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Tuesday, October 26, 2021

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री



बुधवार व्रत उद्यापन विधि (Budhwar Vrat Udyapan Vidhi) -


बुधवार का दिन बुध भगवान और भगवान श्री गणेश को समर्पित होता है। जब आप व्रत शुरू करते हैं तो आप संकल्प लेते हैं कि कितने व्रत कितने समय तक जारी रहेगा। तो जब वो निश्चित समय पूर्ण ही जाए तो आपको विधि अनुसार उस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

इसके लिए आपको कुछ समाग्री की ज़रूरत पड़ेगी। सर्वप्रथम तो बुद्ध भगवान या गणेश भगवान की एक मूर्ति ले लें। इसके अलावा 1 कांस्य का पात्र, चावल, अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, गुड़, लाल चंदन, पुष्प, रोली, यज्ञोपवीत, हरा वस्त्र, कपूर, ऋतुफल, इलायची, सुपारी, लौंग, पान, पंचामृत, गुलाल, मूंग दाल से बनी हुई नैवेद्य, जल पात्र, आरती के लिए पात्र और हवन की बाकी समाग्री एकत्रित कर लें।


आज हम जानेगें कैसे करे बुधवार व्रत का उद्यापन और उसकी सामग्री विधि -




अगर आपको मंत्रों का अच्छा ज्ञान है तो आप ये स्वयं ही कर सकते हैं पर अगर ऐसा नहीं है तो किसी ब्राह्मण को बुला लें। किसी कारणवश अगर आप किसी ब्राह्मण को नहीं बुला सकते या फिर किसी सामग्री का इंतज़ाम नहीं कर सकते तो घबराने की बात नहीं है।

आप सामान्य रूप से पूजा करके जो भी समाग्री आपके पास उपलब्ध हो वो चढ़ा सकते हैं और बाकी सामान को मन में याद करके ऐसी कल्पना करें कि आप वो सच में ईश्वर को चढ़ा रहे हों। इससे भी आपकी पूजा सफल मानी जाएगी। ध्यान रहे ये तभी काम करता है जब आपके मन का भाव बिल्कुल सच्चा हो और आपका मन साफ हो। ईश्वर के लिए आपकी आस्था सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आपकी आस्था सच्ची है तो को आपकी काल्पनिक समाग्री को भी हर्ष के साथ स्वीकार करेंगे। आप मानसिक रूप से उनकी पूजा करें वो ज़्यादा आवश्यक है।

व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले तो सुबह-सुबह उठकर स्नान कर लें और हरे रंग का वस्त्र पहनें। इसके पश्चात पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई कर लें। पुज की सारी समाग्री पूजा स्थल पर एक जगह रख लें जिससे कि आपको बीच में उठना ना पड़े। एक लकड़ी की चौकी लें, हरा कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर कांस्य का पात्र रखें। इसके बाद पात्र के ऊपर बुध भगवान और गणेश जी की मूर्ति को स्थापित कर दें। अब सामने में आसान बिछाकर बैठ जाएं और पूजा प्रारंभ करें।

बुधवार व्रत उद्यापन के लिये पूजा सामग्री:-


सबसे पहले तो हाथ में जल लेकर खुद पर, पूजा समाग्री पर और आसन पर छिड़ककर सबको शुद्ध कर लें। जल छिड़कते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें-

बुधवार व्रत मंत्र खुद के शुद्धि के लिए:


ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

समाग्री और आसन की शुद्धि के लिए:


पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

इसके बाद फूल की मदद से एक एक बूंद जल अपने मुंह में डालकर “ॐ केश्वाय नमः”, “ॐ नारायणाय नमः” और “ॐ वासुदेवाय नमः” बोलें। इसके बाद “ॐ हृषिकेशाय नमः” बोलकर हाथों को खोलकर अंगूठे के मूल से अपने होंठ पोंछे। इसके बाद अपने हाथ धोकर साफ कर लें।

इसके बाद गणेश जी की पूजा करनी होती है तो पंचोपचार विधि से उनकी पूजा कर लें। उनकी पूजा के बाद हाथों में पान का पत्ता, सुपारी, जल, अक्षत और कुछ सिक्के ले लें। उसके बाद निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण कर उद्यापन करें:

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे (जिस माह में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकपक्षे (जिस पक्ष में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकतिथौ (जिस तिथि में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामबुधवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे (उद्यापन के दिन, जिस नक्षत्र में सुर्य हो उसका नामअमुकराशिस्थिते सूर्ये (उद्यापन के दिन, जिस राशिमें सुर्य हो उसका नामअमुकामुकराशिस्थितेषु (उद्यापन के दिन, जिस –जिस राशि में चंद्र, मंगल,बुध, गुरु शुक, शनि हो उसका नामचन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः (अपने गोत्र का नामअमुक नाम (अपना नाम) अहं बुधवार व्रत उद्यापन करिष्ये ।


इसके पश्चात हाथ जोड़कर बुध देव का ध्यान करें और ये मंत्र पढ़ें:


बुधं त्वं बोधजनो बोधव: सर्वदानृणाम्।
तत्त्वावबोधंकुरु ते सोम पुत्र नमो नम:


हाथों में अक्षत और पुष्प लें और इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बुध देव का आवाहन करें:

ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।


मंत्र का उच्चारण करते हुए अन्य सभी वस्तुओं के साथ उन्हें आसन अर्पित करें।
इसके पश्चात पाद्य धोएं। इसके लिए फूल की मदद से बुध देव को जल चढ़ाएं और साथ में इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: पाद्यो पाद्यम समर्पयामि

अब अर्घ्य देने के लिए जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:

ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: अर्घ्यम समर्पयामि


फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब जल अर्पित करें तो इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

फूल से जल अर्पण करते हुए बुध देव को स्नान कराएं और साथ ही इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: स्नानम् जलम् समर्पयामि।

इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराते वक़्त ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: पंचामृत स्नानम् समर्पयामि।

पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें गंगाजल से उन्हें पुनः स्नान कराएं और जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: शुद्धोदक स्नानम् समर्पयामि।

इसके बाद निम्न मंत्र का प्रयोग करते हुए बुध भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि

बुध देव को वस्त्र चढ़ाते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: वस्त्रम् समर्पयामि

इसेक बाद बुध देव को अक्षत अर्पित करते हुए इस मंत्र को पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: गंधम् समर्पयामि।

फिर फूल अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: अक्षतम् समर्पयामि।

इसके पश्चात फूल की माला चढ़ाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ बुधाय नम: पुष्पमाला समर्पयामि।

इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें धूप अर्पित करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: धूपम् समर्पयामि

दीप दिखाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: दीपम् दर्शयामि

फिर बुध देव को नैवेद्य अर्पित करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: नैवेद्यम् समर्पयामि

फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब बुध भगवान को जल अर्पित करें तब इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

इसके पश्चात चंदन चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: करोद्धर्तन समर्पयामि।

इसके बाद पान के पत्ते लें और उसे पलटने के बाद उसपे लौंग, सुपारी, कोई मिठाई, और इलायची रखें और दी तांबूल बनाएं। तांबूल अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: ताम्बूलम् समर्पयामि।

इन सब के बाद बुध देव को दक्षिणा देते समय उस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: दक्षिणा समर्पयामि |

इसके बाद हवन कुंड को तैयार करें और पवित्र अग्नि में 108 बार आहुति दें और साथ साथ इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।स्वाहा॥

अब आरती की थाल लेकर उसमें दीप और कपूर जलाएं और गणेश जी और बुध जी की आरती करें।
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: प्रदक्षिणा समर्पयामि

आरती संपन्न होने के बाद अपने स्थान पर ही खड़े होकर बाएं से दाएं की ओर चक्कर लगाएं और इस मंत्र का उच्चारण करें:

प्रियंग कालिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्य सौम्य गुणापेतं तं बुधप्रणमाम्यहम्॥


इसके बाद बुध भगवान से प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर: 
फिर क्षमा याचना करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥


अब विसर्जन के लिए अक्षत और फूल अपने हाथों में लें और निम्लिखित मंत्र का उच्चारण करें:
अंततः 21 ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा प्रदान करें।

Somvar Vrat Udyapan – सोमवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Somvar Vrat Udyapan – सोमवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री


सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं ∣ उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार  के व्रत का उद्यापन कर दे∣  यदि सावन माह के पहले या तीसरे सोमवार को सोमवार के व्रत का उद्यापन किया जाए तो ये बहुत शुभ माना जाता है ∣ साथ ही सोमवार के उद्यापन के लिये सावन, कार्तिक, वैशाख, ज्येष्ठ या मार्गशीर्ष मास के सभी सोमवार श्रेष्ठ माने गये हैं। व्रत के उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है।




 उद्यापन की सामग्री और उसकी विधि -

सोमवार व्रत उद्यापन विधि (Somvar Vrat Udyapan Vidhi) -


1. सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर लें।

2. यदि सम्भव हो तो इस दिन सफेद वस्त्र धारण करें।

3. पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध कर लें। 

4. और फिर पूजा स्थल पर केले के चार खम्बे के द्वारा चौकोर मण्डप बनायें।

5 . चारों ओर से फूल और बंदनवार (आम के पत्तों का) से सजायें।

6. पूजा स्थल पर सभी सामग्री के साथ पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें।

7. चौकी या लकड़ी के पटरे को मण्डप के बीच में रखें। चौकी पर सफेद वस्त्र बिछायें। 

8. उस पर शिव-पार्वती के विग्रह को स्थापित करें। 

9. उसे चौकी पर किसी पात्र में रखकर चंद्रमा को भी स्थापित करें।

10. सबसे पहले अपने आप को शुद्ध करने के लिये पवित्रीकरण करें।

 

पवित्रीकरण कैसे करें? 


हाथ में जल लेकर मंत्र –उच्चारण के साथ अपने ऊपर जल छिड़कें:-

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥


इसके पश्चात् पूजा कि सामग्री और आसन को भी जल मंत्र उच्चारण के साथ जल छिड़क कर मंत्र शुद्ध कर लें:-

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


सोमवार व्रत उद्यापन के लिये पूजा सामग्री:-


*शिव एवं पार्वती जी की मूर्ति,

∗ चंद्रदेव की मूर्ति या चित्र,

∗ चौकी या लकड़ी का पटरा,

∗ अक्षत – 250 ग्राम, 

∗ पान (डंडी सहित)- 5,

∗ सुपारी- 5,

∗ ऋतुफल,

∗ यज्ञोपवीत -1जोड़ा(हल्दी से रंगा हुआ),

∗ रोली- 1 पैकेट,

∗ मौली- 1

∗ धूप- 1पैकेट,

∗ कपूर-1 पैकेट,

∗ रूई- बत्ती के लिये,

∗ पंचामृत (गाय का कच्चा दूध, दही,घी,शहद एवं शर्करा मिला हुआ)-  50 ग्राम,

∗ छोटी इलायची- 5 ग्राम,

∗ लौंग- 5 ग्राम,

∗ पुष्पमाला-3 (2 सफेद एवं १लाल),

∗ चंदन- 1० ग्राम (सफेद एवं लाल),

∗ कुंकुम,

∗ गंगाजल,

∗ कटोरी,

∗ आचमनी,

∗ वस्त्र – 1.25    मीटर का चार (एक लाल एवं तीन सफेद) ,

∗ पंचपात्र,

∗ पुष्प,

∗ लोटा,

∗ नैवेद्य,

∗ आरती के लिये थाली,

∗ मिट्टी का दीपक- 5

∗ कुशासन- 1,

∗ खुल्ले रुपये,

∗ चौकी या लकड़ी का पटरा,

∗ केले के खम्बे (केले का तना सहित पत्ता/ केले का पत्ता) – 4,

∗ आम का पत्ता,

सोमवार व्रत उद्यापन हवन सामग्री :-


∗ हवन सामग्री- 1 पैकेट ,

∗ आम की समिधा- 1.25 किलो,

∗ घी- 1.25किलो,

∗ जौ- 250 ग्राम,

∗ काला तिल- 250 ग्राम ,

∗ अक्षत- 250 ग्राम

Brihaspativar Vrat Udyapan – बृहस्पतिवार गुरुवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Brihaspativar Vrat Udyapan – बृहस्पतिवार गुरुवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री




बृहस्पति उद्यापन पूजा को भगवान के प्रति धन्यवाद या कृतज्ञता के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। उद्यपन को 7,9,16,45,52,108 दिन के उपवास के बाद समापन किया जाता है। आइए जानते हैं बृहस्पति पूजा उदयापन की विधि। 


बृहस्पतिवार व्रत उद्यापन विधि-


इस व्रत का उद्यापन करने के लिए सुबह समय से उठकर तैयार हो जाएँ, और पूजा स्थल में गंगाजल का छिड़काव कर सफाई कर लें। पीले वस्त्र ही पहनें। पूजा स्थल को साफ करने के बाद या अलग से आसन लगाकर उस पर भगवान् विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें।  मंदिर या अपने घर के आस पास स्थित केले के पेड़ की पूजा करें, जल चढ़ाकर दीपक जलाएं। फिर षोडशोपचार पूजन विधि से विष्णु जी का अर्चना करें| घर आकर या वही बैठकर कथा करें।  उसके बाद प्रसाद लोगों में बाटें। उसके बाद श्री हरी के मंत्रो का उच्चारण करें। यदि कोई गलती हुई तो उसके लिए माफ़ी मांगे।



षोडशोपचार पूजन में निम्न सोलह तरीके से  विधिपूर्वक पूजन किया जाता है |

ध्यान-आह्वान: मन्त्रों और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है |

ईष्ट देवता को अपने  पास बुलाने के लिए आह्वान किया जाता है। ईष्ट देवता से निवेदन किया जाता है कि वे हमारे सामने हमारे पास आए।  वह हमारे ईष्ट देवता की मूर्ति में वास करें, तथा हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें, ताकि हम उनका आदरपूर्वक सत्कार करें।

आसन: ईष्ट देवता को आदर के साथ प्रार्थना करें की वो आसन पर विराजमान हों।

अर्घ्य: भगवान के प्रकट होने पर उनके हाथ पावं धुलाकर आचमन कराकर स्नान कराते हैं ।

आचमन: आचमन यानी मन, कर्म और वचन से शुद्धि। अंजुलि में जल लेकर पीना, यह शुद्धि के लिए किया जाता है। आचमन तीन बार किया जाता है। इससे मन की शुद्धि होती है।

स्नान: ईष्ट देवता, ईश्वर को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है | एक तरह से यह ईश्वर का स्वागत सत्कार होता है | जल से स्नान के उपरांत भगवान को  पंचामृत स्नान कराया जाता है |

वस्त्र: ईश्वर को स्नान के बाद वस्त्र चढ़ाए जाते हैं, ऐसा भाव रखा जाता है कि हम ईश्वर को अपने हाथों से वस्त्र अर्पण कर रहे हैं या पहना रहें है, यह ईश्वर की सेवा है |

यज्ञोपवीत: इसका अर्थ जनेऊ होता है | भगवान को समर्पित किया जाता है। यह देवी को अर्पण नहीं किया जाता है। यह सिर्फ देवताओं को ही अर्पण किया जाता है |

अक्षत: अक्षत मतलब अखंडित चावल , रोली, हल्दी,चन्दन, अबीर, गुलाल इनको मिला कर बनाया जाता है|

फूल: फूल माला को जिस ईश्वर की पूजा हो रही हो उनके पसंद के फूल और उसकी माला अर्पित करते है|

धूप, दीप, नैवेद्य: भगवान को मिठाई का भोग लगाया जाता है इसको ही नैवेद्य कहते हैं।
 


बृहस्पतिवार व्रत पूजा की सामाग्री-

धोती – 1 जोड़ा, पीला कपड़ा – 1.25 मीटर, जनेउ – एक जोड़ा, चने की दाल – 1.25 किलो, गुड़ – 250 ग्राम, पीला फूल, या फूल माला, दीपक – 1, घी –250 ग्राम,धूप –1पैकेट, हल्दीपाउडर –1 पैकेट,कपूर –1 पैकेट, सिंदूर – 1 पैकेट, बेसन के लडू – 1.25 किलो, मुन्नका (किशमिश)25 ग्राम, कलश –1, आम के पत्ते, सुपारी, श्रीफल, पीला वस्त्र, केला, विष्णु भगवान की मूर्ति, केले का पेड़


ताम्बूल, दक्षिणा, जल ,आरती: 

तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजा सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में सुपारी, लौंग और इलायची भी दी जाती है ।

दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। 

आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।

मंत्र पुष्पांजलि: मंत्र पुष्पांजलि मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बिताएं।


प्रदक्षिणा-नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा:

प्रदक्षिणा-नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा | आरती के उपरांत भगवान की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए |

स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें। 
इन उपायों को करने से भगवान की कृपा बनी रहती है

Monday, October 11, 2021

दुर्गा स्तोत्र

 

दुर्गा स्तोत्र


जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

According to Hindu Mythology chanting of Durga Stotra regularly is the most powerful way to please Goddess Durgaand get her blessing.

How to chant Durga Stotra

To get the best result you should chant Durga Stotra early morning after taking bath and in front of Goddess DurgaIdol or picture. You should first understand the Durga Stotra meaning in hindi to maximize its effect.

Benefits of Durga Stotra

Regular chanting of Durga  gives peace of mind and keeps away all the evil from your life and makes you healthy, wealthy and prosperous.

Durga  Stotra  Image: