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Wednesday, December 15, 2021

Durga Stotram - Maa Durga

 Durga Stotram - Maa Durga



Durga Stotram in Hindi

समस्त शास्त्रों में देवी- देवताओं में पहला स्थान आद्यशक्ति भगवती माँ दुर्गा माँ को दिया जाता है, जो स्वंय महादेव शिव की भी महाशक्ति मानी जाती है। माँ दुर्गा भवानी की शरण में जाने वाले की सभी आध्यात्मिक और भौतिक कामनाएं माता पूरी कर देती है। अगर माता की कृपा पाना चाहते हैं तो प्रतिदिन दिन में एक बार माँ दुर्गा की इस कामना पूर्ति स्तुति का पाठ श्रद्धा पूर्वक जरूर करें। कुछ ही दिनों में माता दुर्गा की कृपा से सभी इच्छाएं पूरी होने लगेगी।


माँ दुर्गा के इस स्त्रोत का पाठ करें-

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत को दुर्गा सप्तशती ग्रंथ पाठ का सार माना जाता है, इसलिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मिलने वाला सम्पूर्ण फल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत पाठ के करने मात्र से मिल जाता है। दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण पाठ करने में कम से कम 3 घंटे का समय लगता है, वहीं सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ कुछ मिनट में ही पूर्ण हो जाता है। यदि कोई संकल्प लेकर सिद्ध कुंजिका स्त्रोत मंत्र का नियमित जप करते है तो माँ दुर्गा के आशीर्वाद से उनकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होने लगती है।



सिद्ध कुंजिका स्त्रोत मंत्र पाठ सरल विधि

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल कपडा बिछाकर माँ दुर्गा की फोटो स्थापित कर आव्हान व पूजन करें। इस मंत्र को एक कोरे सफेद कागज पर लिखकर फोटो के नीचे रख दें। चौकी के बायीं तरफ गाय के घी का एक दीपक जलाने के बाद श्री गणेश जी के प्रतिक रूप में एक बड़ी सुपारी में लाल धागा लपेटकर चावल की ढेरी के आसन पर स्थापित कर आव्हान व पूजन करें। अब कुशा के आसन पर बैठकर हर रोज इस स्त्रोत मंत्र का जप 108 करें। सिद्ध कुंजिका स्त्रोत मंत्र के जप से जीवन में आने वाली बाधाएं, पीडाएं धीरे-धीरे दूर होने के साथ समाज में मान -सम्मान एवं धन धान्य की प्राप्ति भी होती है।

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माँ दुर्गा की ये स्तुति करती है हर मनोकामना पूरी

 Durga Stotram VYAS DWARA LIKHA HUA

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥




Maha Lakshmi Stotram

 Maha Lakshmi Stotram


Namaste stu mahamaye
sripithe sura-pujite,
Sankha-cakra-gada-haste
mahalaksmi namo stu te.

Meaning -
O ! Mahamaya , you are our house of fortune,who is worshipped by the devas,I bow and offer Thee;O ! Mahalakshmi , who holds the dic,conch and mace ,am your devotee and O ! Mahalakshmi I always worship you.

Namaste garudarudhe
kolasura-bhayankari
Sarva-papa-hare devi
mahalaksmi namo stu te.

Meaning -
My salutations to thee ,riding on the bird Garuda and art to remove the Asura Kola;O Goddess Mahalakshmi,you are the one who remove's alll the distress and pain of your devotees,am your devotee and I alway'sworship you.

Sarvajne sarva varade
sarva-dusta-bhayankari,
Sarva-dukha-hare devi
mahalaksmi namo stu te.
Meaning -
O ! Goddess Mahalakshmi,who is known to all,you are the one who gives boons to her devotees,A remover of all the sins,who destroys fear and diseases and O ! Mahalakshmi I always worship you.

Siddhi-buddhi-prade devi
bhukti mukti-pradayini
Mantra-Murte sada devi
mahalaksmi namo stu te.

Meaning -
O  ! Goddess,you are the one who gives intelligence and success to the people in need and you give enjoyment and liberation,The symbols you display as Mystic.O ! Mahalakshmi I always worship you.

Adyanta-rahite devi
adyasakti mahesvari
Yogaje yoga-sambhute
mahalaksmi namo stu te.
Meaning -
O !  Goddess ,Maheshwari,with you is the begining and with you is an end,you are the energy source of the universe born of yoga,O ! Mahalakshmi I always worship you.

Sthula-suksma-maharaudre
mahasakti-mahodare,
Maha-papa-hare devi
mahalaksmi namo stu te.

Meaning -
O ! Mahalakshmi,you are the life of all the beings in ultra fine,you are the great power,who has great prosperity and you are the remover of all sins,O ! Mahalakshmi I always worship you.

Padmasana-sthite devi
parabrama svarupini,
Paramesi jagan matar-
mahalaksmi namo stu te.

 Meaning -
O ! Mahalakshmi,seated on a Lotus flower,who art lord Brahma ,who is the great lord and look after your devotees like a mother , you are the source energy of the Universe.O ! Mahalakshmi I always worship you.

Svetambara-dhare devi
nanalankara-bhushite,
Jagat-sthite jagan-matar-
mahalaksmi namo stu te.

Meaning -
O Goddess,who is in white saree,decked with very precious ornaments,you are the mother of the Universe and the energy support fo it,O Mahalakshmi I always worship you.

Mahalaksmyastakam stotram
yah pathed bhaktiman narah,
Sarva-siddhim-avapnoti
rajyam prapnoti sarvada.

Meaning -
This song is for you the great Goddess of wealth,If read with devotion will attain all the success and will get all the worldly position.

Eka-kale pathen nityam
maha-papa vinasanam
Dvi-Kalam yah pathen nityam
dhana-dhanya-samanvitah

Meaning -
If this song is read Once a day,all the sins will be destroyed and if a person reads this twice a day wealth and prosperity will be showered on him/her.

Tri-kalam yah pathen nityam
mahasatru-vinasanam,Mahalakshmir-bhaven-nityam
prasanna varada subha.

Meaning -
If a person reads this thrice a day,all the enemies (ego) will be destroyed.Goddess Mahalakshmi will be ever pleased with that auspicious one.

Outcome of this Mantra -
A person he/she who chants this mantra at least once per day, Goddess Lakshmi will give her blessings in the form of wealth and fill happiness in his/her family.



वर्षफल और ताजिक योग | Varshaphal and Tajik Yoga

 

वर्षफल और ताजिक योग | Varshaphal and Tajik Yoga




बिना ताजिक योगों के वर्ष कुण्डली का अध्ययन अधूरा होता है. कार्य की सिद्धि होगी अथवा नहीं होगी यह ताजिक योगों से ज्ञात होता है. अधिकतर ताजिक योग लग्नेश तथा कार्येश पर आधारित होते हैं.

इकबाल योग | Ikbal Yoga

इकबाल योग का अर्थ प्रतिष्ठा, सम्मान से होता है. वर्ष कुण्डली में यदि सभी ग्रह केन्द्र भाव अर्थात 1,4,7,10 में या पणफर (STHIR RASHI) अर्थात 2,5,8,11 में स्थित हों तो इकबाल योग क अनिर्माण होता है. यह एक अच्छा तथा शुभ योग है कुण्डली में यह योग शुभता एवं कार्यसिद्धि का सूचक बनता है.

इन्दुवार योग | Induvar Yoga

इंदुवार यो भाग्य में कमी को दर्शाता है. यदि वर्ष कुण्डली में सारे ग्रह अपोक्लिम अर्थात 3,6,9,12 भावों में हो तब इन्दुवार योग बनता है. इस भावों बैठे ग्रह क्षीणता युक्त होते हैं.

दुरुफ योग | Duruph Yoga

कुण्डली में यदि लग्नेश तथा कार्येश 6,8,12 भावों में निर्बल अवस्था में स्थित हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हों तब दुरुफ योग बनता है. यह अच्छा योग नहीं होता.

इत्थशाल योग | Ithashal Yoga

लग्नेश तथा कार्येश में दृष्टि संबंध हो. लग्नेश तथा कार्येश दीप्ताँशों में हो. इत्थशाल होने के लिए दो ग्रहों का आपस में संबंध होता है. मंदगामी ग्रह के अंश अधिक हों तथा तीव्रगामी ग्रह के अंश कम हों. उपरोक्त शर्ते यदि पूरी हो रही हों तो इत्थशाल योग बनता है. यह योग भविष्य में होने वाला संबंध दिखाता है. भविष्य में कार्य सिद्धि के योग बनते हैं.

इशराफ योग | Ishraf Yoga

कुछ विद्वान इसे मुशरिफ योग भी कहते हैं. यह योग इत्थशाल योग के ठीक विपरीत होता है. परस्पर दो ग्रहों में दृ्ष्टि हो, परन्तु शीघ्रगामी ग्रह के अधिक अंश हों तथा मंदगामी ग्रह के अंश कम हों. इस प्रकार शीघ्रगामी ग्रह आगे ही बढ़ता रहेगा और कार्य हानि होगी. मंदगामी ग्रह, तीव्रगामी ग्रह से एक अंश से अधिक पीछे हो तो इशराफ होगा.

कुत्थ योग | Kutha Yoga

लग्नेश, कार्येश कुण्डली में बली हों. शुभ ग्रहों से दृष्ट हों, शुभ भावों में हों तथा शुभ संबंध में हों तो शुभ है. कार्य की सिद्धि हो सकती है.

दुफलि कुत्थ योग | Dufali Kutha Yoga

कुण्डली में मंदगामी ग्रह बली हो. तीव्रगामी ग्रह निर्बल हो तो दुफलि कुत्थ योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्य सिद्धि की संभावना अच्छी रहती है.

मणऊ योग | Manau Yoga

इत्थशाल में शामिल ग्रहों से मंगल तथा शनि का संबंध भी बन रहा हो तो मणऊ योग बनता है. इसमें कार्य की हानि हो होती है. कार्य नहीं बनता.

रद्द योग | Radd Yoga

वर्ष कुण्डली में यदि मंदगामी ग्रह निर्बल हो तथा तीव्रगामी ग्रह बली हो तब रद्द योग बनता है. इस योग के बनने से कार्य हानि होती है.

कम्बूल योग | Kambool Yoga

वर्ष कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का परस्पर इत्थशाल हो रहा हो. दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के साथ चन्द्रमा का इत्थशाल हो रहा हो तब कम्बूल योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्यसिद्धि होती है.

गैरी कम्बूल योग | Gairi Kambool Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल, शून्यमार्गी चन्द्रमा से हो रहा हो और चन्द्रमा राशि अंत में भी स्थित हो तब यह गैरी कम्बूल योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि विलम्ब से होती है.

खल्लासर योग | Khallasar Yoga

लग्नेश तथा कार्येश का संबंध होने से इत्थशाल है लेकिन शून्यमार्गी चन्द्रमा से कोई संबंध नहीं है तो यह खल्लासर योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि नहीं होती है.

ताम्बीर योग | Tambeer Yoga

जब कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल नहीं होता है. एक राशि अंत में होता है और दूसरा ग्रह अगली राशि में आने पर किसी अन्य बली ग्रह से इत्थशाल करे तब यह ताम्बीर योग बनता है. इस योग में किसी अन्य की सहायता से कार्य की सिद्धि होती है.

नक्त योग | Nakta Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन कोई अन्य तीसरा तीव्रगामी ग्रह दोनों से इत्थशाल करता है तो नक्त योग बनता है. इस योग में किसी मध्यस्थ की सहायता से बात बन सकती है अर्थात कार्य सिद्धि हो सकती है.

यमया योग | Yamya Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन किसी अन्य मंदगामी ग्रह से दोनों का इत्थशाल हो तो यमया योग बनता है. इस योग में किसी बडे़-बुजुर्ग की सहायता लेकर व्यक्ति कार्य बना सकता है. किसी को मध्यस्थ बनाकर कार्य को सफल बनाया जा सकता है.

Friday, November 26, 2021

मिलेगी सुंदर और भाग्यशाली पत्नी | कुंडली में सुंदर और भाग्यशाली पत्नी के योग

 मिलेगी सुंदर और भाग्यशाली पत्नी



जन्म कुंडली में यदि इस प्रकार के योग है तो मिलेगी सुंदर और भाग्यशाली पत्नी:-
  • यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो उसे सुंदर पत्नी मिलती है.!
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव का स्वामी सौम्य ग्रह होता है और वह स्वराशि होकर सप्तम भाव में ही स्थित होता है तो व्यक्ति को सुंदर और भाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है.!
  • जब सप्तम भाव का स्वामी सौम्य ग्रह हो और वह नवम भाव में हो तो व्यक्ति को गुणवती और सुंदर पत्नी प्राप्त होती है। इस योग से व्यक्ति का भाग्योदय विवाह के बाद होता है.!
  • सप्तम भाव का स्वामी एकादश भाव में उपस्थित हो तो व्यक्ति की पत्नी रूपवती, संस्कारी, मीठा बोलने वाली और सुंदर होती है। विवाह के पश्चात व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी लाभ प्राप्त होते है.!

  • यदि व्यक्ति की कुंडली के सप्तम भाव में वृष या तुला राशि होती है तो व्यक्ति को चतुर, मीठा बोलने वाली, सुंदर, शिक्षित, संस्कारी, तीखे नयन-नक्ष वाली, गौरी, संगीत कला आदि में दक्ष पत्नी प्राप्त होती है.!
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव में मिथुन या कन्या राशि हो तो व्यक्ति को कोमल, आकर्षक व्यक्तित्व वाली, भाग्यशाली, मीठा बोलने वाली श्रेष्ठ पत्नी प्राप्त होती है.! 
  •  जिस व्यक्ति की कुंडली के सप्तम भाव में कर्क राशि है, उसे अत्यंत सुंदर, भावुक, कल्पनाप्रिय, मधुरभाषी, लंबे कद वाली, तीखे नयन-नक्ष वाली, भाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है.!
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव में कुंभ राशि हो तो ऐसे व्यक्ति की पत्नी गुणवान, धार्मिक, आध्यात्मिक कार्यों में गहरी रुचि रखने वाली एवं दूसरों का सहयोग करने वाली होती है.!
  • कुंडली के सप्तम भाव में धनु या मीन राशि हो तो व्यक्ति को पुण्य के कार्यों में रुचि रखने वाली, सुंदर, न्याय एवं नीति की बातें करने वाली, पति के लिए भाग्यशाली, शास्त्र अध्ययन करने वाली पत्नी प्राप्त होती है..!!

Tuesday, November 16, 2021

Life is a Struggle – or Is It??

 What do you think? Is your life a struggle? Have you been conditioned to believe that life is a struggle? If you think it is, then this is what will unfold and if you don’t, it won’t. But is it that simple?




I believe that your life is the sum total of your thoughts and beliefs about life. If you were taught that life will be a struggle, every experience you have will be framed within this thinking. Instead of being open-minded about what life throws at you, you will automatically be expecting bad things to happen. Of course bad things do happen but we can pre-empt negative occurrences, expecting them to occur-this is called a self fulfilling prophecy. Machiavelli is the philosopher of choice for people who struggle. Typical sayings such as “it’s a dog eat dog world” or “you get nothing for nothing” suggest an attitude of negativity. many people do not realise how much their thinking affects the quality of their life. I’m not saying that life is always easy-life is a challenge. When we struggle against the natural rhythms of life, we create resistance and opposition and this is what leads to struggle.

With struggle there is no joy and rarely any reward. In fact, for some people struggle is the reward. They are a little lost without it. There is comfort in what you know. They struggle through life sacrificing their own needs and falling to bed exhausted every night. They justify this joyless existence by saying things like, “that’s life”. I have had clients who are incredibly successful but at the same time thoroughly miserable. They loathe what they do and what they have become. Often this is what they expected. “This is just how life is. You have to get on with it”.

If you believe that life is meant to be a struggle ask yourself how this belief helps you. Does it make you happier? I doubt it. If you create unnecessary struggle and stress for yourself you are in the majority. As adults, many of us are passing stressful struggle onto our kids.




What to do

1) Identify struggle in your life

Is struggle are programmed response in your life? You may be responding negatively to life without even realising it. Forcing yourself to be a certain way or do a certain job because “that’s just how life is”, will never promote happiness.

2) Increase pleasure and fun

look for beauty everywhere. It could be the sound of birds singing or the sun shining. Treat yourself often. Plan a day every now and then you get to do nothing or do what you love doing.

3) Don’t be so serious

laugh more. See the funny side of life. Laughter releases endorphins and relieves pain whilst boosting your immune system. Spend the evening at a comedy club or watch a comedy on television. Serotonin levels affect our sense of optimism, confidence and self esteem. Learn to lighten up.

4) Analyse your attitude

What is your philosophy in life? Do you see struggle and sweat as noble, natural and inevitable? Is the alternative being lazy and apathetic? If you have been raised on struggle, it may take time to reprogram your attitudes for a more carefree existence. Let go of the idea that relaxed people cannot be super achievers.

Stop trying to blow at the sails of your boat to get across the lake. Take the time to relax and enjoy the scenery. Sooner or later a natural gust of wind will take you where you want to be.


Do You Have Difficulty Prioritizing What to do First?

If you feel overwhelmed by all the changes you need to make, it’s likely that you’ll remain stuck. Often, people want to lose weight, quit smoking, earn more money, or move to a better place, but they struggle to prioritize what to do first.

If you try to work on everything all at once, it’s unlikely you’ll be successful. Trying to address too many problems at the same time can leave you paralyzed when it comes to deciding what to do first. It’s important to prioritize which order to address your issues and begin working on them systematically.


Do You Give Up Easily When Things Don’t Go the Way You Want?

If you give up as soon as things don’t go your way, it’s unlikely that you’re going to be successful in overcoming your struggles. A common mistake people make that keeps them struggling in life is that they give up if their first attempt to solve the problem does not work.

Most problems require many attempts to reach a successful solution. Often, creative solutions are needed to successfully resolve problems. However, if you quit trying as soon as your first attempt at a resolution isn’t successful, you aren’t likely to move forward.


Do You Blame Others in Your Life for Your Mistakes?

Blaming others for your struggles isn’t helpful. In fact, it’s necessary to take responsibility for your behavior and your ability to work through solutions before you can successfully overcome many of life’s struggles.

If you blame your childhood, bad luck, or lack of support for your problems, you’re likely to stay stuck. However, if you can own your mistakes in life and develop strategies to overcome problems, you’re much more likely to be successful.

Thursday, October 28, 2021

तलाक सेमुक्ति पानेके लिए ये कर

 तलाक सेमुक्ति पानेके लिए ये कर | REMEDY OF DIVOCE


DO ANY ONE OF THE BELOW REMEDY


: हनुमान जी का वीर रुपक चित्र अपने घर की उत्तर दिशा में लगाएं।



: हनुमान मंदिर सेप्राप्त दक्षिणमुखी हनुमान का सिंदूर जीवनसाथी की फोटो पर लगाएं।

: तलाक का कारण रा हु होनेपर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर मेंलगातार सात शनिवार तक शाम के समय सात नारियल चढ़ाएं। 



: राहु के कारण तलाक की स्थिति का निर्माण होनेपर दक्षिण मुखी हनुमा जी की उल्टी सात परिक्रमा सात शनिवार तक शाम के समय लगाएं।

: शनि ग्रह तलाक की स्थिति का कारण बनेतो हनुमान जी के चित्र पर सात शनिवार गुड़गु का भोग लगाने के बाद उसेकाली गाय को खिला दें। 


रविवार तक 7 अनार चढ़ानेके बाद उसेकिसी नवदंपति को भेंट करें।



 : मंगल के कारण तलाक की स्थिति मेंसात मंगलवार तांबेके लोटे मेंगेहूं भरकर उस पर लाल चंदन लगाकर लोटे समेत हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।

विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए।

 विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए।



1- विवाह संस्कार इस माह मेंनिषेध: ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, जिस माह मेंजातक के माता-पिता का विवाह हुआ हो या जिस माह मेंस्वयं उस जातक का जन्म हुआ हो उस माह मेंविवाह संस्कार नहीं करना चाहिए। 


2- यह नक्षत्र नहीं हैशुभ: पुष्य और पूर्वाफाल्गुनी गु नक्षत्रों मेंविवाह संस्कार करना शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस दौरान विवाह संस्कार वर्जित है। 


3- कब हो प्रथम संतान का विवाह: ज्योतिषशास्त्र के जानकारों के अनुसार किसी व्यक्ति को अपनी प्रथम यानि ज्येष्ठ संतान का विवाह कभी भी ज्येष्ठ माह मेंनहीं करना चाहिए। इसका कारण यह हैकि ज्येष्ठ माह भी होता हैऔर संतान भी ज्येष्ठ जो कि शुभ संयोग नहीं होता है। इसलिए अपनी पहली संतान का ज्येष्ठ माह मेंविवाह करना अशुभ माना गया है। 


4- ग्रहण मेंन करेंवि वाह: सूर्यअथवा चंद्र ग्रहण के तीन दिन पूर्वऔर ग्रहण के तीन दिन बाद तक विवाह कार्य करना वर्जित माना जाता है। 


5- इस योग मेंन करेंविवह: जिस समय गुरुगु, शुक्र गोचर मेंहों और तारा अस्त हो तो इस योग मेंभी विवाह कार्य नही करना चाहिए। चतुर्मास मेंजब भगवान विष्णुशयन करतेहैंउस समय सेलेकर देवउठनी एकादशी के दौरान भी विवाह संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। 

Tuesday, October 26, 2021

लक्ष्मी-नारायण योग

 

लक्ष्मी-नारायण योग



ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी नारायण योग जन्म-कुंडली में स्थित शुभ बुध और शुक्र ग्रह की युति से बनने वाला योग है। जिसका फल राजयोग कारक होता है। बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास का कारक है। लक्ष्मी योग में बुध को विष्णु शुक्र को लक्ष्मी की श्रेणी दी गई है। इन दोनों ग्रहो का आपसी संबंध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है। यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है, एक बहुत शुभ योग है। 


Lakshmi Nrayana Yoga: हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी के पूजन को समर्पित होता है। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न होती है और भक्तों को सुख, संपत्ति का वर देती हैं। ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार इस शुक्रवार को लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण हो रहा है। जो कि माता लक्ष्मी के पूजन के लिए अत्यंत शुभ योग है। इस योग में मां लक्ष्मी का पूजन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है तथा जीवन में कभी अन्न और धन की कोई कमी नहीं होती है।



यह योग सुख सौभाग्य को बढ़ाने वाला योग है। लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है। 



  • लग्न, पांचवें, नौवें भाव में शुक्र बुध से बनने वाले लक्ष्मी नारायण योग के प्रभाव से जातक किसी न किसी कला में विशेष दक्ष होता है। 
  • पांचवें भाव में बनने से बली लक्ष्मी नारायण के प्रभाव से जातक विद्वान् भी होता है। 
  • शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युति इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है। धन-धान्य योगों में से यह योग एक योग है। 

किन किन राशि में देता है लक्ष्मी-नारायण योग पूर्ण-फल  

जन्मकुंडली के अनुसार यह लक्ष्मी-नारायण योग मेष, धनु, मीन लग्न में ज्यादा अच्छा प्रभाव नही दिखाता। बल्कि यह योग वृष, मिथुन, कन्या, तुला राशि में बहुत बली होता है।  इसी तरह बारहवें भाव का शुक्र कन्या राशि के आलावा किसी भी राशि में हो तब एक तरह से “भोग योग” बनाता है। यह योग शुक्र से सम्बंधित शुभ फलो में वृद्धि करके जातक को ज्यादा से ज्यादा शुक्र संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

शुक्र की स्थिति से कई राजयोग भी बनते है जिसमे शुक्र वर्गोत्तम या अन्य तरह से बलशाली होने पर अकेला राजयोगकारक होता है। यह योग कुछ ही लग्नो में कारगर होते है जैसे कि, कन्या लग्न में शुक्र भाग्येश धनेश होकर योगकारक है। इसी तरह मकर, कुम्भ लग्न की कुंडलियो में यह विशेष राजयोग कारक होता है। इन दोनों मकर, कुम्भ लग्न में किसी भी तरह से यह अकेला भी बलशाली और पाप ग्रहों के प्रभाव से रहित होता है तो राजयोग बनाता है जिसके फल शुभ फल कारक होते है।



लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण तब होता है 

जब जन्म कुंडली में बुध ग्रह और शुक्र ग्रह की युति बनती है. यानि ये दोनों ग्रह जब साथ आते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बुध को बुद्धि, वाणिज्य और शुक्र को लग्जरी लाइफ आदि का कारक माना गया है. जब ये योग बनता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि और प्रतिभा से जीवन में हर प्रकार के सुखों को प्राप्त करता है. ऐसे जातक के जीवन में धन की भी कोई कमी नहीं रहती है. इस योग के कारण व्यक्ति के आय के स्त्रोत एक से अधिक होते हैं, यानि वो कई कार्यों से धन की प्राप्ति करता है.


बुध और शुक्र से बनने वाले इस योग के कारण व्यक्ति जीवन का भी भरपूर आनंद लेता है. ऐसे व्यक्ति कला प्रेमी होते हैं. कला का सरंक्षण भी करते हैं. वहीं जब बुध और शुक्र पर देव गुरु बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है तो लक्ष्मी नारायण योग की में चार चांद लग जाते हैं. गुरू का साथ मिलने से ऐसा जातक अपने ज्ञान का भी लाभ प्राप्त करता है. ऐसे लोग ज्ञान और शिक्षा के मामले में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं.


लक्ष्मी नारायण योग व्यक्ति प्रतिभावान होते हैं. ऐसे लोग अपनी प्रतिभा से देश और दुनिया में भी सफलता और सराहना प्राप्त करते हैं. जब ये योग जन्म कुंडली के पंचम भाव में बनता है तो विशेष फल प्राप्त होते हैं. शिक्षा और ज्ञान के मामले में यह योग विशेष सफलता प्रदान करता है. 

कलानिधि योग का निर्माण | Formation of Kalanidhi Yoga

 

कलानिधि योग का निर्माण | Formation of Kalanidhi Yoga


“कलानिधि योग” -HIGHER EDUCATION YOGA

शुक्र के सहयोग से बनने वाला शुभ “कलानिधि योग” योग जातक को किसी न किसी कला में माहिर बनाकर राजयोग तक देता है। इस योग में तीन ग्रहों का सहयोग रहता है।  जब दूसरे और पांचवें भाव में बृहस्पति की दृष्टि सम्बन्ध शुक्र बुध की युति से होता है, विशेष रूप से युति सम्बन्ध हो तब कलानिधि योग बनता है। दूसरा और पाचवां भाव कला से सम्बंधित है। इस कारण दूसरे, पांचवे भाव से ही कलानिधि योग बृहस्पति शुक्र बुध के सहयोग से बनता है। इस तरह अन्य कई शुभ योग शुक्र से बनते है जो विशेष तरह के लाभकारी योग होते हैं। योग कोई भी हो योग की शुद्धता होना जरूरी है तभी वह अच्छे से फलित होता है। जैसे योग बनाने वाले ग्रह और योग बनाने वाले ग्रहो के साथ जो भी ग्रह है वह भी अस्त या अशुभ न हो, अंशो में ग्रह बहुत प्रारंभिक या आखरी अंशो पर न हो, पीड़ित न हो, योग बनाने वाले ग्रह नवमांश कुंडली में नीच या बहुत ज्यादा पाप ग्रहो से पीड़ित न हो आदि। जातक पर महादशा-अन्तर्दशा अनुकूल और शुभ हो तब योग अच्छे से फलित होकर अपना पूरा प्रभाव दिखाते है। शुभ योग बनाने वाले ग्रहों के कमजोर होने पर उन्हें उपाय से बली करके शुभ योग के शुभ फलो को बढ़ाया जा सकता है।




चर लग्न में नवमेश बृहस्पति से युक्त होने पर तथा पंचमेश के पंचमस्थ होने पर और प्रबल दशमेश के लाभ भाव में स्थित होने पर कलानिधि योग का निर्माण होता है.

यदि कुण्डली में गुरु दूसरे या पंचम भाव में स्थित हो और शुक्र या बुध उसे देख रहा हो तब कलानिधि योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुंडली में यदि गुरू, बुध या शुक्र की राशि में स्थित है तब भी कलानिधि योग बनता है.

लग्न में यदि चर नवांश हो और नवमेश बृहस्पति के साथ लग्न में स्थित हो तथा पंचमेश पंचम में ही स्थित हो तथा दशमेश बली होकर लाभ स्थान में स्थित हों तो कलानिधि योग का फल प्राप्त होता है. इस योग में कहा जाता है कि आयु के 23वें वर्ष में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.

कलानिधि के बारे में एक अन्य तथ्य यह है कि नवांश से संबंधित ग्रहों का उल्लेख नहीं होता क्योंकि नवांश संबंधित ग्रह योग काफी किलष्ट होते हैं. दूसरे भाव में गुरू को बुध और शुक्र से अवश्य संयुक्त होना चाहिए. अथवा पंचम भाव में शुक्र और बुध गुरू की राशि धनु या मीन में स्थित हों तो कलानिधि योग की सरंचना होती है.


कला निधि योग- 

यह योग गुरु,शुक्र व बुध के संयुक्त प्रभाव से बनता है। गुरु यदि दूसरे या पांचवें स्थान पर शुक्र-बुध के साथ स्थित हो या इनके दृष्टी प्रभाव में हो तो कलानिधि योग बनता हैं। इसके अतिरिक्त यह योग तब भी फल देता हैं जब गुरु,शुक्र व बुध एक साथ लग्न, नवम या सप्तम स्थान पर स्थित हो।


कलानिधि योग का प्रभाव व फल- 

इस योग को सरस्वती योग के नाम से भी जाना जाता हैं। कला निधि योग इंसान को सच्ची सफलता प्रदान करता हैं। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अनेक क्षमताओं से युक्त होता है। विभिन्न प्रकार का ज्ञान उसकी बुद्धि क्षमता को प्रदर्शित करता है। ऐसे जातक ज्ञानी, दानी, राजाओं द्वारा सम्मानित, विभिन्न प्रकार के सुखों को भोगने वाला तथा कलाओं की खान होता हैं।

कला निधि योग में जन्में जातक भले ही किसी भी पृष्ठभूमि से हो लेकिन असीमीत सफलता प्राप्त करते हैं। इन्हे किसी की दया या पैतृक सम्पदा प्राप्त नही होती अपितु सारा कुछ इनकी मेहनत  के बल पर प्राप्त होता हैं।

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री

 

Budhwar Vrat Udyapan – बुधवार व्रत उद्यापन विधि एवं सामग्री



बुधवार व्रत उद्यापन विधि (Budhwar Vrat Udyapan Vidhi) -


बुधवार का दिन बुध भगवान और भगवान श्री गणेश को समर्पित होता है। जब आप व्रत शुरू करते हैं तो आप संकल्प लेते हैं कि कितने व्रत कितने समय तक जारी रहेगा। तो जब वो निश्चित समय पूर्ण ही जाए तो आपको विधि अनुसार उस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

इसके लिए आपको कुछ समाग्री की ज़रूरत पड़ेगी। सर्वप्रथम तो बुद्ध भगवान या गणेश भगवान की एक मूर्ति ले लें। इसके अलावा 1 कांस्य का पात्र, चावल, अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, गुड़, लाल चंदन, पुष्प, रोली, यज्ञोपवीत, हरा वस्त्र, कपूर, ऋतुफल, इलायची, सुपारी, लौंग, पान, पंचामृत, गुलाल, मूंग दाल से बनी हुई नैवेद्य, जल पात्र, आरती के लिए पात्र और हवन की बाकी समाग्री एकत्रित कर लें।


आज हम जानेगें कैसे करे बुधवार व्रत का उद्यापन और उसकी सामग्री विधि -




अगर आपको मंत्रों का अच्छा ज्ञान है तो आप ये स्वयं ही कर सकते हैं पर अगर ऐसा नहीं है तो किसी ब्राह्मण को बुला लें। किसी कारणवश अगर आप किसी ब्राह्मण को नहीं बुला सकते या फिर किसी सामग्री का इंतज़ाम नहीं कर सकते तो घबराने की बात नहीं है।

आप सामान्य रूप से पूजा करके जो भी समाग्री आपके पास उपलब्ध हो वो चढ़ा सकते हैं और बाकी सामान को मन में याद करके ऐसी कल्पना करें कि आप वो सच में ईश्वर को चढ़ा रहे हों। इससे भी आपकी पूजा सफल मानी जाएगी। ध्यान रहे ये तभी काम करता है जब आपके मन का भाव बिल्कुल सच्चा हो और आपका मन साफ हो। ईश्वर के लिए आपकी आस्था सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आपकी आस्था सच्ची है तो को आपकी काल्पनिक समाग्री को भी हर्ष के साथ स्वीकार करेंगे। आप मानसिक रूप से उनकी पूजा करें वो ज़्यादा आवश्यक है।

व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले तो सुबह-सुबह उठकर स्नान कर लें और हरे रंग का वस्त्र पहनें। इसके पश्चात पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई कर लें। पुज की सारी समाग्री पूजा स्थल पर एक जगह रख लें जिससे कि आपको बीच में उठना ना पड़े। एक लकड़ी की चौकी लें, हरा कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर कांस्य का पात्र रखें। इसके बाद पात्र के ऊपर बुध भगवान और गणेश जी की मूर्ति को स्थापित कर दें। अब सामने में आसान बिछाकर बैठ जाएं और पूजा प्रारंभ करें।

बुधवार व्रत उद्यापन के लिये पूजा सामग्री:-


सबसे पहले तो हाथ में जल लेकर खुद पर, पूजा समाग्री पर और आसन पर छिड़ककर सबको शुद्ध कर लें। जल छिड़कते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें-

बुधवार व्रत मंत्र खुद के शुद्धि के लिए:


ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

समाग्री और आसन की शुद्धि के लिए:


पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

इसके बाद फूल की मदद से एक एक बूंद जल अपने मुंह में डालकर “ॐ केश्वाय नमः”, “ॐ नारायणाय नमः” और “ॐ वासुदेवाय नमः” बोलें। इसके बाद “ॐ हृषिकेशाय नमः” बोलकर हाथों को खोलकर अंगूठे के मूल से अपने होंठ पोंछे। इसके बाद अपने हाथ धोकर साफ कर लें।

इसके बाद गणेश जी की पूजा करनी होती है तो पंचोपचार विधि से उनकी पूजा कर लें। उनकी पूजा के बाद हाथों में पान का पत्ता, सुपारी, जल, अक्षत और कुछ सिक्के ले लें। उसके बाद निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण कर उद्यापन करें:

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे (जिस माह में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकपक्षे (जिस पक्ष में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामअमुकतिथौ (जिस तिथि में उद्यापन कर रहे हों, उसका नामबुधवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे (उद्यापन के दिन, जिस नक्षत्र में सुर्य हो उसका नामअमुकराशिस्थिते सूर्ये (उद्यापन के दिन, जिस राशिमें सुर्य हो उसका नामअमुकामुकराशिस्थितेषु (उद्यापन के दिन, जिस –जिस राशि में चंद्र, मंगल,बुध, गुरु शुक, शनि हो उसका नामचन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः (अपने गोत्र का नामअमुक नाम (अपना नाम) अहं बुधवार व्रत उद्यापन करिष्ये ।


इसके पश्चात हाथ जोड़कर बुध देव का ध्यान करें और ये मंत्र पढ़ें:


बुधं त्वं बोधजनो बोधव: सर्वदानृणाम्।
तत्त्वावबोधंकुरु ते सोम पुत्र नमो नम:


हाथों में अक्षत और पुष्प लें और इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बुध देव का आवाहन करें:

ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।


मंत्र का उच्चारण करते हुए अन्य सभी वस्तुओं के साथ उन्हें आसन अर्पित करें।
इसके पश्चात पाद्य धोएं। इसके लिए फूल की मदद से बुध देव को जल चढ़ाएं और साथ में इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: पाद्यो पाद्यम समर्पयामि

अब अर्घ्य देने के लिए जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:

ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: अर्घ्यम समर्पयामि


फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब जल अर्पित करें तो इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

फूल से जल अर्पण करते हुए बुध देव को स्नान कराएं और साथ ही इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: स्नानम् जलम् समर्पयामि।

इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराते वक़्त ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: पंचामृत स्नानम् समर्पयामि।

पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें गंगाजल से उन्हें पुनः स्नान कराएं और जल अर्पण करते वक़्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: शुद्धोदक स्नानम् समर्पयामि।

इसके बाद निम्न मंत्र का प्रयोग करते हुए बुध भगवान को यज्ञोपवीत चढ़ाएं:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि

बुध देव को वस्त्र चढ़ाते वक़्त इस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: वस्त्रम् समर्पयामि

इसेक बाद बुध देव को अक्षत अर्पित करते हुए इस मंत्र को पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: गंधम् समर्पयामि।

फिर फूल अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: अक्षतम् समर्पयामि।

इसके पश्चात फूल की माला चढ़ाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ बुधाय नम: पुष्पमाला समर्पयामि।

इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें धूप अर्पित करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: धूपम् समर्पयामि

दीप दिखाते समय इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: दीपम् दर्शयामि

फिर बुध देव को नैवेद्य अर्पित करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम: नैवेद्यम् समर्पयामि

फूल की सहायता से आचमन करने के लिए जब बुध भगवान को जल अर्पित करें तब इस मंत्र का पाठ करें:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि।

इसके पश्चात चंदन चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ सोमात्मजाय नम: करोद्धर्तन समर्पयामि।

इसके बाद पान के पत्ते लें और उसे पलटने के बाद उसपे लौंग, सुपारी, कोई मिठाई, और इलायची रखें और दी तांबूल बनाएं। तांबूल अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ऊँ बुधाय नम: ताम्बूलम् समर्पयामि।

इन सब के बाद बुध देव को दक्षिणा देते समय उस मंत्र का प्रयोग करें:
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: दक्षिणा समर्पयामि |

इसके बाद हवन कुंड को तैयार करें और पवित्र अग्नि में 108 बार आहुति दें और साथ साथ इस मंत्र का उपयोग करें:
ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।स्वाहा॥

अब आरती की थाल लेकर उसमें दीप और कपूर जलाएं और गणेश जी और बुध जी की आरती करें।
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: प्रदक्षिणा समर्पयामि

आरती संपन्न होने के बाद अपने स्थान पर ही खड़े होकर बाएं से दाएं की ओर चक्कर लगाएं और इस मंत्र का उच्चारण करें:

प्रियंग कालिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्य सौम्य गुणापेतं तं बुधप्रणमाम्यहम्॥


इसके बाद बुध भगवान से प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर: 
फिर क्षमा याचना करते हुए ये मंत्र पढ़ें:
स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥


अब विसर्जन के लिए अक्षत और फूल अपने हाथों में लें और निम्लिखित मंत्र का उच्चारण करें:
अंततः 21 ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा प्रदान करें।