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Wednesday, August 21, 2019

Kundli Grah Combination for Chartered Accountant

Kundli Grah Combination for Chartered Accountant 


Chartered Accountant Yoga in Kundli, Horoscope

Given below are a few combinations which are considered very rewarding if a person wants to pursue career in accounts:
  • Positive relationship between Jupiter, Mars, Mercury and Moon is an auspicious astrological yoga for Chartered Accountant.
  • When Mercury and Venus are placed with 5th Lord in 5th House and Lord of 10th and 11th house aspect them then the native has a successful career in accounts because relationship of Mercury with 5th house is extremely important.
  • Presence of Mercury as Lord of 10th House and aspects or is in conjunction with 5th house, Venus is Lord of 11th house and connects with Jupiter, this is again an important yoga to become a chartered accountant.

Significant Planets for Chartered Accountant in Horoscope

These planets are very important to keep in mind when it comes to knowing the probability of becoming a CA:
  • Mercury and Jupiter are the prime planets to have career as chartered accountant in Vedic Astrology. Mercury is for accounts and Jupiter for funds.
  • Presence of Mercury with Mars makes account handling excellent.
  • Effect of Saturn on 5th House or Lord is very beneficial.
  • Influence of Marts and Saturn in horoscope makes a person smart as raising revenue and saving tax.

Significant Houses: Chartered Accountant Astrology

The houses given below are most important to consider to know chances of becoming a Chartered Accountant as per astrology:

  • When the 2nd, 6th, 10th, 12th and 15th houses in kundali are put together, they create auspicious yogas to become a chartered accountant.
  • Relation of these houses with 5th House or Lord determine the levels of education.
  • 6th and 10th house influence the native’s horoscope in relation with audits and tax.

आवश्यक भाव: दूसरा, छठा, दशम, द्वादश व पंचम भाव (Second, Sixth, Tenth, Twelfth and Fifth House)
ज्योतिष की दृष्टि से इसमें दूसरा घरजिसे अर्थ व धन का घर ( the second house is the house of money) कहा जाता है. छठा घर जिसे प्रतियोगिता व कानून का घर कहते है. दशम घर कर्म स्थान, द्वादश घर को टैक्स व राजस्व तथा पंचम भाव को सलाह का घर कहा जाता है. ये सभी ग्रह मिलकर चार्टेट अकाउन्टेंट बनने की ओर इशारा करते है. इस क्षेत्र में महारत हासिल करने के लिये शिक्षा का उतम होना आवश्यक है. इसलिये इनका संबध पंचम भाव /पंचमेश से आना चाहिए.

कुण्डली में लग्नेश, दशमेश, पंचमेश, भाग्येश, लाभेश, धनेश ये सभी अत्यन्त महत्व रखते है. क्योंकि इन सब की शुभ स्थिति के कारण ही व्यक्ति को उच्चस्तर का व्यवसाय व उच्चशिक्षा प्राप्त होती है. जिससे व्यक्ति को अधिक लाभ प्राप्त करते हुए यश की प्राप्ति होती है. चार्टेट अकाउण्टेन्ट के मामलें में छठे व बारहवें घरों का बहुत अधिक महत्व होता है.क्योकि इससे टैक्स व आडिट करने वालों का पता लगता है.

आवश्यक ग्रह : बुध, गुरु, मंगल व शनि (Important Planet: Mercury, Jupiter, Mars and Saturn for Chartered Accountant Career)
चार्टेट अकाउण्टेण्ट बनने के लिये जिन ग्रहों के योग की आवश्यकता है. उनमें बुध तथा गुरु इसके लिये मुख्य ग्रह है (Jupiter and Mercury are the main planet to consider planetary yogas for chartered accountant.) . गुरु धन तथा परामर्श के कारक है. और बुध अकाउण्टेन्स या हिसाब किताब के कारक है. बुध हिसाब किताब तो रखते है. बुध से ही हिसाब किताब करने की योग्यता आती है. पर प्रतियोगिताओं में मंगल सफलता दिलाते है.

शनि का प्रभाव भी पंचम भाव/पंचमेश पर अच्छा समझा जाता है. सामान्यत: यह देखने में आया है की मंगल का प्रभाव दूसरे घर व दूसरे घर के स्वामी पर अधिक होता है. इस क्षेत्र में वही व्यक्ति कदम रखते है जिनकी गणित विषय में अच्छी पैठ होती है. क्योंकि चार्टेट अकाउन्टेन्ट का सारा काम हिसाब किताब रखने का ही होता है.
मंगल, शनि का संबध इसलिये भी आवश्यक होता है. क्योंकि जो लोग राजस्व बढाने व टैक्स बचाने के चक्कर मे रहते है. उन्हे इन पापी ग्रहों का सहारा लेना ही पडता है. जिन अकाउण्टेन्ट की कुण्डली में मंगल व शनि का प्रभाव होता है. वे राजस्व व टैक्स बचाने का काम अधिक करते है.

अमात्यकारक ग्रह की भूमिका: (Role of Amatyakaraka Planet for Chartered Accountant Career)
अमात्यकारक ग्रहों से व्यवसाय की दिशा पता चलती है. ( The Amatayakaraka planet will have relationship with the second house or its lord in the birth-chart of a chartered accountant) चार्टेट अकाउण्टेन्ट की कुण्डली में अमात्यकारक का संबध दूसरे घर व दूसरे घर के स्वामी से होता है. अमात्यकारक ग्रह का स्वभाव चार्टेट अकाऊन्टेन्ट की विशिष्टता बताता है. जैसे: अमात्यकारक ग्रह बुध होने पर व्यक्ति आडिट तथा अकाऊण्ट्स के क्षेत्र में काम करता है.

मंगल व शनि के होने पर व्यक्ति टैक्स बचाने से जुडा काम करता है. जैसे बिक्री कर, आयकर आदि. सूर्य के होने पर कारपोरेट के कानून इत्यादि. गुरु के अमात्यकारक होने से व्यक्ति को बैक या फाइनेन्स का काम करना अधिक पसन्द होता है.

अमात्यकारक ग्रह के दूसरे, पंचम तथा एकादश भावों से संबध होने से व्यवसाय में उन्नति तो होती ही है. चार्टैट अकाउण्टेन्ट बनने के लिये यह योग जितना अच्छा होगा. व्यक्ति को उतनी ही सफलता मिलती है.

दशाओं की भूमिका: (Role of Dasha of Planets for Chartered Accountant Career)
व्यवसाय के शुरु में दशा स्वामियों का संबध छठे व दशवें घरों व अमात्यकारक से होना उतम होता है . क्योंकी दशाएं ही व्यक्ति की सफलता का मार्ग निर्धारित करती है. व्यवसाय करने के समय पर संबन्धित ग्रहों व भावों के स्वामियों की दशा मिलने से उन्नति प्राप्त करना सरल हो जाता है.

अन्य योग:(Other Yogas for Chartered Accountant Career)
पंचम भाव में पंचमेश के साथ वाणिज्य कारक बुध व शुक्र एक साथ बैठे और उस पर दशमेश या लाभेश की दृ्ष्टि हो रही हो तो व्यक्ति अकाउण्टन्स जुडी शिक्षा प्राप्त करता है. पंचम घर को शिक्षा का घर कहते है. इस घर में बैठे ग्रह व्यक्ति की शिक्षा व शिक्षा का विषय बताते है. बुध जो अकाउण्टस विषय का कारक है उसका पंचम घर से संबध बनाने से इस क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना बनती है.
अकाउण्टस विषय का कारक बुध दशमेश होकर पंचमेश से युति या दृ्ष्टि संबध स्थापित करे और शुक्र लग्नेश या लाभेश या शिक्षा के कारक गुरु भी संबध बनाये तो भी व्यक्ति इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है. 

KUNDLI combination for Singer and Musician

KUNDLI combination for Singer and Musician



Planets concerning the musical ability
Venus: Venus the artistic planet, and it represents singer, musician, composers and creative artists. Since music composing involves creativity, well placed Venus in the horoscope without any affliction is the most important factor for successful composer or singer.
Mercury: Mercury is the planet of intellect, strong Mercury in the horoscope is the key indicator for mastery in any subject.
Moon: Well placed Moon in the chart especially in the sign ruled by Venus or connection with Venus will give euphony voice.
Rahu: Rahu rules western instruments and western music. Well placed Rahu with Venus will give mastery over western music.
Jupiter: Jupiter is the planet of wisdom, music is nothing but the form of a spiritual expression. So well placed Jupiter gives spiritual connect through music.
Houses or Bhava concerning the musical ability
3rd house: 3rd house rules throat, artistic planet Venus connected with the 3rd house or 3rd lord is the good indication for the gifted singer and musical ability.
4th house: 4th house rules learning and education, the artistic planet Venus connected with 4th house or 4th lord gives the ability to learn music or musical instrument.
Gemini: The Gemini is the 3rd house in the zodiac. So artistic planet Venus, intellectual planet Mercury connection to sign Gemini produces a famous musician

Taurus & Libra: The sign Taurus and Libra are ruled by the artistic planet, Venus. So 1st house or 3rd house or 4th house, or 10th house falling as Taurus or Libra with Venus well placed will give interest in Music and pursue music or singing as a career.
Other important Yogas
Saraswati Yoga: When the benefics Jupiter, Mercury and Venus occupies Lagna, 2nd, 4th, 5th, 9th or 10th either jointly or severally then Saraswati yoga is formed. This yoga will make creative artistic like Poet, composers etc.
Gandharva Yoga: When 10th lord occupies Kama Thrikona house(1st, 5th, 9th from 7th house ie: 7th house, 11th house or 3rd house) with Jupiter association and Sun is strongly placed, Moon occupied 9th house then Gandharva yoga is formed. This yoga will make person skillful in fine arts including Music.
Veena Yoga: When all planets spread over 7 signs then Veena yoga is formed. This yoga will make person virtuous and skilled in music and fine arts.
Sangeeta Vidya Yoga : If the 2nd lord or 2nd house is connected with 5th house or 5th lord along with Venus then Sangeeta vidya yoga is formed. This will give native skilled in music.
Kalanidhi Yoga: When Jupiter either conjoins or aspects Mercury and Venus in 2nd or 5th house then Kalanidhi yoga is formed. This will person highly skilled and attain great wisdom in many fields.

Tuesday, August 20, 2019

पाराशरी सिद्धांत क्या है?

पाराशरी सिद्धांत क्या है?




लघुपाराशरी एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके बिना फलित ज्योतिष का ज्ञान अधूरा है। पाराशरी सिद्धांतों का लघुपाराशरी में वर्णन किया गया है। संस्कृत श्लोकों में रचित लघु ग्रन्थ लघुपाराशरी में फलित ज्योतिष संबंधी सिद्धांतों का वर्णन है और ये 42 सूत्रों के माध्यम से वर्णित है। एक-एक सूत्र अपने आप में अमूल्य है, इसे 'जातकचन्द्रिका'  "उडुदाय प्रदीप" भी कहा जाता है। यह विंशोत्तरी दशा पद्धति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तथा वृहद् पाराशर होराशास्त्र पर आधारित है। फलित ज्योतिष विद्या के महासागर रुपी ज्ञान को अर्जित करने के लिए पाराशर सिद्धांतों पर आधारित लघुपाराशरी एक बहुमूल्य साधन सिद्ध हो सकती है। इस पुस्तक का कोई एक लेखक नहीं है। यह पुस्तक पाराशरी सिद्धांत को मानने वाले महर्षि पाराशर,  उनके अनुयायियों, प्रकांड विद्वानों द्वारा सामूहिक रूप से सम्पादित है।
फलित ज्योतिष पर आधारित इस ग्रंथ के आधार में कई बडे ग्रंथों की रचना की गई। फलित ज्योतिष पर आधारित इस ग्रन्थ को अधिकतम ज्योतिषी भविष्यवाणी करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। इस ग्रंथ में मूलतः पाराशर सिद्धांतों के 42 सूत्रों में नौ ग्रहों की विविध भावों में उपस्थिति, ग्रहों की मित्रता, शत्रुता अथवा सम होना, ग्रहों की पूर्ण व आंशिक दृष्टियों का उल्लेख, भाव, कारकों, दशाओं, राजयोग, मृत्यु योग सहित भावानुसारी फलादेश आदि पर वर्णन किया गया है।क्‍या कहता है ज्‍योतिष शास्त्र - ज्‍योतिष शास्त्र के अनुसार, बारह राशियां होती है और हर राशि वाले व्यक्ति की कुंडली में बारह भाव होते हैं जो नौ ग्रहों की दशा से प्रभावित होते हैं। सात मुख्य ग्रहों सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि के साथ-साथ 2 और ग्रहों राहु और केतु का कुंडली में बहुत ख़ास स्थान होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति की कुंडली में मारक और कारक दशा होती है जो ग्रहों के कारण बनती है। ऐसी ही एक दशा मारकेश है जो ग्रहों के कारण बनती है। मारकेश सिद्धांतों को संक्षिप्त में पराशर सिद्धांत्तों का आधार बताया जाता है।
लघुपाराशरी में 42 सूत्र या श्लोक हैं जो पाँच अध्यायों में विभक्त हैं।1. संज्ञाध्याय
2. योगाध्याय
3. आयुर्दायाध्याय
4. दशाफलाध्याय
5. शुभाशुभग्रहकथनाध्याय


पाराशरी संहिता में निहित मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन और शुभ फलों की प्राप्ति के कारक :  जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे की राशि में होते हैं तो शुभ फल प्राप्त होते है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे से दृष्टि संबंध में हो तो शुभ फल प्राप्त होते है।
कुंडली में ग्रहों की परस्पर युति होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं।
कुंडली में एक ग्रह दूसरे ग्रह को संदर्भित करता हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।
इन स्थितियों में होती है शुभ फलों की प्राप्ति असंभव - महर्षि पाराशर मूलभूत सिद्धांतों के आधार पर शुभ फलों की प्राप्ति के कारको में कुछ ऐसी बाधाओं का भी वर्णन है जिसके रहते शुभ फलों की प्राप्ति असंभव हो जाती है। उन बाधाओं का वर्णन नीचे दिया गया है।
नैसर्गिक शुभ ग्रह केंद्राधिपत्य रूप से दोषी न हो।
गुरु, मंगल, शनि तथा बुध ग्रहों की दूसरी राशि दुष्ट स्थानों में न हो।
पूर्व वर्णित चारों ही स्थितियों में ग्रहों की युति किसी अन्य पापी या क्रूर ग्रह से न हो।
ग्रह शत्रु गृही, नीचस्तंगत या पाप कर्तरी स्थिति में न हो।
ग्रहों को पाप मध्यत्व न प्राप्त हो

पाराशर सिद्धांतों के 42 सूत्रों का वर्णन: 1. फल कहते हैं- नक्षत्रों की दशा के अनुसार ही शुभ-अशुभ फल कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुसार फल कहने में विंशोत्तरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए। अष्टोत्तरी दशा यहां ग्राह्य नहीं है।
2. ज्योतिष शास्त्र- सामान्य ग्रंथों पर से भाव, राशि इत्यादि की जानकारी ज्योतिष शास्त्रों से जाननी चाहिए। इस ग्रंथ में जो विरोध संज्ञा है वह शास्त्रम के अनुरोध से कहते हैं।
3. ग्रह का स्थान- सभी ग्रह जिस स्थान पर बैठे हों, उससे सातवें स्थान को देखते हैं। शनि तीसरे व दसवें, गुरु नवम व पंचम तथा मंगल चतुर्थ व अष्टम स्थान को विशेष देखते हैं।
4. त्रिषडाय के स्‍वामी- कोई भी ग्रह त्रिकोण का स्वामी होने पर शुभ फलदायक होता है। (लगन, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं) तथा त्रिषडाय का स्वामी हो तो पाप फलदायक होता है (तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव को त्रिषडाय कहते हैं।)
5. त्रिषडाय को अशुभ फल - सिद्धांत 4 में निहित स्थिति के बावजूद त्रिषडाय के स्वामी अगर त्रिकोण के भी स्वामी हो तो अशुभ फल ही आते हैं।
6. सौम्या ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चंद्र) यदि केन्द्रों के स्वामी हो तो शुभ फल नहीं देते हैं।
7. क्रूर ग्रह (रवि, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र और पापग्रस्तय बुध) यदि केन्द्र के अधिपति हो तो वे अशुभ फल नहीं देते हैं। ये अधिपति भी उत्तरोतर क्रम में बली हैं। (यानी चतुर्थ भाव से सातवां भाव अधिक बली, तीसरे भाव से छठा भाव अधिक बली)
8. स्व स्थान ना होने पर रिजल्‍ट- लग्‍न से दूसरे अथवा बारहवें भाव के स्वामी दूसरे ग्रहों के सहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार अगर वे स्व स्थान पर होने के बजाय अन्य भावों में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते हैं। (इन भावों के अधिपतियों का खुद का कोई आत्मनिर्भर रिजल्ट नहीं होता है।)

9. लग्नेश होने पर शुभ फल- आठवां भाव नौंवे भाव से बारहवें स्थान पर पड़ता है, अत: शुभफलदायी नहीं होता है। यदि लग्नेश भी हो तभी शुभ फल देता है (यह स्थिति केवल मेष और तुला लग्न में आती है)
10. केन्द्राधिपति ग्रह- शुभ ग्रहों के केन्द्राधिपति होने के दोष गुरु और शुक्र के संबंध में विशेष हैं। ये ग्रह केन्द्राधिपति होकर मारक स्थान (दूसरे और सातवें भाव) में हो या इनके अधिपति हो तो बलवान मारक बनते हैं।
11. सूर्य और चंद्रमा को अष्टमेश दोष नहीं- केन्द्राधिपति दोष शुक्र की तुलना में बुध का कम और बुध की तुलना में चंद्र का कम होता है। इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है।
12. मंगल दशमेश होने से देगा अशुभ फल - मंगल दशम भाव का स्वामी हो तो शुभ फल देता है। किंतु यही त्रिकोण का स्वामी भी हो तभी शुभफलदायी होगा। केवल दशमेश होने से नहीं देगा। (यह स्थिति केवल कर्क लग्‍न में ही बनती है)
13. राहु और केतु जिन-जिन भावों में बैठते हैं, अथवा जिन-जिन भावों के अधिपतियों के साथ बैठते हैं तब उन भावों अथवा साथ बैठे भाव अधिपतियों के द्वारा मिलने वाले फल ही देंगे। (यानी राहु और केतु जिस भाव और राशि में होंगे अथवा जिस ग्रह के साथ होंगे, उसके फल देंगे)। फल भी भावों और अधिपतियों के मुताबिक होगा।
14. केन्द्राधिपति और त्रिकोणाधिपति - ऐसे केन्द्राधिपति और त्रिकोणाधिपति जिनकी अपनी दूसरी राशि भी केन्द्र और त्रिकोण को छोड़कर अन्य स्थानों में नहीं पड़ती हो, तो ऐसे ग्रहों के संबंध विशेष योगफल देने वाले होते हैं।
15. बलवान त्रिकोण और केन्द्र के अधिपति खुद दोषयुक्त हों, लेकिन आपस में संबंध बनाते हैं तो ऐसा संबंध योगकारक होता है।
16. धर्म और कर्म स्थान के स्वामी अपने-अपने स्थानों पर हों अथवा दोनों एक दूसरे के स्थानों पर हों तो वे योगकारक होते हैं। यहां कर्म स्थान दसवां भाव है और धर्म स्थान नवम भाव है। दोनों के अधिपतियों का संबंध योगकारक बताया गया है।
17. राजयोग कारक - नवम और पंचम स्थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।
18. योगकारक ग्रहों (यानी केन्द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।
19. योगज फल - योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्वयं का बल है, तदानुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्व की भूमिका निभा सकता है।)
20. यदि एक ही ग्रह केन्द्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी हो तो योगकारक होता ही है। उसका यदि दूसरे त्रिकोण से संबंध हो जाए तो उससे बड़ा शुभ योग क्या हो सकता है।
21. राहु अथवा केतु यदि केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हों और उनका किसी केन्द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से संबंध हो तो वह योगकारक होता है।
22. राजयोग भंग - धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न) । इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं।
23. मारक स्थान - राजयोग भंग जन्म स्थान से अष्टम स्थान को आयु स्थान कहते हैं। और इस आठवें स्थान से आठवां स्थान आयु की आयु है अर्थात लग्‍न से तीसरा भाव। दूसरा भाव आयु का व्यय स्थान कहलाता है। अत: द्वितीय एवं सप्तम भाव मारक स्थान माने गए हैं।
24. जातक की मृत्यु - द्वितीय एवं सप्ताम मारक स्थानों में द्वितीय स्थान सप्तम की तुलना में अधिक मारक होता है। इन स्थानों पर पाप ग्रह हो और मारकेश के साथ युक्ति कर रहे हों तो उनकी दशाओं में जातक की मृत्यु होती है।
25. मृत्यु का संकेत- यदि उनकी दशाओं में मृत्यु की आशंका न हो तो सप्तमेश और द्वितीयेश की दशाओं में मृत्यु होती है।
26. मारकत्व गुण - मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्यु ना होती हो तो कुण्डली में जो पापग्रह बलवान हो उसकी दशा में मृत्यु होती है। व्ययाधिपति की दशा में मृत्यु न हो तो व्ययाधिपति से संबंध करने वाले पापग्रहों की दशा में मरण योग बनेगा। व्ययाधिपति का संबंध पापग्रहों से न हो तो व्ययाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों की दशा में मृत्यु् का योग बताना चाहिए। ऐसा समझना चाहिए। व्ययाधिपति का संबंध शुभ ग्रहों से भी न हो तो जन्म लग्‍न से अष्टम स्थान के अधिपति की दशा में मरण होता है। अन्यथा तृतीयेश की दशा में मृत्यु होगी। (मारक स्थानाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों को भी मारकत्व का गुण प्राप्त होता है।)
27. मारक ग्रहों की दशा में मृत्यु न आए तो कुण्डली में जो बलवान पापग्रह हैं उनकी दशा में मृत्यु की आशंका होती है। ऐसा विद्वानों को मारक कल्पित करना चाहिए।
28. शनि ग्रह- पापफल देने वाला शनि जब मारक ग्रहों से संबंध करता है तब पूर्ण मारकेशों को अतिक्रमण कर नि: संदेह मारक फल देता है। इसमें संशय नहीं है।
29. शुभ अथवा अशुभ फल - सभी ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में अपने भाव के अनुरूप शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। (सभी ग्रह अपनी महादशा की अपनी ही अंतरदशा में शुभफल प्रदान नहीं करते)
30. दशानाथ जिन ग्रहों के साथ संबंध करता हो और जो ग्रह दशानाथ सरीखा समान धर्म हो, वैसा ही फल देने वाला हो तो उसकी अंतरदशा में दशानाथ स्वंय की दशा का फल देता है।
31. दशानाथ के संबंध रहित तथा विरुद्ध फल देने वाले ग्रहों की अंतरदशा में दशाधिपति और अंतरदशाधिपति दोनों के अनुसार दशाफल कल्पना करके समझना चाहिए। (विरुद्ध व संबंध रहित ग्रहों का फल अंतरदशा में समझना अधिक महत्वपूर्ण है)
32. केन्द्र का स्वामी और त्रिकोणेश - केन्द्र का स्वामी अपनी दशा में संबंध रखने वाले त्रिकोणेश की अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। त्रिकोणेश भी अपनी दशा में केन्द्रेश के साथ यदि संबंध बनाए तो अपनी अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। यदि दोनों का परस्पर संबंध न हो तो दोनों अशुभ फल देते हैं।
33. राज्याधिकार से प्रसिद्धि- यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्य को उत्तरोतर राज्याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है।
34. राज्य से सुख और प्रतिष्ठा - अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ हो तो राज्य से सुख और प्रतिष्ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या न्यूनता नहीं दिखाई देगी। जैसा है वैसा ही बना रहेगा।
35. योगकारक ग्रहों के साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की महादशा के योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में योगकारक ग्रह योग का शुभफल देते हैं।
36. राजयोग रहित शुभग्रह - राहु केतू यदि केन्द्र (विशेषकर चतुर्थ और दशम स्थान में) अथवा त्रिकोण में स्थित होकर किसी भी ग्रह के साथ संबंध नहीं करते हो तो उनकी महादशा में योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में उन ग्रहों के अनुसार शुभयोगकारक फल देते हैं। (यानी शुभारुढ़ राहु केतु शुभ संबंध की अपेक्षा नहीं रखते। बस वे पाप संबंधी नहीं होने चाहिए तभी कहे हुए अनुसार फलदायक होते हैं।) राजयोग रहित शुभग्रहों की अंतरदशा में शुभफल होगा, ऐसा समझना चाहिए।
37. महादशा के स्वामी - यदि महादशा के स्वामी पापफलप्रद ग्रह हों तो उनके असंबंधी शुभग्रह की अंतरदशा पापफल ही देती है। उन महादशा के स्वामी पापी ग्रहों के संबंधी शुभग्रह की अंतरदशा मिश्रित (शुभ एवं अशुभ) फल देती है।
38. पापी दशाधिप से असंबंधी योगकारक ग्रहों की अंतरदशा अत्यंत पापफल देने वाली होती है।
39. मारक ग्रहों की महादशा में उनके साथ संबंध करने वाले शुभ ग्रहों की अंतरदशा में दशानाथ मारक नहीं बनता है। परन्तु उसके साथ संबंध रहित पापग्रह अंतरदशा में मारक बनते हैं।
40. शुक्र और शनि अपनी-अपनी महादशा और अंतरदशा में शुभ फल देते हैं। यानि शनि महादशा में शुक्र की अंतरदशा हो तो शनि के फल मिलेंगे। शुक्र की महादशा में शनि के अंतर में शुक्र के फल मिलेंगे। इस फल के लिए दोनों ग्रहों के आपसी संबंध की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए।
41. दशम स्थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्यात और विजयी ऐसा मनुष्य होता है।
42. नवम स्थान का स्वामी दशम में और दशम स्थान का स्वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्यात और विजयी पुरुष होता है।



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Shani ka paya – शनि का पाया जानने की विधि और फल

जन्म का पाया

जन्म समय के अनुसार नक्षत्र और राशि के पाये को देखा जाता है नक्षत्र पाया शरीर और परिवार से जोडा जाता है राशि का पाया दिमागी सोच सांसारिक स्थान और कार्य विवाह आदि के लिये माना जाता है। पाये चार प्रकार के होते है -

स्वर्ण पाया
रजत पाया
ताम्र पाया
लौह पाया

BRIEFING

1.सोने के पाया में जन्म : यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि चन्द्र राशि से 1,6,&11 अर्थात् पहले, छठे या ग्यारहवें स्थान में स्थित हो तो सोने के पाया का जन्म समझना चाहिए। श्रेष्ठता के क्रम में इस पाये का स्थान तृतीय नंबर पर आता है।

2.चाँदी के पाया में जन्म : यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि चन्द्र राशि से 2,5&9 अर्थात् दूसरे, पाँचवे या नवम स्थान में हो तो चाँदी के पाए का जन्म मानना चाहिए। श्रेष्ठता के क्रम में यह पाया सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
3.ताँबे के पाया में जन्म : यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि चन्द्र राशि से 3,7&10 अर्थात् तीसरे, सातवें या दसवें भाव में हो तो ताँबे के पाये का जन्म समझना चाहिए। श्रेष्ठता क्रम में यह दूसरे क्रम पर है।
4.लोहे के पाया में जन्म : यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि चन्द्र राशि से 4,8 &12 अर्थात् चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो बच्चे का जन्म लोहे के पाए का समझना चाहिए। यह पाया बच्चे के परिवार के लिए शुभ नहीं माना जाता है।

नक्षत्र का स्वर्ण पाया सही माना जाता है राशि का स्वर्ण पाया सही नही माना जाता है जो पाया स्त्री के लिये सुखकारी होता है वही पाया पुरुष के लिये हानिकारक माना जाता है। अगर राशि का पाया स्त्री का स्वर्ण है तो वह उत्तम माना जाता है और पुरुष केलिये स्वर्ण पाया राशि से खराब माना जाता है। पुरुष के स्वर्ण पाये मे जन्म लेने से या तो उसके जीवन में अल्प आयु का योग होता है या वह आजीवन अपने अहम और बुद्धिमान समझने के कारण आगे नही बढ पाता है इस कारण मे एक बात और भी देखी जाती है कि जातक को वास्तविक जीवन मे जाने के लिये माता पिता रोकते रहते है उसे गमले का पौधा समझकर पाला जाता है जातक का स्थानन्तरण होता रहता है इस प्रकार से व्यक्ति अपने सामाजिक पारिवारिक और व्यवहारिक जीवन को समझ नही पाता है फ़लस्वरूप वह एकान्त मे रहने वाला और अपने काम को खुद करने के बाद सफ़लता को नही लेने वाला होता है। सफ़लता के लिये जीवन की लडाई को लडना जरूरी होता है और जब जीवन की लडाई दूसरो के भरोसे से लडी जाती है तो कभी न कभी बडी असफ़लता हाथ ही लगती है.इस पाये के व्यक्ति को पिता का सुख कम मिलता है अपने पारिवारिक जीवन से जैसे चाचा चाची ताऊ ताई दादा दादी से दूरिया बनी रहती है।

रजत पाया सभी मायनो मे सही माना जाता है यह स्त्री जातक के लिये भी और पुरुष जातक दोनो के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। व्यक्ति अपने मानसिक कारणो को सम्भालने उन्हे बेलेन्स करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता रहता है सभी प्रकार के कार्य जो उसके जीवन के लिये प्रभावी होते है वह लोक रीति से सामाजिकता से एक दूसरे के मानसिक प्रभाव को जल्दी समझ लेने से पूरा करता रहता है उसे अपने जीवन मे लोगो की बुरी सोच का परिणाम भी सफ़लता के लिये आगे बढाने वाला होता है वह किसी कार्य के गलत होने पर उसे शिक्षा के रूप मे मानता है माता के साथ सम्बन्ध अच्छे रहते है पिता का ही लगाव सही रहता है लेकिन बहिनो की संख्या और स्त्री संतान की अधिकता होना माना जाता है,इस पाये मे जन्म लेने वाले जातक पानी के किनारे रहने पानी सम्बन्धी काम करने मे सफ़ल होते है.


ताम्र पाया तकनीकी दिमाग को प्रदान करने वाला होता है जातक बात का धनी होता है लम्बी आयु को जीने वाला होता है धन की कमी जातक को नही अखरती है वह अपने व्यवहार आदि से धन के क्षेत्र को कायम रखने वाला होता है खुद के लोग उस पर भरोसा करने वाले होते है जातक जो भी बात करता है उसे निभाने वाला होता है समय पर काम आने वाला होता है लेकिन अपने जीवन को दूसरो के प्रति बलिदान करने वाला भी होता है। जमीन जायदाद अचल सम्पत्ति और खनिज आदि कारको मे आगे बढता जाता है। भाइयों के लिये मित्रो के लिये और जान पहिचान वालो के लिये जीवन को बचाने वाला रोजाना की जिन्दगी मे अपने को आगे ही आगे बढाने वाला होता है। सन्तान सुख मे कमी रहती है लेकिन जो भी सन्तान होती है वह नाम कमाने वाली और परिवार का नाम रोशन करने वाली होती है मर्यादा मे तथा कायदे से चलने वाली होती है जीवन साथी से मतभेद होना और किसी न किसी बात पर आपसी कलह को भी होता देखा जाता है लेकिन जीवन साथी से दूरिया नही हो पाती है कुछ समय के लिये आपसी कलह तो हो सकती है लेकिन हमेशा के लिये नही माना जा सकता है जातक भोजन सम्बन्धी कारणो मे आगे रखने वाला होता है जातक का हाजमा भी सही होता है और जातक को भूख भी बहुत लगती है.तीखे भोजन मे जातक की अधिक रुचि होती है।

लोहे के पाये को खराब माना जाता है जातक या जातिका आलसी प्रवृत्ति के होते है चालाकी से काम करना एकान्त मे रहना मेहनत वाले काम करने के बाद केवल जीविका को चलाने के लिये माने जाते है दूसरो की सेवा करना और अपने श्रम के आधार पर ही जीवन को चलाना माना जाता है सन्तान भी आलसी होती है साथ ही जीवन मे कब पैदा हुये और कब मर गये इसका भी प्रभाव नाम और धन के क्षेत्र मे उजागर नही हो पाता है। माता पिता के लिये भी कष्टकारी होता है विद्या के क्षेत्र मे कमी रहती है विवाह आदि के क्षेत्र मे सरलता से जीवन नही चल पाता है जीवन साथी को एक प्रकार से जातक को ढो कर ले कर चलने वाली बात को माना जाता है वह बात चाहे अस्पताल सम्बन्धी कारण से बनी हो या जातक की अकर्मण्यता से मानी जाती हो जातक को शराब कबाब तामसी और नशे की आदते भी होती देखी जाती है नीचे लोगो से मित्रता और नीचे काम करने जुआ लाटरी सट्टा आदि के क्षेत्र मे अधिक रुचि देखी जाती है खेल कूद मे भी कम मन लगता है दूसरो को लडाकर खुद मजा लेने वाले लोग भी अधिकतर इसी पाये मे जन्म लिये हुये देखे गये है,हिंसा से बहुत अधिक प्रीति देखी जाती है दया भाव की कमी होती है ऐसे लोग अपने ही लोगो को ठग भी सकते है और धोखा भी देते देखे गये है।

स्वर्ण के पाये मे जन्म लेने वाले जातक को सोने मे हरे रंग के नगीने पिरोकर गले मे पहिनना चाहिये जिससे उनके जीवन मे आहत होने वाले कारण कम होते है नारियल का दान देते रहना चाहिये,पिता की आयु की बढोत्तरी के लिये रोजाना सूर्य को अर्घ देना चाहिये पराये धन और स्त्री पुरुष से सम्बन्धो के मामले मे बचना चाहिये कारण इस पाये मे जन्म लेने वाले को यौन सम्बन्धी बीमारिया अधिक होती है,धारी वाले कपडे पहिनने से भी इस पाये का दोष कम होता है हाथ मे कलावा बांधने से भी दोष मे कमी होती है धार्मिक स्थानो मे जाना और माथा टेकते रहने से भी दोष कम होता है।

रजत पाये वाले व्यक्ति को तीर्थ स्थानो मे जाते रहना चाहिये और तीर्थ स्थान के जल को अपने घर मे या सोने वाले कमरे मे ऊंचे स्थान पर रखना चाहिये माता के कष्ट को दूर करने के लिये रोजाना शिव स्तोत्र का पाठ करना चाहिये चांदी के पात्र मे पानी या दूध पीना चाहिये,हरे रंग के कपडो का अधिक प्रयोग करना चाहिये,ठगी चालाकी आदि के कामो से दूर रहना चाहिये।

ताम्र पाये के दोष की शांति के लिये मन्दिरो मे या दान के स्थानो मे भोजन का दान करना चाहिये तांबे की कोई न कोई चीज अपने पास रखनी चाहिये भोजन मे मिर्च का अधिक प्रयोग नही करना चाहिये मीठा भी कम ही लेना चाहिये,भाइयों की सेवा करने से और मित्रो का सहयोग करने से भी इस पाये का दोष कम होता है।

लौह के पाये मे जन्म लेने वाले जातक को अपने वजन के बराबर का लोहा शनि स्थान मे दान करना चाहिये आलसी प्रभाव को रोकने के लिये मिर्च का अधिक सेवन करना चाहिये लेकिन काली मिर्च का सेवन ही सुखकारी होगा,आंखो की ज्योति को बढाने के लिये घी काली मिर्च और बतासे को आग मे पका कर रोजाना सुबह को प्रयोग मे लेना चाहिये तुलसी की पत्ती काली मिर्च और नीम की टांची को रोजाना बासी पेट लेने से भी इस पाये का दोष दूर होता है लोहे का छल्ला दाहिने हाथ मे स्त्री और पुरुष दोनो को मध्यमा उंगली मे पहिनने से भी परिवार की कलह और घर के मतभेद दूर होते है। 

आपका गण और उससे संबंधित क्या शक्तियां हैं आपके पास

आपका गण और उससे संबंधित क्या शक्तियां हैं आपके पास



देव गण वाले जातक के गुण

सुंदरों दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा। अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।। इस श्लोक में कहा गया है कि देवगण में उत्पन्न पुरुष दानी, बुद्धिमान, सरल हृदय, अल्पाहारी व विचारों में श्रेष्ठ होता है। देवगण में जन्‍म लेने वाले जातक सुंदर और आकर्षक व्‍यक्‍तित्‍व के होते हैं। इनका दिमाग काफी तेज होता है। ये जातक स्‍वभाव से सरल और सीधे होते हैं। दूसरों के प्रति दया का भाव रखना और दूसरों की सहायता करना इन्‍हें अच्‍छा लगता है। जरूरतमंदों की मदद करने के लिए इस गण वाले जातक तत्‍पर रहते हैं।
मनुष्य गण वाले जातक के गुण 
मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:। गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।। इसमें ऐसा कहा गया है कि मनुष्य गण में उत्पन्न पुरुष मानी, धनवान, विशाल नेत्र वाला, धनुर्विद्या का जानकार, ठीक निशाने बेध करने वाला, गौर वर्ण, नगरवासियों को वश में करने वाला होता है। ऐसे जातक किसी समस्या या नकारात्मक स्थिति में भयभीत हो जाते हैं। परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता कम होती है।
राक्षस गण के जातक के गुण
उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:। पुरुषो दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।। इस श्लोक में राक्षस गण में उत्पन्न बालक उन्मादयुक्त, भयंकर स्वरूप, झगड़ालु, प्रमेह रोग से पीड़ि‍त और कटु वचन बोलने वाला होता है। मगर, इसके बावजूद भी राक्षस गण के जातकों में कई अच्छाइयां होती हैं। ये अपने आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों को आसानी से पहचान लेते हैं। भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास इन्हें पहले ही हो जाता है। इनका सिक्स सेंस जबरदस्त होता है। ये परिस्थितियों से डरकर भागते नहीं हैं, बल्कि उनका मजबूती से मुकाबला करते हैं।
इन नक्षत्रों में बनता है ‘देव गण’
जिन जातकों का जन्म अश्विनी, मृगशिरा, पुर्नवासु, पुष्‍य, हस्‍त, स्‍वाति, अनुराधा, श्रावण, रेवती नक्षत्र में होता है, वे देव गण के जातक होते हैं।
मनुष्य गण के नक्षत्र 


जिन जातकों का जन्म भरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, पूर्व षाढ़ा, उत्तर षाढा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद में होता है, वे मनुष्य गण के जातक होते हैं।
राक्षस गण के नक्षत्र
जिन जातकों का जन्म अश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, चित्रा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग राक्षण गण के अधीन माने जाते हैं।
किस गण से हो विवाह
विवाह के समय मिलान करते हुए ज्‍योतिषाचार्य गणों का मिलान भी करते हैं। गणों का सही मिलान होने पर दांपत्‍य जीवन में सुख और आनंद बना रहता है। देखिए किस गण के साथ उचित होता है मिलान -
वर-कन्‍या का समान गण होने पर दोनों के मध्‍य उत्तम सामंजस्य बनता है। ऐसा विवाह सर्वश्रेष्ठ रहता है।
वर-कन्या देव गण के हों तो वैवाहिक जीवन संतोषप्रद होता है। इस स्थिति में भी विवाह किया जा सकता है।
वर-कन्या के देव गण और राक्षस गण होने पर दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रहता है। विवाह नहीं करना चाहिए।

राहु केतु दोष | What is Rahu Ketu Dosh

राहु केतु दोष,What is Rahu Ketu Dosh


कैसे होता है राहु केतु दोष ?

जब किसी जातक की कुंडली में उसके सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते है, जिसमे राहु सर और केतु पूँछ की तरफ होता है, इस तरह की दशा में जातक की कुंडली में राहु केतु दोष माना जाता है | जो ग्रह और केतु के बीच होते है और अलग अलग घर में जा सकते है और उनके घरों की स्थिति के हिसाब से इस दोष के प्रभाव होते है | इस दोष से रहित जातक के जीवन में बहुत सारी बाधाएं उत्पन्न होती है, यही कारण है कि इस दोष को इतना बुरा समझा जाता है | यह दोष ग्रहों की स्तिथि के अनुसार १२ प्रकार से होता है |

क्या है राहु केतु दोष से होने वाली समस्याएं ?

जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है, वह अपने जीवन में कई बाधाओं से घिरा रहता है | इन समस्याओं में प्रमुखतः शादी में रुकावट / देरी , वैवाहिक जीवन में तनाव, व्यापार में हानि, नौकरी पाने में दिक्कत, स्वास्थय सम्बन्धी परेशानियां, मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी हैं |
जातक अपने अथक प्रयास के वाबजूद भी इच्छानुसार सफलता नहीं पाता और इससे उसको लगातार निराशा का सामना करना होता है | जातक के मन में कई बार ऐसे विचार उत्पन्न होते है कि आखिर उसे ही क्यों निराशा का सामना कर पड़ता है ? यदि वह नौकरी करे तो वह उसे पदोनत्ति में देरी होती है या फिर लगातार अपनी नौकरी का स्थान बदलना पड़ता है | यदि वह व्यवसाय करे तो उसे लगातार हानि होती है | इससे उसके जीवन में अड़चन पैदा होती है | उसे मानसिक और शारीरिक कष्ट होते है |

क्या है राहु केतु दोष का समाधान ?

कुछ जातक थोड़ी सी जानकारी के पश्चात खुद ये निर्णय ले लेते है कि उनके क्या करना चाहिए या फिर क्या नहीं | हालांकि हम सब यह मानते है कि हर विषय में राय किसी ज्ञाता से ही लेनी चाहिए | इससे समय भी बचता है और समय पर आपको परेशानी का उचित हल भी मिल जाता है | यदि आप अपना समय और पैसा बचते हुए इस दोष का हल चाहते है तो आप तुरंत पंडित श्री रविशंकर जी से निशुल्क जानकारी ले सकते है |
इस दोष के कुप्रभावों से बचने के लिए जातक अपने जीवन शैली के अनुसार उपाय करवा सकता है | भगवान शिव की आराधना करना इन उपायों में सर्वोत्तम है | यदि जातक शिव की आराधना करने हेतु नासिक शहर के समीप स्थित त्रयंबकेश्वर मंदिर पहुँचता है और काल सर्प योग नामक पूजा करता है तो उसे इस दोष से मुक्ति मिल सकती है | यह पूजा किसी विद्वान पंडित के देख रेख में संपन्न होनी चाहिए | ऐसे ही किसी जानकार पंडित से पहले आप अपनी कुंडली के अनुसार पूजा का मुहूर्त तय कर लें | हम आपको इस पूजा को श्री रवि शंकर गुरु जी से करवाने का सुझाव देंगे | गुरु जी को इस पूजा का अपार अनुभव प्राप्त है और शास्त्रों एवं कर्मकांडो के महाज्ञाता भी है |


Home remedies for Rahu Ketu dosha

There are many remedies that one can do at their home to decrease the results of Rahu Ketu dosha.
  • Firstly, you should give sweets to orphans and displaced children to curtail the negativism of Ketu.
  • Secondly, you need to recite Shiv Panchakshar mantra “Om Namah Shivaya” for 108 times daily.
  • Furthermore, you should give belpatra, fruits, raw milk and water to Shivling in Lord Shiva temple.
  • One can also chant Dosh nivaran mantra 108 times regularly on daily basis.
  • You should regularly explore blessings of Lord Shiva.
  • Visit a nearby Lord Shiva temple daily and give water.
  • You can use or keep a nivaran yantra or rudraksha mala.
  • You can accomplish the kaal sarp puja and recite particular mantras for 21 ensuing days.
  • A person should wear a nivaran ring made of silver.
  • They can do Rudraabhishek.
  • They may give a cobra or Naga Snake made of copper or gold to any Lord Shiva temple.
  • You can do rahu ketu puja in Trimbakeshwar temple, Andhra Pradesh. This Puja can be done in many other temples.
  • Eat in the kitchen as much as achievable.
  • Do Jaap for Rahu and Ketu separately.
  • In clothing and jewelry people cannot wear red and coral colors for puja.
  • Giving regular plaid blankets to the needy, homeless and underprivileged is one of the most powerful remedies for Rahu & Ketu dosha.
  • Donating mustard oil works marvelous to reversal the malign consequences.
  • If somebody is born under the malign effect of Ketu should also take care of dogs and give shelter to street dogs.
  • People cannot wear black clothes.
  • Yellow and white are two favorable colors for Ketu.

त्र्यंबकेश्वर में काल सर्प पूजा के लिए तिथियां

त्र्यंबकेश्वर में काल सर्प पूजा के लिए तिथियां



त्र्यंबकेश्वर में काल सर्प पूजा

यह माना जाता है कि काल सर्प योग निवारण हेतु जातक को त्र्यंबकेश्वर मंदिर में काल सर्प पूजा करवानी चाहिए | इस स्थान पर पूजा करने से जातक इस दोष से मुक्ति पा सकता है | हालांकि त्र्यंबकेश्वर में काल सर्प दोष पूजा के विशेष लाभ है परन्तु इस पूजा को शुभ दिन या काल सर्प योग पूजा मुहूर्त पर करने का अलग महत्व है |
हर वर्ष के लिए सुबह तिथियां जारी की जाती है | जातक अपनी कुंडली के अनुसार अपने पंडित जी की परामर्श पर पूजा का काल सर्प योग पूजा मुहूर्त चुन चकता है |

माह जनवरी वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

3, 5, 7, 11, 12, 14, 15, 18, 19, 20, 23, 25, 26, 27, 31

माह फरवरी वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 3, 4, 9, 10, 11, 13, 15, 16, 17, 18, 23, 24, 25, 27

माह मार्च वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

2, 3, 4, 6, 9, 11, 15, 16, 18, 22, 24, 25, 27, 30, 31

माह अप्रैल वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 17, 20, 22, 24, 27, 28, २९


माह मई वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 4, 6, 7, 9, 11, 12, 13, 15, 16, 17, 20, 23, 25, 26, 27, 31

माह जून वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 3, 5, 8, 9, 10, 12, 14, 18, 20, 22, 23, 24, 26, 28, 29, 30

माह जुलाई वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 4, 6, 7, 8, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31


माह अगस्त वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, ३१

माह सितम्बर वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 11, 13, 15, 16, 19, 21, 22, 23, 26, 28, 29, 30

माह अक्टूबर वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 11, 12, 14, 17, 19, 20, 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 31


माह नवंबर वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

2, 3, 4, 5, 8, 9, 11, 15, 17, 20, 23, 24, 25, 26, 28, 30

माह दिसंबर वर्ष २०१९ काल सर्प दोष पूजा के मुहूर्त

2, 4, 6, 7, 9, 11, 14, 15, 16, 19, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 28, 29, 30, 31