रखा रहने दें तथा प्रात:काल में गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में 15 से 20 मिनट तक डाल के रखे, फिर नहाने के पश्चात किसी भी मंदिर में शनि देव के नाम 5 अगरबत्ती जलाये, अब अंगूठी को गंगा जल से धो ले, अंगूठी को धोने के पश्चात उसे 11 बारी ॐ शं शानिश्चार्ये नम: का जाप करते हुए अगरबत्ती के उपर से घुमाये, तत्पश्चात अंगूठी को शिव के चरणों में रख दे और प्रार्थना करे हे शनि देव में आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ किरपा करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! फिर अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श करे और मध्यमा ऊँगली में धारण करे !